जीवनदान / उमेश मोहन धवन
कई दिनों से बीमार चल रहे सदानंद बाबू ग्रहदशा सुधारने के इरादे से पंडित जी के घर जा पहुंचे। आजकल आपके ग्रह प्रतिकूल हैं, यदि आप रविवार के दिन सात जिंदा गरई नस्ल की मछलियां बाजार से खरीद कर उन्हें वापस नदी में छोड के जीवनदान दें तो आपकी बीमारी ठीक हो जायेगी। पंडित जी ने एक उपाय बताया। वह रविवार का ही दिन था। सदानंद बाबू सीधे मछली मार्केट चले गये।” भैया जरा सात जिंदा गरई देना।” एक दुकान पर जिंदा मछली देख उन्होंने कहा” बाबूजी इहां सात का कौनो हिसाब नहीं है। छोटी मछली है, दरजन से बिकती है। या तो छ: लो या बारह।” मछली वाले ने सदानंद बाबू को दुविधा में डाल दिया।” नहीं छ: तो कम पडेंगी। ऐसा करो तुम बारह ही दे दो।” बारह मछलियां लेकर वे घर आ गये। सात मछलियां एक पालीथीन में डालकर वे नदी की तरफ रवाना होने ही वाले थे कि पत्नी की आवाज कान में पडी।” ई बाकी की मछलियन का, का करना है जी ?" वे असमंजस में पड गये। पंडिज्जी तो सात ही मछलियां नदी में डाले को बोले हैं अब आ गयी हैं बारह तो। । उन्होंने कुछ देर सोचा। अंत में उन्हें एक उपाय मिल गया। अरे करना का है, बाकी रात को चावल के साथ पका देना अब ये किस काम की। का करें मजबूरी जो है। संतुष्ट सदानंद ने अपने काम की मछलियां उठायीं और उन्हें जीवनदान देने निकल गये।