जुआघर / हरीश बी. शर्मा

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सेक्टर पांच रै सूनै घर रो ताळो खुल्यो तो लाग्यो कोई घर-ग्रिस्थी आळा आया हुवैला। पण तीजै दिन सूं ही अठै दूजो ही रासो सरू हुयग्यो। भांत-भांत रै लोगां नो आव-जाव। जाणै सगळां नैं रातीजोगो देवण रो कोड हुवै। सिंझ्या पड़या पछै आवणा सरू हुंवता जका आखी रात टीं-टपड़ करता रैंवता।

पापा री सगत हिदायत ही, सिंझ्या बाद घर सूं नीं निकळणै री। मम्मी बतायो कै ऐ चोखा मिनख नीं है। अठै जुओ खेलण नै आवै। दारू पीवै जकी पागती में। फेर म्हारी मम्मी कांई, सगळां रा मां-बाप आप-आपरै टाबरां नैं सिंझ्या बाद घरां में सूं नीं निकळण री हिदायत दे राखी ही। सिंझ्या पड़तां ही दूजै घरां रा फाटक बन्द हुय जांवता। खुल्लो रैंवतो फगत एक फाटक। जुआघर में जावण आळा नैं किणीं री रोक-टोक नीं ही। एक दिन दो मिनख लड़ीजता गळी में आ पूग्या। कीं छूडावण सारू हाका करै हा। एक मार खांवतो भी भागण री जुगत में हो। पण दूजो घणो ठाडो। घाल‘र गळबांथ नीचै पटक लियो अर बोल्यो, ‘जीत‘र जाय सकै है कांई ?’

पैलो थूक गिटतो बोल्यो, ‘तो हारण नैं थोड़ी आयो हूं !’

इणरै सागै ही दूजै नैं जोर सूं धक्को दियो। दूजो संभळतो इण सूं पैलां ही पैलो एकापट्टी आपरी गाडी कांनी दोड़यो, किक लगायो अर बोई जा।

कालोनी आळा दूजा पाड़ोसियां दांई म्हैं भी घरआळां सागै आ फिलम आधी बारी खोल‘र देखी। मजो तो घणो आयो, पण इंयां कद तांई चालसी। ओ सोच‘र फेर सगळा उदास हुयग्या। कालोनी रा लोग उणां री धमकी नैं भूल्या नीं हा जकी अठै आवणिया दे राखी है। सगळा जाणता है कै पुलिस नैं शिकायत करण रो अरथ कांई हुवै। पुलिस नैं तो रोजीना बंधी पूगती ही। इण खातर पुलिस आळा अठीनै मूंढो ई कोनीं करता।

जुआघर रो सिरदार एक दिन अनिल अंकल, पापा अर माथुर साब नैं ऐकै सागै देख‘र पूछ भी लियो हो, ‘किंयां साब लोगां ! काम-धंधो ठीक चालै है नीं। म्हारै लायक कोई काम हुवै तो बताया। कोई ट्रांसफर आद। मिनटां में करावणै री जिम्मेवारी आपांरी।’

ऊंची पूग राखणिया आं लोगां रै खिलाफ कुण बोलै ? कालोनी रै सेक्टर पांच में लोगां रो आव-जाव बन्द हुयग्यो। कुण जाणै कद कांई हुय जावै। कोई टाबरां नैं ही उठा‘र लेय जावै। अबार इसी खबरां रोजीना छपै। पछै आपांरी छपसी।

एकाभींत रैवणियो अर्वी अर सागी काकै रो बेटो विशु भी स्कुल बस में समै मिलतो बित्ता ई मिलता। अर्वी एक दिन बोल्यो, ‘कांई करां रोहन ?’

रोहन कनै कोई जवाब जुड़तो उणसूं पैलां ही विशु बोल्यो, ‘बडेरा भी चुप रैवण में सार समझै। म्हारा पापा तो कैवै कै आंरै कोई बरोबर थोड़ी ही हुवीजै !’

तीनूं फेरूं चुप।

फगत बस चालण री आवाज ही सुणीजै ही। धीरै-धीरै दूजा स्टूडेंट आप-आपरै स्टोपेज पर उतरग्या। कंडक्टर तीनूं रै कनै आय‘र बैठग्यो। बोल्यो, ‘थै तो तीनूं ही सेक्टर पांच में रैवो हो नीं ?’
अर्वी बोल्यो, ‘हां।’

‘अच्छया, बठै कोई फैक्ट्री खुली है कांई ?’ कंडक्टर पाछो पूछयो तो तीनूं चमक्या। तीनूं सागै ही पाछा बोल्या, ‘फैक्ट्री ?’

कंडक्टर बोल्यो, ‘हां, म्हारै मोहल्लै रा लोग रोजीना दिनूंगै सेक्टर पांच में ही काम पर जावै। काल ही बात चाली कै कमाई घणी ही है। दूणी धाड़ी पक्की हुवै।’

विशु बोल्यो, ‘आ दूणी धाड़ी दूजै दिन भेळी भी हुय सकै। इसी फैक्ट्री लागी है म्हारै सेक्टर में।’

कंडक्टर बोल्यो, ‘म्हैं समझ्यो कोनीं।’

अर्वी बतायो, ‘चाचा ! बठै फैक्ट्री नीं, जुओ चालै। लोग कमावण नैं नीं, लुटावण नै जावै। थांरै मोहल्लै रा ही कांई, दूजी ठौड़ रा लोग भी पूगै।’

‘जणै ही म्हैं देखूं कै ऐ सगळा निकमा लोगां री गाडी अचाणचकै चिल्लै किंयां चढगी। जुओ खेलण नैं जावै अर बतावै कीं और।’

‘म्हांरी आफत है जकी निरवाळी। पैला सिंझ्या नैं बारै खेलण सारू निकळ जांवता, पण अबै तो पापा सगत मना कर राखी है। खेलकुद अर मौज-मस्ती सब खतम।’

तीनूं टाबरां री बात सुण‘र कंडक्टर नैं रीस आयगी। बो बोल्यो, ‘आ तो भोत माड़ी बात है। आपरी लुगायां नैं तो आ कैय‘र निकळै कै कमावण नैं जावां हां। सागै टीफण न्यारो ले जावै अर खेलै बेटा जुओ ! आज बात। कंडक्टर रा तौर देख‘र अर्वी डरग्यो। उणनैं जुआरियां रै सिरदार री धमकी अर पापा रो चेहरो याद आयग्यो।

अर्वी बोल्यो, नीं चाचा, थै कीं ना करिया। ...म्हांरो स्कूल छूट जावैलो। बै टांग तोड़ देवैला। म्हारै पापा नैं बीकानेर सूं बारै ट्रांसफर हुवण रो घणो डर लागै।’

रोहन अर विशु भी अर्वी री बात हुंकारो भरयो। बोल्या, ‘म्हे तो थै पूछयो जणै बतायो, बाकी म्हांनै तो कीं एतराज नीं है।’

कंडक्टर हंसतो थको बोल्यो, ‘इंयां कोई पोल पड़ी है कांई। केई देख्या है टांग तोड़णियां !’

अर्वी बोल्यो, ‘चाचा, इण बात नैं रैवण ही दो। थै तो आ समझलो म्हे थांनैं कीं नीं बतायो।’

‘अरे रोहन, विशु अर अर्वी ! थै तो सफा डरपोक निकळया। म्हैं तो थांनैं अैड़ा नीं जाण्या।’ इत्ती देर सूं सगळी बात दूर बैठी सुणती पदमा मैडम बोली तो तीनूं फेर चमक्या।

‘बां ..... कांई है मैडमजी कै राड़ में कांई फायदो ?’

अर्वी री बात पूरी हुवण सूं पैली मैडम बोली, ‘बात फायदै री नीं, गलत बात नैं रोकण री है। सोचो, काल थांनैं भी इसी लत लागगी जणै ?’

तीनूं एक-दूजै रो मूंढो ताकण लाग्या। और कांई करता ?

मैडम बोली, ‘सुणो ! एक काम करणो है। थांरी काॅलोनी में जुओ भी बन्द हुय जासी अर थांरी स्कूल भी नीं छूटै।’ मैडम हंसती थकी फेर बोली, ‘टांगां भी कोनीं टूटै।’

तीनूं एकै सागै बोल्या, ‘जणै ठीक है।’

‘तो फेर आवो।’ मैडम तीनूं रै सागै कंडक्टर नैं भी बात समझाई।

कंडक्टर सूं बोली, ‘थांनै काल ही औ काम करणो है।’

कंडक्टर तो पैलां सूं ही त्यार हो। बोलो, थै चिंत्या ही ना करो।’

दूजै दिन तीनूं स्कूल पूग्या उणसूं पैली ही पदमा मैडम हैड सर सूं बात कर लीनी ही। हैड सर तीनूं री पीठ थपथपाई। कंडक्टर नैं बुलायो अर बोल्या, ‘आ बडी समाजसेवा है, थांनैं जस मिलसी।’

तीनूं कंडक्टर सागै स्कूल सूं निकळया अर सीधा प्रताप बस्ती पूग्या। बस्ती में लुगायां पैली सूं त्यार ही।

तीनूं जणां उणां नैं असली कथा सुणाई। सुणावता-सुणावता खुद रोवणखारा हुयग्या। अर्वी बोल्यो, ‘म्हैं लारलै दस दिनां सूं सिंझ्या-पड़ी खेल नीं सक्या।’

तीनूं री बात सुण‘र लुगायां भी पिघळगी। बोली, ‘जे थांरी बात साची है तो थांरो खेल आज सूं फेरू सरू हुवैला।’

कालोनी रै सेक्टर पांच रै जुआघर रो सही-सही ठिकाणो देय‘र तीनूं कंडक्टर सागै पाछा स्कूल आयग्या। स्कूल में किसो मन लागै हो। पूरी छुट्टी हुई तो सगळां सूं पैली बस कनै पूग्या। कंडक्टर बोल्यो, ‘आज घणा खाथा आया रे, नीं जणै तो हेला मारतो थक जाऊं।’

विशु बोल्यो, ‘फैक्ट्री रै ताळो लागतो देखणो है नीं।’

कंडक्टर बोल्यो, ‘ताळो तो लागग्यो हुवैला।’

कंडक्टर री बात साची निकळी। बस सेक्टर पांच में पूगी तो बठै दरसाव ई दूजा हा।

जोरदार रै हाकै बिचाळै कीं लोग दौड़ता दिख्या अर लुगायां उणां नैं रूकण रो कैंवती लारै दौड़ै ही। तीनूं लुगायां जुआघर रै सिरदार नैं घेर‘र खड़ी हुयगी। अर जोर-जोर सूं बकण लागी। सिरदार नैं पैली बार इसो पीळो पड़योड़ो देख्यो।

इण हाकै रै बीच तीनूं बस सूं नीचै उतरया अर चुपचाप घर में घुसग्या। उणां नैं डर हो कै कठैई लुगायां ओळख नीं लेवै।

बाकी सगळा इण दरसाव रा मजा लेय रिया हा अर अर्वी चैन सूं आपरै जूतां रा कस्सा खोलतो गाणो गावै हो। रोहन बस्तो एकै कांनी न्हाख परो बारी खोल‘र बारै रै दरसावां रो मजो लेवै हो। अर विशु बारै खड़ी मम्मी नैं हेलो मारयो, ‘मम्मी ! म्हनैं जोर री भूख लागी है ...।’

विशु री आवाज सुण‘र मम्मी आई तो विशु अणजाण बण‘र पूछयो, ‘कांई हुयो मम्मी ?’

मम्मी बोली, ‘हुवणो कांई हो, जुआरयां नैं पुलिस तो सीधा नीं कर सकी, उणां री लुगायां ठीक कर दिना।’

विशु बोल्यो, ‘इण रो मतलब, अबै अठै जुओ बन्द !’

मम्मी बोली, ‘लागै तो आ ईज है। जुआरी उण जगै कदैई नीं खेलै, जकी जगै रो ठा घरआळां नैं पड़ जावै।’

विशु बोल्यो, म्हे तो खेल ही सकां।’

मम्मी चमकी। बोली, ‘कांई ?’

विशु हंसतो थको बोल्यो, ‘अरे मम्मी क्रिकेट।’

आ कैवतो विशु खूणै में पड़यो आपरो बेट उठा‘र बारै दौड़यो। अर्वी अर रोहन बाॅल-विकेट लियोड़ा पैलां सूं त्यार हा। किणी नैं आ जाणण री फुरसत नीं ही कै औ हुयो किंयां ? 15 अगस्त नैं स्कूल रै इनामां री घोषणा हुई जद सेक्टर रै लोगां नैं असली बात ठा लागीं।