जीविका / कविता वर्मा
स्कूल के गेट पर खड़े सिक्युरिटी गार्ड ने देखते ही सलाम ठोंका। आज छुट्टी के कुछ पहले ही बिटिया को लेने पहुँच गयी थी। धूप तेज़ थी इसलिए स्कूटी टिका कर गार्ड के लिए बनी परछत्ती में शरण ली। खाली होने से वह भी खड़ा खड़ा बतियाने लगा ,बताने लगा कि गेट पर खड़े रहना ही काम नहीं है कितना सतर्क रहना पड़ता है बच्चे कैसे बाहर निकलने की कोशिश करते है, माता पिता उनके बच्चों की सिक्युरिटी के लिए बनाये नियम ही नहीं मानते आदि आदि।
वाकई बहुत जिम्मेदारी भरा काम है मैंने उसे प्रोत्साहित करते हुए कहा।
हाँ मैडम लेकिन दुःख तो जब होता है जब लोग एक गार्ड समझ कर बदतमीजी से बात करते है। हम तो यहाँ उनके ही बच्चों की सुरक्षा में लगे है। क्या करें मजबूरी है इसलिए ये काम कर रहे है। मैं भी एम् .ए . पास हूँ। पहले गाँव में था लेकिन तनख्वाह बहुत कम थी इसलिए शहर आ गया। यहाँ बहुतेरे स्कूल में नौकरी के लिए हाथ पैर मारे लेकिन जहाँ नौकरी मिली वहां तनख्वाह बहुत कम थी या बड़े स्कूल में नौकरी के लिए अंग्रेजी जानना जरूरी था। फिर देखा टीचर से ज्यादा पैसा सिक्युरिटी गार्ड की नौकरी में मिलने लगा तो यही कर लिया।
घर के आसपास के बच्चों को पढ़ा लेता हूँ तो शौक पूरा हो जाता है।अब काम तो जीविका कमाने के लिए किया जाता है न मैडम? मैं अनुत्तरित थी।