जीवन का सत्य / शशि पुरवार
कमला आज शांत थी, काम होने के बाद बोली -
"ताई मै कभी भी 15 दिन काम पर नहीं आउंगी "
"क्यूँ...? आजकल कितनी छुट्टी लेती हो...?"
"ताई घरवाला बीमार है, अस्पताल में भरती है, खाना पीना भी बंद हो चुका है, गुर्दा भी काम नहीं कर रहा, बहुत दारू पीता था... नहीं सुनता था, इसीलिए यह हाल हुआ, अब कभी भी मर जायेगा"
चिंता की लहर उसके मुखमंडलपर साफ़ नजर आई।
"ओह तो पहले बता देती, ले लो छुट्टी, अभी तो तुम्हे साथ में ही होना चाहिए, मत आओ काम पर"
"नहीं ताई अभी नहीं, फिर तो 15 दिन घर पर रहना ही होगा, बिरादरी वाले भी आते है तब, काम करना भी जरूरी है, पेट व घर चलाने के लिए काम तो करना ही पड़ेगा, फिर अभी खर्चा तो होना ही है, पैसा कहाँ से आएगा। वह तो चला जायेगा पर काम तो नहीं रूक सकते। क्या खाना नहीं चाहिए पेट को, सभी करना पड़ता है, यह सब तो चलता रहता है. मै जब काम पर नहीं आउंगी आपको खबर कर दूँगी आप समझ जाना " कहकर शांत मन से वह चली गयी। जीवन का अमिट सत्य आसानी से कह गयी।