जीवन देने वाले / मनोहर चमोली 'मनु'
पुरानी बात है। सूरज को दुनिया बसाने की जिम्मेदारी मिली। वह धरती से बोला,‘‘तुम्हें समुद्र और नदियों को लेकर जाना होगा।’’ सूरज की बात भला कौन टालता! वह सब बिछड़ते हुए उदास थे। चलते-चलते सैकड़ों साल हो गए। फिर एक दिन धरती ने नदियों से कहा,‘‘हमें जीवन देने का काम मिला है। ख़ुशहाली बाँटनी है। जाओ। अपना अलग रास्ता खोजो। समुद्र मेरे साथ रहेगा।’’ यह सुनकर नदियाँ चली गईं।
कई साल बीत गए। एक दिन धरती ने समुद्र से कहा,‘‘मुझे हिचकियाँ आ रही हैं। शायद, बेटियाँ याद कर रही हैं। काश ! उनका हाल-चाल पता चल पाता।’’ समुद्र ने बहनों से मिलने का मन बनाया। वह एक-एक नदी से मिला। कई सालों बाद लौटा। धरती चौंक गई। वह बोली,‘‘तेरी विशालता तो आधी रह गई! बहनें कैसी हैं?’’
समुद्र ने बताया,‘‘माँ! बहनें बहुत दूर तक बहती हैं। मेरा सफ़र लंबा था। थक गया हूँ। बहनों से मिलकर अच्छा लगा।’’ धरती को तसल्ली हुई। उसे बेटियों की अक्सर याद आती। वह समुद्र को नदियों से मिलने भेज देती। समुद्र लौटता तो आधा हो जाता। धरती का दिल बैठ जाता।
वहीं सूरज यह सब देख-समझ रहा था। उसने हवा और बादल को बुलाया। सारा किस्सा सुनाया। हवा और बादल ने तेजी दिखाई। आँधी-तूफान आया। ख़ूब बारिश हुई। धरती डोलने लगी। डोलते-डोलते सूरज के चक्कर काटने लगी। नदियाँ लबालब भर गईं। उनका रास्ता बदल गया। समुद्र की लहरें उछलने लगीं। धरती पर मैदान और रेगिस्तान बन गए। पहाड़, झील और तालाबों ने आकार ले लिया। समुद्र की हैरानी का ठिकाना न रहा। नदियाँ उसके पास आने लगीं। वह उन्हें गले लगा लेता। आज भी सूरज धरती को निहारता रहता है। कभी धरती कमजोर लगती है तो परेशान हो जाता है। हवा और बादल की मदद लेता है। झमाझम बारिश होती है और धरती हरी भरी हो जाती है।