जुदाई में पनपती एक प्रेम कहानी / जयप्रकाश चौकसे

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जुदाई में पनपती एक प्रेम कहानी


रणधीर कपूर पत्नी बबीता के साथरणधीर कपूर और बबीता के व्यक्तित्व अलग हैं तथा दोनों एक ही पहाड़ पर लावा उगलने वाले दो ज्वालामुखियों की तरह हैं, परंतु पहाड़ के नीचे किसी सतह पर उनका उद्गम एक ही जगह हुआ है। ऐसा लगता है। बबीता व्यावहारिक है और रणधीर कपूर मस्तमौला,लेकिन दोनों एकसमान मुंहफट हैं ..जब हम होंगे 60 साल के और तुम होगी पचपन की, बोलो प्रीत निभाओगी बचपन की’ यह मुखड़ा ‘कल, आज और कल’ के गीत का है तथा यह रणधीर कपूर की पहली निर्देशित तथा अभिनीत फिल्म थी, जो सन् 1971 में प्रदर्शित हुई थी। यह गीत रणधीर कपूर और बबीता पर फिल्माया गया था। आज एक 60 पार है, तो दूसरी पचपन पार है और उन्होंने अपने लड़कपन की प्रीत को अपने अंदाज में निभाया भी है। यह अदांज अजीब-सा है और इसे आसानी से समझा भी नहीं जा सकता है, क्योंकि आज के दौर में ‘नजर से दूर तो दिल से भी दूर’ माना जाता है और शारीरिकता के इस सघन कालखंड में जुदाई के रूहानी मायने की बात करना भी पागलपन है। रणधीर कपूर और बबीता कोर्टशिप के तीन साल के बाद विवाह के 18 वर्ष एक ही छत के नीचे रहे, परंतु गुजरते दो दशकों से अलग-अलग मकान में रहते हुए भी फोन पर बात करते हैं और कभी-कभी मुलाकातें भी होती हैं तथा सबसे बड़ी बात एक-दूसरे की फिक्र करते हैं। वर्तमान पीढ़ी के फिल्म प्रेमी उन्हें करीना कपूर और करिश्मा के माता-पिता के रूप में जानते हैं।

रणधीर कपूर के पिता राज कपूर महान फिल्मकार हुए हैं और रणधीर उनका ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते उनके विराट साम्राज्य के युवराज माने जाते थे। बबीता के पिता हरि शिवदसानी किसी जमाने में एक स्टूडियो के मालिक थे, परंतु इस प्रेम कथा के पनपने के समय वे एक चरित्र अभिनेता मात्र थे और कमोबेश शोमैन सम्राट राजकपूर के दरबारी। अत: रणधीर सफेद घोड़े पर सवार राजकुमार की तरह थे और बबीता मिल्स एंड बून की गरीब नायिका। उनके बीच लड़कपन से ही दोस्ती थी और चुहलबाजी का रिश्ता देखते-देखते प्रेम में बदल गया। बबीता जीपी सिप्पी की ‘राज’ में राजेश खन्ना के साथ आई और कुछ सफल फिल्मों की नायिका रहीं। रणधीर कपूर के साथ उसने ‘चीख’ नामक फिल्म की थी, परंतु उनकी पहली और आखिरी प्रदर्शित फिल्म आरके की ‘कल आज और कल’ थी। दोनों का विवाह धूमधाम से 1970 में हुआ।

रणधीर कपूर और बबीता के व्यक्तित्व अलग हैं तथा दोनों एक ही पहाड़ पर लावा उगलने वाले दो ज्वालामुखियों की तरह हैं, परंतु पहाड़ के नीचे किसी सतह पर उनका उदगम एक ही जगह हुआ है। बबीता व्यावहारिक है और रणधीर कपूर मस्तमौला, लेकिन दोनों एकसमान मुंहफट हैं और काले को काला कहने में झिझकते नहीं, वे थोड़े से सु:ख के लिए भी काले को मटमैला कहने को तैयार नहीं। वे समझौता करके अस्थायी शांति से बेहतर युद्ध करते रहना पसंद करते हैं। वे जरा भी डिप्लोमैटिक नहीं हो सकते।

रणधीर कपूर के पास हास्य का अद्भुत माद्दा है और वह हर महफिल की जान बन जाता है। संभवत: इसी स्वभाव के कारण उसने मात्र तीन फिल्में निर्देशित की हैं, जिनमें ‘धरमकरम’ और ‘हिना’ सफल फिल्में हैं। वहीं ‘आज कल और आज’ खूब सराही गई फिल्म है।

आपको अपने हास्य के कारण महफिल में तुंरत ही प्रशंसा मिल जाती है लेकिन फिल्म बनाने की प्रक्रिया तकलीफदेह और लंबी है तथा उन सब सिनेमाघरों में आप मौजूद नहीं होते, जहां तालिया बजती हैं। रंगमंच पर भी त्वरित प्रतिक्रिया मिलती है इसलिए रणधीर कपूर ने चवालीस साल के कॅरियर में महज तीन फिल्में बनाई हैं। यह संभव है कि उनकी पत्नी बबीता ने स्वप्न देखे हों कि उनका पति आरके का युवराज सिंहासन पर बैठेगा और अपने पिता की तरह अनेक सफल फिल्में बनाएगा। हम रिश्तों से बड़ी अपेक्षाएं करने लगते हैं और अपेक्षाओं के पूरे नहीं होने पर रिश्ते को कटघरे में खड़ा कर देते हैं। इसके साथ यह भी हम नजरअंदाज नहीं कर सकते कि महफिलबाज, यारों के यार रणधीर कपूर ने अपनी ऊर्जा को सृजन की नदी की ओर ले जाने का प्रयास नहीं किया। रणधीर कपूर जीवन के थियेटर में हंसते-हंसाते रहे और अपने व्यहार में वे यथार्थ के उस खिलंदड़ जोकर की तरह रहे जिसकी कल्पना राजकपूर के सिनेमा का केंद्रीय विचार रहा है। हम अपने ईर्दगिर्द किसी भी हंसोड़ व्यक्ति को कभी रोते हुए नहीं देखते। संभवत: वे अंधेर कोने में छुपकर कहीं रोना है। मुखौटे कब आपके चेहरे बन जाते हैं, आप जान ही नहीं पाते। बबीता एक व्यवहारिक महिला है और कोई भी विराट छवि उसके सीमित दृष्टिकोण में नहीं समाती, परंतु उसने अपने पति की तथाकथित असफलता को अपने अवचेतन में अंकित किया तथा अपनी पुत्रियों को सफल सितारा बनने के काम में जुट गईं और वह उसने कर दिया। अलग-अलग रहते हुए भी उन्होंने कभी तलाक का प्रयास नहीं किया, क्योंकि उनके बीच कहीं कोई तीसरा व्यक्ति नहीं है। उन्होंने तनहाई को साधा, जुदाई को नया स्वरूप दिया, परंतु दोनों कभी अपनी निजता और स्वतंत्रता के साथ समझौता नहीं किया। वे दोनों सर्कस के ट्रेपीज कलाकार की तरह हैं, जो झूले के प्रवाह में एक-दूसरे को कभी-कभी स्पर्श करते हैं, परंतु कोई एक फिसलकर नीचे नहीं गिरे, इसका ध्यान रखते हैं।