जीव-अजीवन / अशोक भाटिया

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वह पैदा तो ज़रूर हुआ था।

वह पला भी था और नहीं भी पला था। उसके माँ-बाप ने उस पर ध्यान जरूर दिया था। लेकिन भुखमरी में वे उसे ढंग से पाल-पोस नहीं सके थे।

वह पढ़ा भी था और नहीं भी पढ़ा था। उसे स्कूल में पढने डाला गया। पर भूखे पेट उसका पढने में मन नहीं लगता था। किताबें न होने की वजह से स्कूल में जाता भी कम था। सो, कभी-न-कभी तो नाम कटना ही था।

उसने नौकरी की भी और नहीं भी की। कच्ची-पक्की मजदूरी मिलती रही और छूटती रही। यही उसकी नौकरी थी।

उसकी शादी हुई भी और नहीं भी हुई। माँ-बाप ने उसकी शादी टी कर दी, पर घर में खाने-पहनने की गुंजाइश कम रहती, झगड़ा हरदम रहता। इसलिए लड़की अपने मायके चली गई।

हाँ, वह एक दिन मारा जरूर था, हालाँकि वह तो जन्म से ही मर रहा था।

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