जीवन और सिनेमा की मिक्सी मे भाषाएं / जयप्रकाश चौकसे
जीवन और सिनेमा की मिक्सी में भाषाएं
प्रकाशन तिथि : 04 फरवरी 2011
सुधीर मिश्रा की फिल्म 'हजारों ख्वाहिशें ऐसी' का नाम एक शेर का हिस्सा था और मीना कुमारी के जीवन से पे्ररित उनकी फिल्म का नाम 'खोया खोया चांद' था, गोयाकि साहित्य से संबंध था। अब उनकी ताजा फिल्म का नाम है 'यह साली जिंदगी'।सुधीर ने शरद जोशी को सराहा है और उनकी स्मृति में दर्ज होगी शरद जोशी की रचना 'यह जो है जिंदगी'। यह भी संभव है कि शरद जोशी के मन में भी जिंदगी के लिए 'साली' संबोधन रहा होगा, परंतु उस कालखंड में कुछ जीवन मूल्य और इनसे जुड़ी भाषा का इस्तेमाल होता था। गोयाकि शालीनता हांफ रही थी, परंतु रफ्तार कायम थी।
आज विगत सभी कालखंडों से अधिक अनौपचारिकता सामाजिक व्यवहार में आ गई है और रोजमर्रा के जीवन में धड़ल्ले से अपशब्दों का प्रयोग किया जाता है। फिल्म संवादों और गीतों में भी धड़ल्ले से इनका प्रयोग हो रहा है। 'पप्पू कांट डांस साला...' में हिंदी और अंग्रेजी के शब्द बराबर हैं। टेलीविजन कार्यक्रमों में बोले गए शब्दों के लगभग बराबर ही 'बीप' की ध्वनि का उपयोग होता है, जो गाली को दबाने के लिए होती है।
आज का यह रवैया कादर खान के दौर की द्विअर्थी अश्लीलता से बिलकुल अलग है। कादर खान, महमूद और दादा कोंडके ने अश्लीलता और फूहड़ता प्रस्तुत की थी। रोजमर्रा के जीवन में युवा वर्ग की भाषा में प्रयुक्त शब्द उनकी आत्मीयता से जन्म लेते हैं और रिश्तों की अनौपचारिकता से रेखांकित हैं। अपशब्द हर कालखंड में सामाजिक प्रेशर कुकर का सेफ्टी वॉल्व रहा है और आज बेझिझक इनका बार-बार इस्तेमाल जीवन में तनाव के बढ़ जाने को ही इंगित कर रहा है। यह अपशब्दों का बचाव या प्रचार नहीं है, परंतु व्यावहारिक जीवन में आए परिवर्तन को समझने की कोशिश है।
अमेरिकी अर्नेस्ट हेमिंग्वे जब स्पेनिश गृहयुद्ध में कूदे तो उनसे कारण पूछे जाने पर उन्होंने युद्ध में शामिल एक पक्ष की हिमायत करते हुए यह भी कहा था, कि स्पेनिश में कमाल के अपशब्द हैं। दरअसल गालियां गजल की तरह पढऩे में कुछ लोगों को महारत हासिल होती है। इसमें किफायत भी है और पूरे वाक्य में वर्णन करने का काम एक गाली से चल जाता है। संगीतकार शंकर भी हारमोनियम पर धुन बनाते हुए डमी शब्द बोलते थे, जैसे रमैया वस्तावैया भी डमी था, परंतु उसे कायम रखा गया, परंतु वे प्राय: अपशब्दों का प्रयोग भी करते थे और वह इतना सुरीला होता था कि उन्हें बदलते हुए गीतकार को कष्ट होता था।
अपशब्दों से आप समाज के आर्थिक विभाजन को भी समझ सकते हैं। झोपड़पट्टी में इस्तेमाल गालियां, अमीरों की हवेलियों में दी जाने वाली गालियों से अलग होती हैं। श्रेष्ठि वर्ग के लोग प्राय: अंग्रेजी में अपशब्दों का इस्तेमाल करते हैं और गरीब वर्ग यही काम अपनी मादरी जबान में करता है। सपनों में भी अपने जन्म से सीखी हुई भाषा में ही बातें होती हैं और अमीरों की संगमरमरी हवेलियों के शयन कक्ष में देखे हुए सपने भी मातृभाषा में ही आते हैं। अपशब्दों का खजाना मनुष्य के अवचेतन में रहता है, जिसके तमाम रहस्य भी इन गालियों के द्वारा समझे जा सकते हैं।
बहरहाल इस समय देश की तमाम भाषाओं ने अपना शुद्ध स्वरूप खो दिया है और एक मिली-जुली भाषा ने जन्म ले लिया है। अब तो हिंदी के अखबारों में भी अंग्रेजी के कुछ पृष्ठ रहते हैं। आधुनिक जीवन मिक्सी में तमाम भाषाएं मिला दी गई हैं। वह दिन दूर नहीं जब इसी गंगा-जमुनी भाषा में कहानी और कविताएं न केवल रची जाएंगी वरन प्रकाशित भी होंगी।