जीवण रौ जथारथ / कन्हैयालाल भाटी

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मोड़ मुड़परी‘र बस ज्यौ ई ढबण लागी उणा सूं पैलां म्हारी दौन्यूं री आंख्यां अेक-दूजै सूं टकराई-मांडाणी अर अचांणचक।

डिलेवर बस रौ आगलो फाटक खौल‘र हैठै उतरयौ अर अेक चाय रै ढाबै माथै खड़ौ हुयौ।

म्हैं जतन मासी नै औळख लीनीं ही। हवै म्हारै मन में अेक गिरगीराट ही के बस सूं हेठै म्हैं पैलां उतरूं के सीगळा सूं पछै। म्हैं इण उधैड़-बुण में उळझ्ग्यी। उण म्हनै देख लीनी ही, इण बात रौ म्हनै ठा लाग्यी ही। जणा म्हारौ काळज्यो धबकण लाग्यौ हो। इरै सागै-सागै म्हारां पग बठैई चिपग्यां, म्हनै लखावण लाग्यौ के जाणै कोई म्हारै पगा में मणीकौ बांध दियो है, पण हवै करूं तो कंई करूं, म्हारौ माथौ किंई काम नीं कर रहयौ हो, छैकड़ मन में सोच्यो के इंया बैठै रेवणै सूं तो पार नीं पड़ैलां, हे जीवड़ा इयै बस सूं तो हैठे उतरयां बिना अर घरां पूग्यां बिनां यै मासी सूं लारौ कोनी छुटैलां...

म्हैं अलवर सूं व्हीर हुवणै सूं चार दिन पैलां लीलाधर नै कागद लिख दियौ हो कै थै टैम सूं पैलां दस-पन्द्रह मिनट आगूंच बस अड्डै पर पूगजायां, भूल मतीना करियां। पण बै तो लखणा‘रा लाड़ा है नीं। जै बै बस माथै पूगजावतां तो उणा रै सागै बात्यां करतां-करतां अर मासीजी री अण दैखी कर परा‘र घरां पूगं जावती। पण बीयां रौ नाम ई तो लीलाधर है। भोळां-भाळां... म्हनै उणां पर रीस ई घणी आवै है। पण उणा पर म्हारौ जोर ई कांई चालै। बै जद आवैला जणां झट सूं बहाणो बणा लैसी-बै कोई लारलै भो‘रा सुनार हा, बै जाणै काई हाथौ-हाथ गोडै माथै घड़ोडी तियार ई राख्यै है। म्हनै थारौ कागद मिळयो कोनी हौ, या पछै केवैलां-‘म्हैं धणै मान सूं जरूर आवतो पण काम री ताबड़-तौड़ रै कारण बस रो बखत ई याद नीं रहयो... इसै भूळण बिसरण आळै अर बहाणां बणावण आळै मिनख सूं अरदास ई कांई करणे‘री जरूरत है।

म्हैं बस सूं हेठै उतरण लाग्यी जद मन में सौच लिनौ हो के म्हनै मासीजी कानी देखणो ई नीं है, म्हैं उण कानी देख सूं जणा बा म्हनै बतळासी नीं। म्हैं इण बात रो घणो ई चेतौ राख्यौ, बस सूं हेठै उतर‘र म्हैं खाथी-खाथी रिक्सा इसटेंड खानी टुरग्यी, आपां मन में सोच तो लेवां हा के आ बात नीं हुवै तो ठीक रेवै पण बां बांत हुयां बिना नीं रेवै है। इणी तरै मासी सूं आगै भैटां मतेई हुग्या हा।

‘अरे कुण बेटी सरली ! मासी किणी जाणै-पीछाणै आळै री साळ-सभांळ नीं लीनी हुवै उणी रिणकै सूं टसकती-टसकती बोली। उण री बोली में रोब रै सागै टसकण री बाली सुणीज रहयी ई ..... बेटी अठै कियां ?’

उण री बोली सुणतै ई म्हारा कान अेकदम सूं खड़ा हुग्या हा। म्हारै कान रा किनारां लालचूट, जाणै कोई रातै रंग में रंगिज्योड़ां हुवै बियां हुग्या हा। म्हारै डील री नाड़यां में खून खतावळ सूं बेवण लाग्यौ हो। म्हारै मन में म्हनै लखायौ जाणै कोई ओ खून डील में उफणपरो‘र डील सूं बारै निकल सी। म्हैं होळै-होळै मन रै किरोध नै सांत करण री कौसिस करी, मोयले मनीराम ने समझा-बूझाय‘र सांत करयौ, पण पाछी बात बठै ई अटकग्यी, मिनख रै लाग्योड़ा घाव तो मिट जावे पण बोल्योड़ा बोल नी मीटै। पण करूं कांई मन ने किताई समझायो पण मासी री बोली सुणते ई म्हारै मन रा घाव पाछा हरयां हुग्यां। म्हैं सुणाई री अण सुणाई कर‘र बठै सूं टैक्सी इस्टेन्ड खानी टूरग्यी।

म्हैं सड़क माथै बैवती-बैवती मन में सोच्यौ के जै मासी लारै सूं आरपरी‘र बतळा ली तो, हे, रामयां म्हनै उण सूं बचायै, म्हारै सूं उण नै की भूंडौ नीं बोलीज जावै। म्हैं जिऊं-तिऊं रासतो पार कर‘र आगै पौंची तो टैक्सी इस्टैन्ड माथै भाग फूटोड़ी नै नीं तो कोई खाली टैक्सी मिली अर नीं कोई खाली रिक्सो।

‘अरे सरली बेटी ! म्हनै थूं कांई नीं ओळखी ? म्हारै मुंडै मांथै ओळखांण रां हाव-भाव नीं देख्यां जणा मासी म्हारैं लारै-लारै चालपरी‘र म्हारै सामै उभग्यी अर बां कई ताळ तांई म्हारै मुंडै खानी जोवती रहयी, अर पाछै बा बोली ....... म्हैं थारी मासी ....... जतन मासी ......!

म्हैं ओ नाम सुणतां ई तो माथौ गरनाटै चढ़ग्यौ, ओ आभौ अर धरती आंख्या रै सामै घुमण लाग्या, कई ताळ पछै आंख्या रै आडै कांच आग्या हुवै जियां लखावण लाग्यौ, म्हैं आख्यां खोलूं तो तिरवाळा आवण लाग्यां। हे राम जी ......... आ जतन मासी ......... ! इयै नाम नै अर मासी रै रिस्तै नै तो म्हैं जीमी दौज कर परी‘र आग्यी ही -

गांव में म्हारै परिवार री निमळी हालत .....काळ रौ पड़नौ, भूख सूं बांथैड़ा करणा, बाप रो बीमारी सूं कांची उमर में मरणौ ........ रोटी-पाणी रो सांसौ अर अैड़ी हालत में मां बिचारी केवै तो किण नै केवै, अबै सोचता तो कि सोचै, किण बूथै पर रोकै-टोकै, किण नै भोळावण देवै, छैकड़ सहर सूं मौकाण आयौडे मासै मां नै ढांढस बंधाय‘र म्हनै सागै लेजावण तई राजी करली अर म्हैं मासै रै सागै थैली में अेक-दोय पैरण‘रा गाभा लेय‘र सहर खातर रवाना हुग्या हा।

चवदै-पनरै बरसों पैला अेक नैनी-सी टींगरी आंख्यां रै पालकां माथै अटग्यी ही। उण रै फाटौड़ी घघरी पेरण नै, खिंडौडा बाळ ..... बी री आंख्यां सहर री चका-चौंध सूं चूंधी ज्यौड़ी, मुंडै माथै चमगूंगी अर डरूं-फरूं रा भाव ........ अर मासेजी रो भबकादार घर ........ ठाठबाट सूं रेवणो-करणो ........ अर पछै कांई पूंछणो मासी री आ धाक .......!

‘मासी म्हानै दौनां ने देखते ईं बोली ....... अठै कैयां आई है। सरला .... ? मासी म्हनै चमगूंगी-सी हुयौड़ी ने देख‘र पूछयौ। बे सवाल अर बौल म्हारै मन में बरसौं सूं रूं-रूं में बिच्छू रै डंक ज्यूं साळ रह्या हा। मासौ ज्योंई घर री बरसाळी में पग धरयो के अेक मेणौ इसौ कानां सूं सूण्यौ के जाणै कोई कानां में उकळतो तेल घाल्यौ ....... बो मेणौ तो म्हनै अजै तंई मन में कांटै दई खटक रह्यौ है, के उण बखत म्हारै हाथ आळी गाभा री थैली हाथ सूं छूट‘र हेठै पड़ग्यी ही। म्हारौ सीघळौ डील पाणी-पाणी हुग्यौ, अर आऊं रै मारयां आंख्या में चौसरां चालणा लाग्यां हा।

म्हैं अर मासौ घरां में पग राखतै ईं सामै बैठी मासी बोली, ‘ई बळाय नै अठै कियां लाया हो ?‘ मासौ खुसामदी करतौ हुयौ उण नै मनावण रा घणी चैस्टां करतो रह्यौ, पण बां किं कैरी बात सुणै जणां नीं, अंत तंई उणा री खुसामदी रौ की असर नीं पड़यौ, मासी रै किरौध आगै उणा री अेक नीं चाली।

छैकड़ मासी डौभां फांड़ती अर रीसां बळती म्हारैं खानीं पगळियां करयां ! म्हैं उण रै सामै डरूं-फरूं हुयौड़ी जौवंती रहयी। म्हारै आगै ऊभ‘र बां बोली, म्हारै खानी कोचरी आळै दंई कांई देखै है, म्हनै कांई खासी, ‘अे डौभां नीचै नी बाळ, म्हारां झींटा पकड़‘र माथौ नीच्यांनी करयौ। म्हारा जियां ईं झीटां पकड़यां अर म्हारौ काळजौ हिलग्यौ। म्हारौ डरती रौ डील कांपण लाग्या अर इरै सागै ईं म्हारै स-र-र-र-र-र जांघियों अर फीच्यां गिली हुग्यी ही। म्हारै दौनूं पगा बीच्याळे पाणी रौ तळाब बणग्यौ। मासी नीचा नै दैख परी‘र बोली इनै साफ म्हारौ बाप कर सी। बो पड़यौ मसौतो साफ कर इनै। थै म्हारै मूढै खानी कांई जोवौ हो, बां पड़ी बाल्टी अर लौटो। पाणी न्हाख‘र साफ करावो बाळौ, थै ईं जबरां मिनख हो। इण कुमाणस नै कठै सूं उठा‘र लाया हौ। थ्हानै ओ छातीकूटों म्हारै पल्लै बांधरी री अठैं ईं सुनियाड़ मिळी। अेकबार तो म्हारै मन में अठै सूं भाग जावण री मन में आई, पण परबसी अर लाचारी मिनख रा पग भांग देवै है।

जाणै कोई डरूं-फरूं मिरगली चारौं खानी सूं घिर जावै जणां बां सिकारी सूं यांचकभरी आंख्या कियां देखती रेवै बियां म्हैं मांसी सामै देखती रहयी। इण रै खानी देखो ! ‘आ मारणै भैसें आळै दई ...... म्हनैं ई डौभा फाड़-फाड़‘र म्हनै ई डरावै है ..... आ म्हारी बैन री बैटी हुवै के किणी कलैटर री, बां म्हारै घर में रेयसी अर म्हनै ईं डरावसी, इसी छौरी री म्हारै घर में जगै नीं है। ‘जै इनै म्हारै घर में रैवणो है तो विचारी-बापड़ी बण‘र रैवणो पड़सी, नीं तो पछै अठै सूं चालती बण....,

उण बखत म्हैं मासी रै बोलां रो अरथ तो नीं समझ सकी ही पण इतौ जरूर समझ सकी के मासी रै सामै दैखणो अर बौलणो नीं है। म्हैं इण बात री तो मन में गांठ बांध लीनी ही।

म्हैं मन में सौंच लिनौ के इण घर में रैवणौ है तो इसी गाल्यां बांत-बांत पर घणी सुणणी पड़सी, जिकै रो खावां अन्न अर बीरौ राखणो पड़सी मन !

मासौ काम-धंधै तई घणकरां बारै ईं रैवतां हा। म्हैं घर रै खनै ईं स्कूल में पढ़णै जावण लाग्यी ही, अर बाकी रो टेम मासी री गाल्यां सुणणै में के पछै मार खाती तो छानै-छुपकै डुस्का भरण में गाळती।

मासी रै कीं तो टाबर-टींगर नीं हां, इण तई नीं तो टाबरां सूं इतौ मौह हो, नीं ईं टांबरां सूं इतौ हेत राखती ही। बां तो हमैसा टाबरां सूं चिढ़ती ही।

म्हारी ना मरजी हणै मरियादा री सीमा लांघर बारै जावण तांई त्यार हौय रही ही। पण बारै गरमी घणी पड़ रहयी है। म्हनै मन में लखायै।

गरमी, ठंड अर बिरखा रै दिनों में म्हनै सही ठौड़ बरसाळी रै अेक खुणै में रात-बिरात पड़यौ रैवणो पड़तौ ......... उम‘र बढ़ी ....... पांचवी सूं छट्ठी किलास में गई ......... इण रै सागै-सागै घर रो काम ईं घणौ बढग्यौ ........ मासी ने तो काम करण आळी री छुट्टी कर दी ही। बीं रौ सिघळौ काम-काज म्हारै ईं पांती आयौ हो। म्हनै भोर अर सिंझ्यां रा घर रा काम काज सूं चैन नीं मिलतो हो।

अेक दिन री बात है, म्हैं घणै काम रै भार सूं डील रा सांधा-सांधा दुःखण लाग्या हां, अबै कैवूं तो कैने कैऊँ अर म्हारी कुण सुणै, छैकड़ थाकी-हारी घर रै लारलै पासी बगीचे खानी जाय रहयी ही के बठै ईं मासी घांटौ फाड़यौ, अे कठै जावै है ‘छमक छलौ..! आजै थ्हारौ मासौ बारै सूं आवण आळौ है इण तांई उण रौ कमरों साफ-सूफ कर परी‘र पलंग री चादर बदळ दियै, जा ....।

उण दिन बिरखा रौ पैलो मौसम बण्यौ हो, च्यारों खानी बादळ छायौड़ा, सूरज उण बादळौ में लुकमीचणी खेल रह्यौ हो, उण बख़त अमूंज्यै आळी उमस, इरै पछै कदै-कदास ठंडौ-सुहावणै बायरौ धरती री माटी री सौंधी-सौंधी महक आ रहयी ही। बिरखा रै आवण री आस में लहरातै फूलौ रै पौधों रो नसौ अजै तांई म्हारी आंख्यां में छायौड़ो है, अर म्हैं तो म्हारै जीवण में पैली बार रेसमी अर मुलायम गद्दौ देख्यौ हौ।

उण गद्दे माथै चद्दरो बिछावतां पलंग माथै पड़यै गद्दे ने हाथ सूं दबाय‘र उणरी मुलायमता देख्यी। चद्दरे री चमक अर मुलायमता म्हारै मोयले राम ने छूंग्यी ....... पछै आ म्हारी देह गद्दे माथै निधड़क होय‘र पसरग्यी ...... अर पछै ........

कानौं‘रा कीड़ा मतै ईं निकळ-निकळ पड़ै इसी गाळयां अर पैट-ढुंगरै माथै लात्यां रै वार सूं अचाणचक म्हारी आंख्यां खुलग्यी .... ‘उठ रांड, मालजादी, टक्कुड़ी भगतण .......’ अरै हियौ फुटौड़ी रांड थारै अज्यै तांई जोबन रो अंकूर फूट्यौ ईं नीं है अर अबार सूं ईं सैज्यां में सुंवण‘रा नखरां सुरूं कर दिन्हां है ?’ म्हारै मुंडे माथै अंधाधुंध थप्पड़ा अर कमर माथै मुक्कां-लातां ....... अरे म्हारी सौत बणण‘रा चाळा करण लागग्यी ....रांड थनै सरम नीं आयी ...... ओ तो ठीक करयों भगवान कै मारौ टेमसर मौयलो हियौ जगा दियौ कै म्हैं थारै लारै-रे-लारै ऊपर आयग्यी नीं तो कांई रो कांई हुय जावतौ अर म्हारो मुंडौ काळौ ...... अरे रांड भगतण ........ थनै दूजौ कोई नीं मिल्यों तो सागी मासै नै मसौड़ में लैवण नै त्यार हुग्यी। थ्यासूं थारौ जौबन बस में नहीं रेवै तो रंडीखानें में जाय‘र बैठज्यां।’

मासी रै सामै म्हारै सूं नीें तो कीं बोलिज्यों अर नीं म्हनै बौलणो हो। म्हैं तो बियां ई आंख्या मीच्यौड़ी पड़ी-पड़ी कूट अर गाल्यां खांवती रहयी। म्हैं इण बांत नै जाणती ही कै हवै म्हनै म्हारी साची बांत कैवण रो मौको नीं मिलै। जै किं म्हैं बोलग्यी तो गाळियां अर लात्यां रौ किं छेड़ौ कोनीं है। म्हैं उंधो माथौ करयोड़ी कसुंरवार जियां म्हैं उठ बैठग्यी।

इण बात रै पछै म्हारै रैवण री जगै घर रै बारलै पासी पगौथियां रै नीच्यै कर दीनीं हीं। ईरै सागै-सागै आ चैतावणी दी कै ‘जे रांड़ थूं माथौ ऊंचौ कियां घर में किणी रै सामै देखण री हिम्मत करी तो रांड ने अब की खाड्डौ खोद‘र बुर दुंली। ई रै पछै तो म्हैं मासी रै सामै कदेई माथौ ऊंचौ कर‘र जोयौ ईं नीं हो। म्हैं तो म्हारो माथौ नीच्यौ ईं राख्यौ।

घणै अळगां-अळगां तांई अळसाये अजगर दांई लांबी सड़क माथै बिछयौड़े कोलतार म्हनै जाणै कोई दबोच रहयौ हौ। म्हैं म्हारै हाथ आळौ थैलो पंगा खनै राख‘र उभी ही। ठौड़-ठौड़ दिसावां सूं जात्रि बसा माथै बैठ-बैठ‘र आवतां हा। बसो सूं थोड़ी-घणी चढ़-उतर रै सागै बसा पाछी रवाना हुय जावती ...... म्हारै सामै सूं अैक-दौय रिक्सा ही गया, जिकै में अेक तो खाली हो। रिक्सो चलावण आळौ म्हारे खानी देख्यौ ईं हो, बों बिचारौ रिक्सों धीमौ ईं करयौ .... म्हैं ई रिक्सै नै ढबण तांई हाथ उच्यौ करयौ, पण नीं जाणै क्यूं रिक्सौ ढब्यौं नीं, म्हारी घबराहट, बेमन अर रीस घणी बढ़ण लाग्यी ही।

‘बेटी सरली, माथौ नीच्यौ करयां कियां खड़ी है ? मासी म्हारै खानी आयपरी‘र पूछयौ।

म्हैं मासी नै किं नीं पडूर देवणौ चावंती ही, इण तंई म्हैं माथौ नीच्यां‘नी करयां चुपचाप ऊभी रहयी। म्हैं बींरै खानी देखणो ईं नीं चांवती ही। आपां मन में सौच लिनौ हो के आपां री चुप ईं भली है। मासी रौ घर छोड़यां पछै जद कदैईं उण री बात्यां म्हनै याद आवती तो म्हारै माथै में कई तरै‘री बात्या घूमती रैवती, म्हैं बीं रै बारै में कई बात्यां सोचती कै बां म्हारै सामै खड़ी-खड़ी गिड़गिड़ावती रेवै अर म्हैं उण नै धमकावती, डरावती रैऊं, म्हैं इसै चितराम रौ सोच करयां करती ही।

मासी रै मारी री लीलां सूं अजै तांई डील रा जौड़-जौड़ दुःख रहयां है। उण री गाळयां रा गरमा-गरम तीखा ती अजै ई कान रा पड़दां फाड़ रहया है। मासी नै कदास भगवान माफ कर देवै लां, पण म्हैं तो उण ने मरयां पछै ईं माफ नीं करूंलां। अरे ! म्हैं तो बीरै सामै थूंकू ई कोनी। म्हारै मन में इण तरै‘रां भाव उठता रैवतां हा। मासी म्हारै सागै इतां जुलम करयां हा, इण खातर तो भगवान उण नै अेक ईं टाबर नीं दियौ। इणी खातर तो बां बांझड़ी रैयग्यी। बांझड़ी रौ समैळो ईं चौखो नीं है। बां मरसी जद ऊपर जरूर भगवान उण सूं बींरै करमां रो लैखौ-जौखौ लै लां। म्हैं उण बगत भगवान नै अरदास कर सूं कै उण नै कड़ै सूं कड़ौ दंड देवै, हे भगवान इण नै उकळते तेल रै कड़ाव में नांख दो, इरै रूं-रूं में डाम देय‘र अर नौकदार भालै सूं सिघळौ डील नै बींध नाखौ।

पण उण घड़ी तो जाणै के अेक-दूजै री निजर कैद में उळझग्या होय म्हैं दोनूं बीयां उभा हां।

म्हारै मन रै बिच्याळे-चीण्योड़ी भींत इतै बरसों पछै ईं जीयां हीं बीयां खड़ी ही। बखत रै सागै-सागै वां जीण-सीर्ण होणै रै बदळै सायद बां घणी मजबूत हुग्यी ही, म्हारै मन में उण रै तंई उगैली घिरणा री बेल इतां चौमासां रो पाणी पी-पी‘र सिघळै डील माथै पसरग्यी ही। ‘हेत नाम रो जीव म्हैं कठै ई म्हां दोनूं बाच्यांळे नीं देख्यौ हो।

गांव सूं मां रै मरणै‘रो संदेसो म्हनै घणै दिनां पछै मिळयों हौ। म्हनै मेळ आळै दिन सूं दो दिनां पैलां मासै रै सागै गांव भेजी ही। इंसूं पैलां मासौ-मासी गांव मौकाण कर‘र आग्यां हां। पण म्हनै इण बात रौ पŸाौ नीं चाल्यौ। इरै पछै अेकदिन म्हनै मासै रै सागै जावण तांई कैयो जणा म्हैं अर मासौ गांव जावण तंई टुरण लाग्या, जणा मासी म्हनै घणी चैतावणी दिनीं। उण दिन गांव पूग्यां जणा घर में काको-काकी ईं सिगळौ काम-काज आपरै माथै लै लीन्हों हो। घर में स्है सगा-संबंधी ईं भेळा हुयौड़ा हा। म्हैं जांवते ईं काकी रै कैहणे रै जियां उणारी आव-भगत अर घर रै काम-काज करण में जुटग्यी ही। म्हैं मां ने तो जी भर‘र रौय ईं नीं सकी। म्हनै काकी काम करती नै बीच्याळै छोडाय‘र अेक खुणै में लैजाय‘र चैतावणी दीनी ही...... अबार अठै सौग रा पाकां कपड़ा पैरयां काम-धन्धौ करणो ..... इण सगलां रै सागै हंसी-ठट्ठा करणै री ........ हवै थूं मोटी हुग्यी ...... भलै मिनखां आळे दांई बात्यां करणी सीख ..... अठै कॉलेज नीं है पण साव .... खैर कोई बात नीं है, म्हैं तो उणा रै हुक्म रै आधार पर ईं दो दिनां तंई मन लगा‘र काम करयौ। म्हैं म्हारी बात्यां नै तो मन में सौच लियौ के आ काकी तो मासी सूं दो चंदा आगै पग धरण आळी निकळी। म्हैं तो बठै‘रो सिघळौ काम पूरौ कर परो‘र मासै सागै पाछी सहर आग्यी ही।

गांव सूं आणै रै पछै सात-आठ दिनों री बात है, अेक दिन मासी दुपारै‘रा बारै सूं आई अर सोफै माथै बैठतां ईं म्हनै पाणी लावण तांई हुक्म दियौ। म्हैं ‘फिरीज’ खोल्यौ, गिलास साफ करी, पछै सीसी सूं गिलास में पाणी भरयौ, हथैली पर गिलास लैय‘र मासी आगै राख्यी। मासी पैलां तो म्हारे खानी कैरी आंख्यां कर‘र कई ताळ तंई देखती रैयी, पछै गिलास खानी जोयौ, अर म्हैं कंई सोच्यूं उण सूं पैलां तो गिलास उठाय‘र म्हारै मंुडै माथै पाणी फेंक्यो ‘म्हारौ थनै किती बार कैयोडौ है हरामजादी, कै म्हनै थूं हथेली पर गिलास राख‘र पाणी मत दिया कर, तसतरी माथै राख‘र लावती रै थारै कांई पीड़ हुवै ! ....... ’ ईंरै पछै बां म्हारै सूं सात बार गिलास साफ करवाई ही।

ई बात रै पछै म्हनै कदैई फिरीज रौ पाणी भायौ ई नीं हो। बी पाणी में अेक तरै री खारासी अर बदबू उण में घुळग्यी हुवै या पछै पासी रै किरोध री बास उण में मिळग्यी हुवै ईयां म्हनै लखावण लाग्यौ।

जदपि म्हैं इतौ तो जाणती ही कैै म्हैं साव नांढ़ तो नीं हूँ, मासी भलै ईं म्हारे काम री, कै रंग-रूप री कदर नीं करै पण लीलाधर सघलां रै आगै म्हारै बरताव रौ बखाण करतौ नीं थकै...... बो कॉलेज में पैलो नंबर आय‘र नाम कमायौ ....... बो कॉलेज में रोबीलौ अर जोसीलौ भाषण देवतौ ...... बो म्हनै घणौईं मन-मोवणौ लागतो ..... बो कॉलेज में कितांई इनाम जीत्यां हां ...... म्हनै ईं पैले साल में पैले नबंर आणै पर इनाम मिल्यौ हो। म्हां पैली बार मिल्यां जद अेक-दूजै री बड़ायां रां घणा बखाण करियां हां। बौ म्हारै बास में ईं रैवतौ हो। घर में आवतां-जावतां, जाण्यै-अणजाण्यै म्हारां दोनूं रां भेटां हो जाया करतां हा। ईरै पछै तो म्हारें दौनूं रौ हैत घणौ बढग्यौ हौ। अर पछै छैकड़लै साल री परीक्षा देय‘र म्हैं मासी रै कैदखाने सूं भाग निकळी ही।

‘म्हैं उण बखत हेत नाम री चीज ने काळजे री धबकण जिती खनै सूं परखी अर देखी ही। नफरत, बणावट, घिरणां, थोथापणौ, घबराट, अपमान सारां ईं बिसरग्या हा, मासी-मासै रो निकम्मो घर .... जैर घोळे जिसो वातावरण, पगोथियारै नीचै खुणै में उठणौ-बैठणौ, घर रै काम-धन्धै में दिन भर गधे आळै दंई पचणौ, गाळ्यां री दिनभर झड़ी ..... इणी सिघळै आळ-जंजाळ में अचाणचक आयौ हेत नाम री बाढ़ में बैइग्या।

असल में तो साची बांत आ ही कै मासी म्हारो ब्यांव आपरै रिस्तै में लागते भतीजै रै सागै करणौ तय कर लिनौ हौ। नीं जाणै उण बखत म्हारै में कठै सूं हिम्मत आई कै म्हैं उण रौ विरोध करयौ। ‘म्हनै मारणी हुवै तो मारदो भलै ईं पण म्हैं उण गांवड़ै रै छोरे सागै ब्यांव नीं करूं ....।’

‘चुप्प रै निमक हरामड़ी .....’ मासी गरजण लाग्यी ......। म्हैं थ्हनै पाळ-पौष‘र मोटी करी अर पढ़ा-भणा‘र हुसीयार करी है। आज म्हां सूं ईं इण तरै‘रा जबाब-सवाल करण तांई कांई ? थूं बता कि ब्यांव नीं करैलां तो कांई करसी .... ?’

‘किंई नीं .......। म्हैं तुरंत ईं बोली ..... ?’

‘देख सरली, हणै थ्हारौ मुंडौ बंध राखज्यैं, नीं तो ..... ’

म्हैं म्हारो मुंडौ बंध राख्यौ अर अेकदिन छानै-ओळै लीलाधर रै सागै भाग निकळी। लीलाधर नै मुंडै माथै लगाम राखण रौ ओ तरीकौ घणौ चोखौ लाग्यौ। लुंगायां सूं व्यवहार कम ईं राखणो अर जितौ हो सकै बीतौ कम ईं बोलणो ....... दोनूं अरथात अहम् पसीजणे सूं किरोध ठंडौ पड़ जावै, इयै में ईं लुगाई री लुगाई रै ढंग सूं रैवण में सौभा है, ‘लीलाधर रै केयौड़ो है। इरै पछै म्हारै तो मन में ओई सोच राख्यौड़ो है।

‘दूजी बार मासी भळै बोली: ‘ईतौ कांई सोचै है, सरला ....!’

म्हैं मासी नै जांणू हूं कै बां म्हनै पडूतर देवण तांई बेबस कर रहयी है।

‘कांई नीं, म्हारै सूं मांडाणी ईं बोली जग्यौ।’

अेकदफे इण सूं पैलां ईं ईयां म्हां सूं ‘किंईनी’ बोलीजग्यो हो।

‘लीलाधर अठै कांई काम करै हैं’ मासी म्हनै भळै जाणै नींद सूं जगाई हुवै।

‘लीलाधर अठै टेलीफोन ऑफिस में मोटौ अफसर है। ऑफिस खानी सूं इण नै बंगलौ अर गाड़ी मिल्यौड़ी है .......’ म्हैं मासी नै मन ईं मन में घणी बाळणी चांवती ही। हवै तो लीलाधर नै आपरै बाप-दादा री जमीन-जायदाद ई मिळग्यी है, म्हैं तो घणी-सौरी सुखी हूँ। मासी रै मुंडै रो रंग फीकौ पड़तो देखणं री घणी ईंछयां ही जिकी आज पूरी हुग्यी। सायद म्हैं इती खुसी, इत्तौ आणंद, इती तिरपती रो कदेयक लखाव नीं करयौ हो। मासी रै मुंडैरी उड़ती हवा, आंख्यां रा डोळां नीचांनी झुकग्या, कैई तरै रै सवालां में उळझयौडो मुंडौ, सरपणी ज्यूं बार-बार जीभ नै लपलपावती जाणै कोई काळा-सुखां पडयां होठां नै लीला राखण तांईं ! वाह आज तो साचमाच में रंगत जमग्यी, मासी नै नरक री यातना भोगण तंई सागी आंख्यां सूं जोवण रो सुपणौ पूरौ होय रहयौ हो।

‘भगवान रै घरां देर है पण अंधैर नीं है।’ म्हारै हियै आयौडा बोल होठां माथै ईं रैहग्या।

‘थूं तो मन में जाणी हुवैलां के म्हैं थनै ओळखी नीं हूं, बेटी। थ्हारै गयां पछै थारौ मासौ थ्यारी घणी खोज-खबर करी ही। थ्हारो अŸाौ-पŸाौ नीं लिल्यौ जणा बें म्हनैं मैणां-मौसां देवण में किं कौर-कसर छोड़ी कोनी। पछै तो म्हैं ईं घणी पछताई के म्हारै कोई टाबर-टिगंर तो नी हो म्हनै उण अनाथ री मां बण‘र रैवणो चैइजतौ। बियां भी मासी बैन रै टाबरां‘री आधी मां रो हक हुवै है। मासी अर मां में किंई फरक नीं हुवै। पण बेटी कंई करां, मीनख नै आपरै कुकरमां रो पसतावौ हुवै जद तांई घणौ मोड़ौ हुय जावै है। अब म्हनै लखावण लाग्यौ हो कै मासी रै बोलां में पसतावौ झलक रहयौ है।

‘झळके हुवै लां, हवै म्हारो ईणां तांई इतौ हेताळ म्हारै मन में नीं रहयौ।’ म्हैं कडवै बोलां सूं बार करियौ।

‘थूं चाहै भलै ईं भूलग्यी हुवैलां सरली, पण थ्हारौ मासौ थनै अेक दिन ही नीं भूल्यौ है।’

‘थ्हानै म्हैं चिŸा आवती ईं जणै तो अबार ओळख लीनी ही, आई गणीमत समझौ।’

म्हैं बळबळतौ डांभ चैपर पूठ फैर लीनी। म्हैं बठै सूं टूरण लागी, जणा बोली:

‘ठीक है बेटी, थूं केवै जीके करमां‘री कींट तो म्हैं ईं हूँ। म्हैं थ्हनै कम संताई है।’ मासी होठ भींच‘र बसकै नै रोक लिन्हौ। बी री आंख्यां आसुंओं सूं डबडबा आई जिकै नै म्हैं देखनीं लूं, उण तरै सूं मूंडौ फैर‘र बां धोती रे पल्ले सूं आंख्यां पूंछ लीनी।

आ जतन मासी .....! आज आ म्हारै आगै बसका फाड़ै है, आ बां सागी ठसैदार सेठाणी है ? ईरौ ओई रोबीलो चैरो म्हने आ आपंरी तिरछी मींट सूं धूंजा देवती ही ......म्हारै जीवण में पैली बार मासी री आंख्यां में आंसूं देख्यां हा।

थौड़ी ताळ पछै मासी बोली: ‘देख बेटी सरली, थ्हारै घणौ मोडौ हुग्यौ ..... अबै म्हैं ईं जाऊँ हूँ। म्हैं मासी री बात्यां री अण सुणाई कर परी‘र जावती टैक्सी नै हाथ सूं ढबण रौ इसारौ करयौ, टैक्सी म्हारै खनै रूकी, म्हैं टैक्सी में बैठी, टैक्सी तेज गति सूं रवाना ...... ! मासी खड़ी-खड़ी टैक्सी नै आपरी निजरां सूं देखती रही। आखिर में टैक्सी मासी रै निजरां सूं औझल ....!