जीवंत न्याय / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल

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ईश्वरीय न्याय में अपने विश्वास को मैं क्यों न कायम रखूँ?

जबकि मैं देख रहा हूँ कि सोफों पर सोने वालों के सपने पत्थरों पर सोने वालों के सपनों से बेहतर नहीं हैं।