जूतियाँ / दीपक मशाल

Gadya Kosh से
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कितनी ही महँगी जूतियाँ पहिन लीं उन्होंने पर 'बात' ना बनी, चलने पर चुर्र-चुर्र की आवाज़ ही ना आती।।

जबसे किसी ने उन्हें बताया कि, 'जूतियों की ये ख़ास आवाज़ व्यक्ति के आत्मविश्वास को दर्शाती है जो कि उसकी सच्चाई से आता है।' तब से उन्हें गूंगी जूतियाँ रास ना आतीं। पगार में से दो हज़ार रुपये चपरासी को देकर आज फिर नई जूतियाँ मँगाईं।

कमाल हो गया!! इस बार, नई चमचमाती काली जूतियाँ पहिन जब वो फर्श पर चले तो कमरा चुर्र-चुर्र की ख़ास ध्वनि से गूँज उठा।

चलते हुए वो सोच रहे थे, “अपनी जेब से पैसा गया तो गया पर आत्मविश्वास तो आया।“