जीवन संगिनी / सरस्वती माथुर
"अजी देवर जी, अब तो जैट लैग निकल गया होगा भाई, ज़रा हमसे भी बातें कर लो ना - अमेरिका के किस्से विस्से सुनाओ? "भाभी ने रघुवीर के कमरे में आकर कहा तो रघुवीर मुस्कुरा दिया।
"जी भाभी बिलकुल, मैं ज़रा अपने जिगरी दोस्त नीलेश को फ़ोन कर रहा था पर उसका स्वीच आॅफ आ रहा है। "
"अरे पर वो तो हनीमून पर गया हुआ होगा। कह रहा था कि तुम्हें यथासमय शादी का कार्ड भेज दिया है, दरअसल अचानक ही उसकी शादी तय हुई-- चट मँगनी पट ब्याह वाला मामला हो गया। वो कह रहा था कि तुम्हें फ़ोन पर सूचित कर दिया है।हमें भी बुलाया था, हम गये भी थे। हाँ यह ज़रूर कह रहा था कि तुम फ़ोन नहीं उठाते हो।"
"हाँ तो व्हाटस अप पर मैसेज तो देता --उसने लास्ट टाइम बात की थी तब भी नहीं बताया। "
"पता नहीं देवर जी यह मालूम पड़ा है कि उसने अपनी कालेज फ़्रेंड रंजीता से शादी की है।" भाभी ने कहा तो रघुवीर पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा।यह कैसे हो सकता है, रंजीता तो उसकी जीवन संगिनी बनने वाली थी।पिछले महीने ही तो फ़ोन पर बात हुई थी। तब उससे कह रही थी कि रघुवीर जल्दी आ जाओ अब इंतज़ार नहीं होता।
रघुवीर बुत बना सोच रहा था कि उसने तो सोचा था कि उसका मैसेज मिलते ही उसका यार नीलेश दौड़ा चला आयेगा। होली दिवाली पर वह उसे अमेरिका से काॅल करता था तो औपचारिक बातें ही हो पाती थी।सोचा था कि अब मिलेंगे तो कालेज के हसीन लम्हों में खो जायेगें। इसी बीच वह एक कंपनी का सी.ई.ओ भी हो गया है, जम कर पार्टी शॉर्टी करेंगें पर यह शादी की ख़बर तो रघुवीर लिये विस्फोट से कम नहीं है।इतना बड़ा धोका। गहरी साँस खींच कर रघुवीर ने खिड़की की तरफ़ देखा।
स्याह नभ से लकीर खींचता हुआ एक तारा सरसराता हुआ उसकी आँखों के सामने से निकल गया।ना जाने कहाँ जा कर गिरा होगा - टूटा हुआ तारा!