जीवन और मृत्यु / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी
Gadya Kosh से
(अनुवाद :सुकेश साहनी)
(एक)
मैंने ज़िन्दगी से कहा, "मैं मृत्यु को बोलते हुए सुनना चाहता हूँ।"
तब ज़िन्दगी ने अपने स्वर में परिवर्तन कर अंहकार भरे अंदाज में जोर से कहा, "लो, अब उसे सुनो।"
(दो)
हजारों साल पहले मेरे पड़ोसी ने मुझसे कहा, "मुझे ज़िन्दगी से नफ़रत है, क्योंकि इसमें दुख के सिवा कुछ भी नहीं है।"
और कल कब्रिस्तान से गुजरते हुए मैंने ज़िन्दगी को उसकी कब्र पर नृत्य करते देखा।
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