जेपी दत्ता की नई फिल्म पलटन / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :02 फरवरी 2018
जेपी दत्ता की निर्माणाधीन फिल्म 'पलटन' में सरहद पर तैनात बहादुरों के घरों में परिवारों की चिंताओं और परेशानियों का विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है। उनकी एकमात्र सफल फिल्म 'बॉर्डर' में फौजियों की प्रेम कहानियां प्रस्तुत की गई थीं। 'बॉर्डर' की सफलता का एक स्तम्भ फिल्म जावेद अख्तर के गीत और अन्नू मलिक का संगीत था। राजनीतिक स्वार्थवश सरहदों को सुलगता हुआ रखा जाता है। फौजियों के परिवार के लोग प्राय: चिंतित रहते हैं और रोजमर्रा के जीवन में भी वे युद्धरत ही रहते हैं। महंगाई निरंतर बढ़ती जा रही है और जवानों के परिवारों को महंगाई एवं असुरक्षित समाज में सांस लेना भी कठिन हो जाता है। दरअसल, हर घर एक बंकर की तरह है, जिसके बाहर झांकने का प्रयास भी जानलेवा सिद्ध होता है। परिवार को बच्चों की परवरिश करना है और बच्चे तर्कहीन शिक्षा प्रणाली में कुंठित होते रहते हैं। युवा वर्ग को यथेष्ठ अवसर नहीं मिल रहे हैं। आज ही जारी किए गए बजट में किसानों को राहत दिए जाने का स्वागत है परंतु इससे महंगाई बढ़ेगी। मध्यम वर्ग की कमर टूट सकती है।
ज्ञातव्य है कि जेपी दत्ता के पिता भी लेखक एवं फिल्मकार थे परंतु उनके नसीब में एक अदद 'बॉर्डर' भी नहीं थी। रणधीर कपूर जब 'धरम-करम' बना रहे थे तो जेपी दत्ता उनके सहायक निर्देशक नियुक्त हुए। उसके बाद जेपी दत्ता की पहली फिल्म 'सरहद' विनोद खन्ना के अमेरिका जाने के कारण अधूरी ही रही परंतु उन्हें धर्मेंद्र और मिथुन चक्रवर्ती अभिनीत 'गुलामी' फिल्म बनाने का अवसर मिला। 'गुलामी' में 'जिहाल-ए-मस्ती मकुन-ब-रन्जिश, बहाल-ए-हिज्र बेचारा दिल है, सुनाई देती है जिसकी धड़कन तुम्हारा दिल या हमारा दिल है' गीत अत्यंत लोकप्रिय हुआ। ज्ञातव्य है कि इसे अमीर खुसरों की मूल रचना में खफ़ीफ़ सा अंतर करके बनाया गया था। फिल्म ने लागत पर नाम मात्र का मुनाफा कमाया परंतु उसके बाद 'यतीम,' 'क्षत्रिय' आदि फिल्मों में बहुत घाटा हुआ। उन्होंने बॉर्डर की सफलता को बनाने के लिए 'एलओसी' नामक युद्ध फिल्म बनाई, जिसमें अनेक सितारों को लिया गया था परंतु फिल्म ने पानी नहीं मांगा। इसी के साथ प्रदर्शित राजकुमार हिरानी की 'मुन्नाभाई एमबीबीएस' खूब सफल रही थी।
जेपी दत्ता ने अभिषेक बच्चन एवं करीना कपूर को 'रेफ्यूजी' नामक फिल्म में प्रस्तुत किया। फिल्म की असफलता के बाद उन्होंने एक और हादसा 'उमराव जान अदा' का किया, जिसमें ऐश्वर्या राय ने केंद्रीय भूमिका अभिनीत की थी। मुजफ्फर अली रेखा के साथ 'उमराव जान अदा' बना चुके थे और वह फिल्म सफल भी हुई थी। खय्याम साहब की उस फिल्म का संगीत यादगार सिद्ध हुआ। इन असफलताओं के कारण जेपी दत्ता ग्यारह वर्ष के वनवास के बाद लौट रहे हैं।
जेपी दत्ता का विवाह अभिनेत्री बिंदिया गोस्वामी से हुआ है और उनकी बेटी को भी बतौर नायिका प्रस्तुत करने की घोषणा सरकारी घोषणा की तरह महज कागजी ही धरी रह गई। जेपी दत्ता ने अपनी सभी फिल्मों की आउटडोर शूटिंग राजस्थान में की है। ज्ञातव्य है कि जेपी दत्ता के भाई हवाई सेना में पायलट थे और मिग उड़ान में मारे गए थे। उनकी उड़ान युद्ध के समय नहीं हुई थी वरन एक अभ्यास उड़ान में हुई थी। वे अपनी डायरी लिखते थे और जेपी दत्ता को सेना में जीवन की जानकरी उन्हीं डायरियों को पढ़ने से मिली। जेपी दत्ता फिल्म माध्यम से प्रेम करते हैं परंतु उनका नज़रिया छद्म देशप्रेम का है और वे पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष भी नहीं हैं। दरअसल, एक फिल्मकार के पास निरपेक्ष दृष्टिकोण का होना जरूरी है। उसे प्रपोगेंडा से बचना चाहिए। जेपी दत्ता किसी तरह के नेश के आदी नहीं हैं और विशुद्ध शाकाहारी हैं।
हम आशा करते हैं कि 'पलटन' में वे सैनिकों के परिवारों के संघर्ष का मार्मिक चित्रण करेंगे। परिवार सारा समय जीवन यापन के भयावह युद्ध में उलझे रहते हैं। इस कतरा-कतरा, क्षण-क्षण की शहादत कहीं किसी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं होती। यह एक तरह से सैनिक की पत्नी व परिवार का 'बाकी इतिहास' है। याद आती है एक अमेरिकी फिल्म जिसमें ऐसा परिवार प्रस्तुत किया गया है, जिसके सारे पुरुष सैनिक रहे हैं और परिवार के एक सदस्य को बचाने के प्रयास किए जाते हैं। 'सेविंग द प्राइवेट रायन' अत्यंत मार्मिक फिल्म थी।