जुगत / प्रमोद कुमार शर्मा / कथेसर

Gadya Kosh से
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मुखपृष्ठ  » पत्रिकाओं की सूची  » पत्रिका: कथेसर  » अंक: जुलाई-सितम्बर 2012  

पींपै मांय, आटो तो कोनी हो पण बीं री चमक हमेस दांई बरकरार ही। लारलै ही महीनै तो ल्या'र दियो गोपालियै, नुंवो। पैलड़ो पींपो इत्तो बोदो हुग्यो कै बीं रै माइनै सूं आटो झरण लागग्यो। 'लै भई श्यामा। और बात तो ठीक। पण ईं पींपै रो कांई करसी?' श्यामै री आंगळ्यां खाली पींपै ऊपर डामकी बजाण लागगी। इत्तै मांय अेक मोटै पेट आळो चूसो फरड़-फरड़ करतो कांदां रै छूंतका ऊपर सूं निसरग्यो।

श्यामजी दास री निजरां लारो करती कई दूर तो चूसै रै पाछै गई, पछै होळै-होळै ठप्पा खावती पाछी बावड़'र पींपै रो जायजो लेण लागी।

सूरज दो हाथ चढग्यो। जिण सूं झूंपड़ी री छात सूं च्यानणै रा मोखला-सा नीचै उतरै हा। नीचै-झूंपड़ी रै आंगणै मांय गदर मचरी। भांत-भांत रा लीरा-लपोरा। प्लास्टिक री बोतलां। फाटी-पुराणी गीताजी रा बरका। अेक पुराणी-सी संदूकड़ी। अेक दरी लपेट'र बींरै मांइनै काम्बळ बांध्योड़ो। अेक पासै हारमोनिम। झूंपड़ी रै माइनै रो ओ चितराम देख'र कोई भी कैय सकै कै अठै रैवणियों जावणै री तैयारी करण लागर्यो है।

झूंपड़ी नैशनल हाइवे ऊपर अेक जूनै मिन्दर रै सजै पासै बण्योड़ी ही। झूंपड़ी श्यामजी दास कोनी बणाई, बल्कि बां रै गुरू लालजी महाराज थरपी। बियां तो बै श्यामजी नै कोनी राखता, पण श्यामजी रो गळो बड़ो मीठो हो। भजन तो गंगाजी रै पाणी दांई बैवता। ओ तो ठा कोनी कै श्यामजी भजन कीं सूं सीख्या, पण जद बीं रै भाई सेठ बनवारी लाल बीं नै हेली संू काढ दियो हो, उण रै पछै बण स्हैर रै मिन्दरां मांय ई गुजारो कर्यो। स्यात बां दिनां मांय बो भजन री पेड़्यां चढणी सीखग्यो।

अेक दिन भजन सुण लियो गोपाल। आपणै नैशनल हाइवे ऊपर बण्योड़ी गोकुल मनोहर गौशाळा रो चौकीदार। गोपाल तगड़ो भजनी। पण सागै गांजै-चिलम रो सौक राखै। दोन्यूं ई सौक बो लालजी महाराज री झूंपड़ी मांय पूरा करतो। जद बण श्यामजी रो भजन सुण्यो तो बीं रो हाथ झाल'र महाराज कन्नै लेय आयो। महाराज अेकर तो मुकरग्या, पण जद गोपाल घणी सिफारिस करी तो बै मानग्या।बियां भी बांनै उतरादै बास सूं भिक्छा मांगण जावता जोर आवण लाग्यो हो। अर बै सोचता हा कै कोई सेवक मिलज्यै। श्यामजी हमै लालजी महाराज री सेवा करतो झूंपड़ी मांय रैवण लाग्यो। पण लालजी कोई दो म्हीनां मांय ही आप री देही रो त्याग कर दियो। झूंपड़ी मांय आवणियां भगतां मिल'र बां री समाध बणा दी अर श्यामजी नै इन्चार्ज। श्यामजी नित-नेम समाध री सेवा करतो। धीरै-धीरै भगतां तो आवणो बंद कर दियो। क्यूंकै श्यामजी मांय बांनै लालजी री मस्ती नीं लाधती। हां, गोपाल रो आवणो कोनी रुक्यो....।

पण आज तो अजै तांई बो भी कोनी आयो। श्यामजी पींपै नै ऊंचायो अर रसोवड़ै सूं आंगणै माय आयग्यो- जठै, घणो सारो अळसीड़ै बरगो सामान खिण्ड्यो पड़्यो हो। बण पींपै नै होळै-सी सामान बिचाळै छोड़ दियो अर खुद बीं पुराणी-सी सन्दूकड़ी पर बैठग्यो। मोच खायोड़ी सन्दूकड़ी करड़-करड़ री आवाज करती दो-च्यार आंगळ थल्लै बैठगी- श्यामजी हांस्यो। खुदो-खुद ई। फेर संको-सो करतो मूण्डै पर हाथ फेरतो सोचण लाग्यो- 'हांसूं नईं तो के करूं? मेरै मन री गत तो देख सांवरा! है कीं कोनी मेरो- फेरूं भी सोचण ढूक्यो हूं कै साथै के-के चिज्यां लेय'र जावूं। जदकै साथै कोनी चालै सूई भी...।

ईयां सोचतो-सोचतो श्यामजी पींपै नै फेरूं देखण लाग्यो। अबकै पतळै-सै मूण्डै पर, मोटै आलू बरगै माथै नीचै खाडै बरगी आख्यां रै दोन्यूं पासै पतळी-पतळी सळां भेळी होवण लागगी। बीं री निजरां साम्हीं चमकतो पींपो धीरै-धीरै छोटो हुवण लाग्यो- अठै तांई कै वो अलोप हुग्यो- कांई जरूरत है पींपै री। नुंवी जिग्यां म्हूं आटै आळी रमाण ई कोनी राखूं। जे अठै भी ना राखतो तो आज री दांई आत्मा नै हीणो नीं हुवणो पड़तो। आदमी नै क्यां तांई चाइजै आटो। जीवणै सारू ई नीं। पण म्हारै जैड़ा लोगां रो कांई जीवणो.... अर कांई मरणो? असल मरणो तो संग्रै है। म्हैं संग्रै करूं ई कोनी। भलांई आटो हुवै।

'अरै कियां अेकलो ई बैठ्यो मंतर-सा बोलण लागर्यो है।' श्यामजी आवाज पिछाण ली। बण मुड़'र देख्यो- गोपालियो ई ऊभो हो। 'आज्या बीरा। मांइनै आज्या।'

गोपाल आपरै गमछै सूं बायां रो पसीनो पूंछतो झूंपड़ी रै मांइनै आवता-आवता खिण्डेड़ो सामान देख्यो तो हैरानी सूं बोल्यो- 'क्यूं भाया। आज ओ के सांगो? कीं अड़ंगो बांध राख्यो है। कीं खिण्डा राख्यो है। चक्कर के है?' कैवतो-कैवतो गोपाल बिस्तरै री गांठ पर बैठग्यो। श्यामजी कई ताळ तो गोपाल री बायां पर उग्योडै़ काळै मुरण्ड बाळां रै गुच्छा नै देखतो रैयो। पछै धीरै-सी बोल्यो- 'चक्कर तोकीं कोनी। चक्कर तो ईं देही रो है। इणनै तो पाप ही कराणा है।' इत्तो कैयर श्यामजी चुप होग्यो। गोपाल हैरानी सूं आपरी बायां पर उग्योड़ा बाळ देखण लाग्यो। जिणां पर हाल भी श्यामजी निजर टेक राखी ही। बण सोच्चो- कांई म्हांसूं कोई पाप हुग्यो? पण फेरूं भी चुप चुपातो सांस रोक'र बैठ्यो रैयो अर श्यामजी री आंख्यां रा खाडां मांय भूत-भूंवाळी खावतो बीं री अगली बात नै अडीकण लाग्यो।

पण श्यामजी तो चुप। बियां ई अपलक गोपालियै री देही ने जोवतो। झूपड़ी मांय सरणाटो सांस लेवण लाग्यो कै अेक चीड़ी चूंच ऊंची नै कर परी गीत गावण लागगी। सरणाटो टूटग्यो, पण श्यामजी अबार भी चुप।

'अरै तो फेर के आग लागगी देही नै, मेरा पितर। कीं आगै बोल तो सरी। ओ सामान कियां बांध राख्यो है?'

श्यामजी गोपाल री सवालिया आवाज सुण'र आपरी नाड़ कीं ऊंची चकी अर लगैटगै रोवतो-सो बोल्यो- 'जी तो करै कै आंख्यां फोड़ ल्यूं। देही नै लाम्पो लगाल्यूं। पण आतम-हिंसा करणो भी पाप है। इण वास्तै भाया दण्ड सरूप अठै सूं म्हारी रवानगी ही म्हैं तै करी है।' 'दण्ड। रवानगी। म्हूं कीं समझ्यो कोनी?' गोपाल चोळै री गोझ सूं सिगरेट अर गांजै री पुडिय़ा काढतो कीं हैरानी सूं सवाल दाग्यो तो श्यामजी सन्दूकड़ी सूं उठ'र खड़्यो हुग्यो। आपरा दोन्यूं हाथ पीठ पीछै बांध्या अर क्लास टीचर दांई झूंपड़ी मांय घूमतो-घूमतो कैवण लाग्यो- 'देख भाया। लालजी महाराज कैवता कै देही रा तीन पाप है। देख्या, सुण्या अर कर्या। जे तीनां मांय सूं कोई पाप कुण्डली पकड़ल्यै तो फेर विष्णुजी ई लैरो छुडावै तो छुडावै, बाकी कुण?'

'तो यार बता तो सरी, कण कर दियो पाप?' सुवाल सुण'र श्यामजी कई ताळ तो झूंपड़ी रै आंगणै मांय खिण्डेड़ी चीज्यां देखतो रैयो। फेर थिर आवाज मांय बोल्यो- 'म्हां सूं?'

गोपाल कई ताळ तो श्यामजी रो मूण्डो जोवतो रैयो। पछै जोर सूं हांस्यो। इत्तो कैबीं रो टींडसी मान सरीर बिस्तरै री गांठ ऊपर ब्लैडर दांई नाचण लाग्यो। श्यामजी कई ताळ तो बीं री हरकत बरदास्त करी। पछै रीस मांय उकळतै आपरा हाथ खोल लिया अर गोपाल कानी हांफळा-सा मारतो बोल्यो- 'क्यूं म्हारै सूं पाप कोनी हुय सकै? म्हूं देवता हूं? अर पछै पाप रा कोई परमट हुया करै? साळो। पग-पग पर पाप ऊभो है। तो पछै म्हैं कोई औतार तो हूं कोनी।'

श्यामजी कैय'र आपरी राफां सूं धोळा-पीळा-सा झागला पूंछ्या अर हांफतो-सो ऊभो होय'र झूंपड़ी सूं बारै देखण लाग्यो।गोपाल बिस्तरै री गांठ सूं उठ परो होळै-सी आपरो हाथ श्यामजी रै कांधै ऊपर राख्यो अर कैयो- 'भाया, माफ करी। म्हारी वजै सूं थारै हिवड़ै नै तकलीफ हुयी। पण यार, जचै कोनी। तूं कद माकर पाप कर सकै?'

'अैं-हैं.....कर्यो कोनी। हुग्यो।' श्यामजी नाड़ पाछी मोड़'र बोल्यो तो गोपाल देख्यो कै बीं री आंख्यां पाणी सूं भरीजगी ही। 'बैठ।' गोपाल श्यामजी रो हाथ पकड़'र बीं नै पाछो सन्दूकड़ी पर बिठा दियो। अर खुद बिस्तरै री गांठ पर बैठण सूं पैलां सुराही सूं पाणी रो गिलास भर्यो अर श्यामजी नै पीवणै वास्तै झला दियो। श्यामजी घूंट-घूंट पाणी पीवण लाग्यो। गोपाल बिस्तरै री गांठ ऊपर बैठ'र आपरो ध्यान श्यामजी रै मूण्डै पर लगा लियो। श्याम जी रो मूण्डो पवितर लागै हो। बीं री आंख्यां दूर तांई सोचै ही। कदै-कदास बो आपरी रूद्राक्ष री माळा नै आंगळ्यां सूं पंपोळ लेवतो। लाल रंग रै धोती-चोळै मांय बो कोई पीर लागै हो। झूंपड़ी मांय अेक अमूझणी बापरगी। जकी नैशनल हाइवे पर लंघता साधनां रै घुर्राट सूं कीं ओर बेसी हुज्यावती। छेवट श्यामजी बोल्यो- 'बात काल सिंज्या री है। म्हूं हरमेस दांई भिक्छा मांगण उतराधै बास गयो। थानै तो बेरो ई है कै म्हूं ज्यादा घर कोनी करूं। बस, वै ई च्यार-पांच घरिया। इत्तै मांय आपणो काम चालज्यै। पण का'ल च्यारूं पांचूं घरिया खाली गया। केठा सगळां रै के आग लागगी। सगळा बंद मिल्या। तो म्हूं हिम्मत कर परो आगी नै चाल्यो। मोहनजी पन्सारी आळी गळी रै छेकड़लै घरां बड़्यो ही हो कै पाप पग पकड़ लियो।'

गोपाल इत्ती देर सांस रोक्यां बैठ्यो हो। होळै-सी बोल्यो- 'पण कियां? इस्यो तैं के कर दियो?'

'कर्यो कोनी भाया। हूग्यो।'

'कियां?'

'ईयां कै म्हानै बीं घर रै हिसाबदारै रो पतो कोनी हो। म्हूं गेट खुलो देख'र थोड़ो-सो आगीनै बध'र हेलो मार्यो तो देख्यो कै साम्हीं आंगणै मांय कोई लुगाई गाभा धोवै ही। बण आपरी साड़ी नै गोडां तांई भेळी कर राखी ही। जिण सूं बीं री गोरी-गोरी घीयै बरगी चिकणी पिण्ड्यां साम्प्रतै दिस्सै ही। जिण पर पाणी री बूंद्यां इण ढब चिलकै ही जिण ढब आकास-गंगा मांय तारा चिलके करै। बीं रा हांचळ कब्जै सूं लटकता-सा दिस्सै हा। बीं रै माथै पर पसीनो हो कै पाणी ठा नीं। पण बा लुगाई इन्नै-बिन्नै सूं बेखबर होय'र थापी सूं गाभा धोवण लागरी ही।

म्हारी आवाज बण सुणी कोनी।

दूसर म्हारी आवाज निकळी कोनी। पतो है गोपाल क्यूं? क्यूं कै म्हारी निजरां बीं नार रै डील ऊपर चिपगी ही। म्हूं चेता चूक होग्यो। म्हानैं ठा कोनी हो कै जनाना रो सरीर इण ढब पुरख नै हेला मारै। पण म्हूं कांई करतो। पाप पग पकड़ लियो। कोई मिन्ट खण्ड म्हूं ईयां आंख्यां फाड़्यां ऊभो रैयो। इत्तै मांय लारै सूं बीं रो मरद के ठा कठै संू आयो अर म्हारै कांधै ऊपर हाथ मेल'र करड़ाई सूं बोल्यो- 'क्यूं लाडी! के देखै? हैं...तेरै कोई मा-भैण है'क कोनी। साळै रै मूण्डै पर मारी नीं अेक धोळ री तो चक्कर आ ज्यासी। कुण है तूं? क्यूं खड़्यो है।' बण ईयां पूछ्यो तो म्हूं आपरी झोळी आगै करता थकां कैयो कै म्हूं श्यामजी दास साध हूं। आटो मांगण आयो हूं।

'साधां रा अै काम? ईयां लुक-मीचणी करतां लुगाई रा मजा लेवै। चल भाग अठै सूं। नईं तो मार खासी।'

इत्ती ताळ मांय बा जनाना भी आयगी। दोन्यूं जणां रोळा मचावण लाग्या। म्हूं कियांई ज्यान बचार भाज्यो अर अठै तांई पूग्यो।' इत्तो कैय'र श्यामजी सांस लियो अर बात रो सारांस इण ढब अरथायो- 'क्यूं। हुग्यो नीं पाप। अबै ईं जिग्यां रैवण मांय कोई पुन्न कोनी। ईं बस्ती मांय म्हारी आंख्यां नागी हुगी। म्हैं अठै बदनाम हुग्यो। हमै अठै कीकर रैवूं। ईं वास्तै अठै सूं रवानगी लेय'र परदेसां जावणै री त्यारी करै हो।'

इत्तो कैय'र श्यामजी बगनी आंख्यां सूं आपरो सामान देखण लाग्यो। बीं नै गोपाल बोल्यो- 'तूं भी यार के बात करे? लोग तो आंख्यां ई आंख्यां माकर के ठा के-के देख लेवै अर अेक तूं है कै पाप नै सिर बांध्यां बैठ्यो है। चोद्या कीं कोनी पाप-पुन्न। सब निजरां रा धोखा है। अर फेर जकी लुगाई री देही तूं बारै सूं देख'र आयो है, वीं देही नै भीतर तांई कई लोग देख चुक्या है। लाडी, म्हूं समझग्यो- तूं बंसी धोबी रै घरां पूगग्यो। बा धोबण तो अेक नम्बर री मजालेऊ औरत है। बीं नांव मांय तो कईयां सवारी करी है। और तो और तेरै बेल्ली अण गोपालियै भी। ईं वास्तै लाडी ज्यादा पछतावो मत कर।' इत्तो कैय'र गोपाल श्यामजी रो मूण्डो जोवण लाग्यो। श्यामजी री आख्यां मांय कीं हैरानी जागी, पण पाछी सोयगी। क्यूंकै गोपालियो अैड़ो ई मिनख हो। पण बो आप रो निर्णय कियां बदळै। ईं वास्तै सन्दूकड़ी सूं उठतो-उठतो बोल्यो- 'भाया। तूं कीं मान चाहे। म्हैं तो आत्मा री करसूं। म्हानै जावणो ही पड़सी। म्हारो सामान त्यार है। म्हैं तो बस थानै ही अडीकै हो। भलो रैयो तूं आयग्यो। हमै आपरो ओ पींपो पाछो लेज्या। म्हानै तो आगै ईं री जरूरत पड़ै कोनी।' गोपाल भी बिस्तरै री गांठ ऊपर सूं खड़्यो हुग्यो। बण श्यामजी रो बाहुड़ो झाल बड़ी भावुकता सूं कैयो- 'बीरा। अैड़ी के सौगन खाली। बैठ्योभजन करै हार। कुण पालै तन्नै। तेरे बिना म्हारो जी कियां लागसी?' बींरी बात सुण'र श्यामै कैयो- 'जीव तो लगावणो पड़ै। पण भाया देही छूट्यां फेर जीव कठै जासी? ईं वास्तै जीव री मुगति री जुगत तो जीवतै जी ई करणी पड़ै गोपाल। म्हारी अब अठै पेस कोनी पड़ै। म्हूं आपरी मुगति री जुगत करूं भाया तो करण दे।'

इत्तो कैय'र श्यामजी आपरो सामान चकण लाग्यो। पेटी अर बिस्तरबंध नै पीठ पर टांग्यो। अेक हाथ मांय झारी अर दूजै मांय सन्दूक। 'तो चालां फेर गोपाला।' श्यामजी कीं कांपती-सी आवाज मांय कैयो तो गोपाल बोल्यो- 'बड़ी गजब बिदाई ली यारा। पण देखां, फेर कठै मिलां। पण म्हारी अेक बात तो राख ले - म्हारी यादगार सारू ओ पींपो तो साथै लेज्या।'

'अैं-हैं। आ कोनी हुय सकै। नुंवी जिग्यां म्हूं घरां सूं नईं, बाजार सूं भिक्छा मांगसूं। बठै पींपै री कांई दरकार। हाथो-हाथ मांग्यो। हाथो-हाथ खायो।' बीं री आ बात सुण'र गोपाल हांस्यो अर आंख मारनै हांसी रो भेद खोलतो बोल्यो- 'पण लाडी। बजारां मांय किस्या पड़दा हुवै। बठै तो के लुगाई अर के मरद.... दोन्यां रा मोटा-मोटा नागा फोटू हुवै। जिग्यां-जिग्यां मरजादा रा गाभा फाटै। बठै तूं कांई करसी।'

गोपाल री बात सुण'र श्यामजी बीं री मोटी-मोटी आंख्यां देखतो बोल्यो - 'भाया। बाजार म्हारो देख्योड़ो है। म्हूं बाजार वास्तै आंधो हूं। म्हानै के लेवणो है पोस्टरां सूं। म्हारी हियै री तो अठै ई फूटगी ही। हमै तो आगै रो राह देखणो है भाई, आगै रो। तो फेर म्हनैं पींपै रो के करणौ है।' इत्तो सुण'र गोपाल भी श्यामजी रै लारै चाल पड़्यो।

दोन्यूं झूंपड़ी सूं बारै आय'र लालजी री समाध पर धोक देवण लाग्या। धोक देयां पछै दोन्यूं जद सड़क कानी चाल्या तो अचाणचकै ई गोपाल बोल्यो- 'यार। अेक बात तो है। पींपो है तो नुंवो। क्यूं नीं ओ म्हैं बंसी धोबण नै देय'र थोड़ो-सो पुन्न और कमा लेवूं।' कैय'र गोपाल हांस्यो। श्यामजी वींरै गोळ-मतीरै बरगै मूण्डै पर चपत लगाई अर आगै चाल पड़्यो।

गोपाल झूंपड़ी कानी पींपो लेवण व्हीर हुग्यो।