जीवन एक बांसुरी / ओशो
प्रवचनमाला
रात्रि के इस सन्नाटे में कोई बांसुरी बजा रहा है। चांदनी जम गयी-सी लगती है। सर्द एकांत रात्रि और दूर से आते बांसुरी के स्वर। स्वप्न सा मधुर! विश्वास न हो, इतना सुंदर है, यह सब।
एक बांस की पोंगरी कितना अमृत बरसा सकती है!
जीवन भी बांसुरी की भांति है। अपने में खाली और शून्य, पर साथ ही संगीत की अपरिसीम सामर्थ्य भी उसमें है।
पर सब कुछ बजाने वाले पर निर्भर है। जीवन वैसा ही हो जाता है, जैसा व्यक्ति उसे बनाता है। वह अपना ही निर्माण है। यह तो एक अवसर मात्र है- कैसा गीत कोई गाना चाहता है, यह पूरी तरह उसके हाथों में है। मनुष्य की महिमा यही है कि वह स्वर्ग और नर्क दोनों के गीत गाने को स्वतंत्र है।
प्रत्येक व्यक्ति दिव्य स्वर अपनी बांसुरी से उठा सकता है। बस थोड़ी सी उंगलियां भर साधने की बात है। थोड़ी सी साधना और विराट उपलब्धि है। न-कुछ करने से ही अनंत आनंद का साम्राज्य मिल जाता है।
मैं चाहता हूं कि एक-एक हृदय में कह दूं कि अपनी बांसुरी को उठा लो। समय भागा जा रहा है, देखना कहीं गीत गाने का अवसर बीत न जाए! इसके पहले कि परदा गिरे, तुम्हें अपना जीवन-गीत गा लेना चाहिए।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)