जीवन में सामान्य बने रहना बड़ी फनकारी है / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :05 अगस्त 2016
राजेश खन्ना अभिनीत 'इत्तफाक' को यश चोपड़ा ने निर्देशित किया था। यह अत्यंत साहसी फिल्म थी, क्योंकि इसमें एक पत्नी अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति की हत्या करती है और अपने घर शरण के लिए आए राजेश खन्ना पर पति की हत्या का अपराध मढ़ती है। इस फिल्म के प्रारंभिक दृश्य में नंदा सीढ़ियों से उतरती हैं तो जाने कैसे आभास होता है मानो वे कत्ल करके ही आई हैं। प्रदर्शन के वर्षों बाद नंदा से यह पूछा गया था तो उन्होंने कहा कि निर्देशक यश चोपड़ा ने उनके सीढ़ी उतरने में एक अजीब-सी हरकत दी थी। बहरहाल, इसी फिल्म को नए सिरे से पुन: बनाए जाने की तैयारी की जा रही है और अक्षय खन्ना इसमें केंद्रीय भूमिका करने जा रहे हैं। यह अक्षय खन्ना की दूसरी पारी है। विनोद खन्ना के पुत्र ने अपनी पहली पारी 'हिमालय पुत्र' नामक फिल्म से शुरू की थी। उन दिनों यह विश्वास व्यक्त किया जा रहा था कि अक्षय अपने पिता विनोद खन्ना की तरह सफल सितारे सिद्ध होंगे। ऋषि कपूर को भी यह विश्वास था और उन्होंने अपने प्रथम निर्देशकीय प्रयास 'आ अब लौट चलें' में भी अक्षय खन्ना को लिया था।
फिल्मकार जेपी दत्ता ने विनोद खन्ना के साथ युद्ध की पृष्ठभूमि पर एक फिल्म शुरू की थी परंतु वह अधूरी ही रह गई थी। उन्होंने अपनी फिल्म 'बॉर्डर' में अन्य सितारों के साथ अक्षय खन्ना को अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका में लिया था। 'बॉर्डर' की सफलता के ऑक्सीजन के साथ अक्षय खन्ना को लेकर कुछ और फिल्में बनी परंतु वे सफल नहीं हुईं। फिल्म की सफलता या असफलता का श्रेय या अपयश दोनों ही फिल्मकार को मिलना चाहिए परंतु हमारे यहां सितारों को ही निर्णायक मानते हैं। यही कारण है कि सितारों को मिलने वाला धन निर्देशक से अधिक होता है। आजकल रोहित शेट्टी कुछ हद तक सितारों वाला मेहनताना पाते हैं। हमारे दर्शक भी सितारों के लिए ही फिल्म देखते हैं। राज कपूर अवश्य ऐसे फिल्मकार थे, जिनके नाम पर दर्शक फिल्म देखने आते थे।
अक्षय खन्ना अपने पिता विनोद खन्ना से बिल्कुल अलग मिजाज के व्यक्ति हैं। विनोद खन्ना का आकर्षक व्यक्तित्व उन्हें सितारा बनाता था परंतु अक्षय खन्ना एक सामान्य व्यक्ति की तरह दिखते हैं परंतु उनमें अभिनय की प्रतिभा संभवत: अपने पिता से अधिक है। उन्होंने कुछ हास्य फिल्मों में बड़ा विश्वसनीय अभिनय किया था। प्रियदर्शन निर्देशित 'हलचल' में उन्होंने हास्य भूमिका में विलक्षण टाइमिंग प्रदर्शित की थी। अक्षय खन्ना न केवल सामान्य व्यक्ति की तरह दिखते हैं वरन उनकी रुचियां भी आम आदमी की तरह हैं। मसलन भोजन में उन्हें राजमा अत्यंत पसंद है। भोजन की मेज पर विविध व्यंजन रखे हों परंतु वे केवल राजमा से ही संतोष कर लेते हैं। सितारों की तरह कोई नाज़-नखरे या तामझाम उन्हें पसंद नहीं है परंतु अपने आत्म सम्मान के प्रति वे बहुत सजग हैं। काम नहीं िमलने के अपने समय में भी वे किसी निर्माता से काम मांगने नहीं गए। कभी फिल्म जगत की दावतों में शामिल नहीं होते और न ही उन्हें शराबखोरी की आदत है। विनोद खन्ना एक दौर में आचार्य रजनीश के सान्निध्य में थे और उनके साथ अमेरिका भी चले गए थे। अाध्यात्मिक शांति की तलाश में वे बहुत भटके और वर्षों बाद समझ पाए कि खुद की तलाश के लिए बाहरी भटकाव गैर-जरूरी है। महात्मा बुद्ध के चरम अनुयायी आनंद ने एक दिन उनसे कहा कि वह सारा जीवन उनका अनुसरण करता रहा परंतु उसे परम ज्ञान तो प्राप्त नहीं हुआ। महात्मा बुद्ध ने आनंद से कहा कि अनुसरण करने मात्र से कुछ नहीं होता। यह स्वयं के भीतर की यात्रा है, जहां परछाई भी पीछे नहीं आती। अक्षय खन्ना ने बिना किसी तामझाम या गुरु के चरणचिह्न पर चलने के बदले स्वयं को समझने का प्रयास किया है और परम ज्ञान उसका लक्ष्य भी नहीं है। वे अपने साधारण होने में खुश हैं। रोजमर्रा का जीवन जीना भी एक साधना ही है। वे एकांत से नहीं घबराते। वे ओटर्स क्लब में स्वीमिंग के लिए जाते हैं और तैराकी करके लौट आते हैं।
मित्रमंडली में रहना या अपने गिर्द लोग जमा करने का उन्हें कोई शौक नहीं है। सामान्य जीवन साधारण व्यक्ति की तरह जीते हुए, बिना किसी छलकपट में उलझे जीना ही बहुत असाधारण काम है। अक्षय खन्ना को जीवन में किसी वैचरिक बैसाखी की आवश्यकता ही नहीं है। 'इत्तफाक' फिल्म में अवसर मिलने को भी वे महज इत्तफाक ही मानते हैं। सुना है कि उन्हें खलनायक की भूमिकाओं के प्रस्ताव मिल रहे हैं। अभिनय उनकी आजीविका है और उन्हें नायक या खलनायक अभिनीत करने में कोई अंतर नज़र नहीं आता। उनका राजमा खाना भोजन के अतिरिक्त बहुत कुछ अभिव्यक्त करता है। निदा फाज़ली कहते हैं, 'औरों जैसे होकर भी बाइज्जत हैं बस्ती में, कुछ लोगों का सीधापन है, कुछ अपनी अय्यारी भी।'