जूं बाई का भाग्य / गिजुभाई बधेका / काशीनाथ त्रिवेदी

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एक थी जूं। एक बार उसकी इच्छा ब्याह करने की हुई, और वह ब्याह के लिए निकल पड़ी। चलते-चलते रास्ते में उसे एक कौआ मिला।

कौए ने पूछा, "जूं बाई! कहां जा रही हो?"

जूं ने कहा, "ब्याह करने।"

कौआ बोला, "मुझसे ही ब्याह कर लो।"

जूं ने पूछा, "खाऊंगी क्या? पीयूंगी क्या? पहनूंगी क्या ओढूंगी क्या?"

कौए ने कहा, "दाने खाना, पानी पीना, पंख पहनना और पंख ओढ़ना।"

जूं बोली, "नहीं-नहीं, मुझकों ब्याह नहीं करना है।"

कुछ दूर जाने पर जूं बाई को एक कुत्ता मिला।

कुत्ते ने पूछा, "जू बाई! कहां जो रही हो?"

जूं ने कहा, "ब्याह करने।"

कुत्ता बोला, "मुझसे ब्याह कर लो।"

जूं ने पूछा, "खाऊंगी क्या? पीयूंगी क्या? पहनूंगी क्या और ओढूंगी क्या?"

कुत्ते ने कहा, "रोटी खाना, पानी पीना, पहनने-ओढ़ने को कुछ नहीं मिलेगा।"


जूं बोली, "नहीं, नहीं, मुझको ब्याह नहीं करना है।"

जूं कुछ और आगे बढ़ी। रास्ते में मोर मिला।

मोर ने पूछा, "जूं बाई! कहां जा रही हो?"

जूं ने कहा, "ब्याह करने।"

मोर बोला, "मुझसे ही ब्याह कर लो।"


जूं ने पूछा, "खाऊंगी क्या? पीयूंगी क्या? पहनूंगी क्या और ओढूंगी क्या?"

मोर ने कहा, "मोती खाना, पानी पीना, पंख पहनना और पंख ओढ़ना।"

जूं बोली, "नहीं, नहीं मुझको ब्याह नहीं करना है।"

कुछ दूर और जाने पर उसे एक भैसा मिला।

भैंसे ने पूछा, "जूं बाई! कहां जा रही हो?"

जूं ने कहा, "ब्याह करने।"

भैंसा बोला, "मुझसे ही ब्याह कर लो।"


जूं ने पूछा, "खाऊंगी क्या? पीयूंगी क्या? पहनूंगी क्या और ओढ़नी क्या?"

भैंस बोला, "घास खाना, पानी पीना, पहनने-ओढ़ने को कुछ नहीं।"

जूं बोली, "नहीं, नहीं, मुझको ब्याह नहीं करना है।"

जूं बाई कुछ दूर और गई, तो रास्ते में पीपल का पेड़ मिला।

पीपल ने पूछा, "जूं बाई! कहां जा रही हो?"

जूं ने कहा, "ब्याह करने।"

पीपल बोला, "मुझपे ही ब्याह कर लो।"

जूं ने पूछा "खाऊंगी क्या? पीयूंगी क्या? पहनूंगी क्या और ओढूंगी क्या?"

पीपल बोला, "हवा खाना, पानी पीना, पत्ते पहनता और पत्ते ओढ़ना।"

जूं बोली, "नहीं, नहीं। मुझको ब्याह नहीं करना है।"

और कुछ दूर जाने पर रास्ते में एक चूहा मिला।

चूहे ने पूछा, "जूं बाई! कहां जा रही हो?"

जूं ने कहा, "ब्याह करने।"

चूहा बोला, "मुझसे ही ब्याह कर लो।"

जूं ने पूछा, "खाऊंगी क्या? पीयूंगी क्या? पहनूंगी क्या और ओढूंगी क्या?"

चूहे ने कहा, "रोटी खाना, घी-गुड़ खाना, दूध पीना, पीताम्बर पहनना और चीर ओढ़ना।"

जूं बोली, "बहुत अच्छा। मैं तुम्हीं से ब्याह करती हूं।" ऐसा कहकर जूं बाई ने चूहे के गले में वरमाला पहना दी।


चूहे ने पीपल के एक पेड़ पर घर बनाया और वह जूं बाई के खाने के लिए रोज़-रोज अच्छी-अच्छी चीजें लाने लगा।

जूं बाई मन-ही-मन कहतीं, ‘चूहा अच्छा पति है।’

होते-होते एक दिन चूहा गुड़ से भरी गाड़ी में से गुड़ लेने पहुंचा। चूहे को पता नहीं चला कि गाउ़ी चल पड़ी। इसलिए वह गाड़ी के पहिए के नीचे आ गया और कुचल गया।

जब जूं बाई को पता चला कि उसका पति मर गया है, तो वह पीपल से नीचे उतरी और चूहे के पास पहुंची। घंघट निकालकर वह रोने-बिलखने लगी:

कौए पर रीझी नहीं, कुत्ते पर रीझी नहीं,

मोती चुगने वाले मोर पर, रीझी नहीं।

भैंसे पर रीझी नहीं, पीपल पर रीझी नहीं।

कैसे मेरे भाग, चूहे पर रीझी।