जेरिन और चमकीली आँखों वाली नेहा / पद्मा राय
मीनू, साहिल और विनयना तीनों की ग्रेड अच्छी आयी। नया वर्ष, पुराने साथी, पुराना क्लासरूम लेकिन नयी क्लास टीचर, नयी क्लास में प्रमोशन और अंजना दीदी की जगह ले ली थी 'शीतल दीदी' ने। वे सब 'शीतल दीदी' को पहले से जानते तो थे लेकिन पहले दिन में उनसे सिर्फ एक दो बार मिलते थे पर अब शीतल इन सबकी क्लास टीचर हो गयीं हैं - लगभग पूरे दिन वे उन सबके साथ रहतीं हैं। अब बच्चे शीतल के साथ अच्छी तरह से घुल मिल गयें हैं और खुश हैं। बहुत दिनो के बाद आज जब उन सबसे मिली तब वे मुझसे बात करने में झेंप रहे थे। उन्हें शरम आ रही थी। उनकी हरकतें देख कर मुझे लगा जैसे इतने दिनों मे ही वे सब बडे हो गयें हैं। मुझे देख कर विनयना ने अपनी गर्दन दांयीं ओर झुकायी और फिर अपने सिर को सामने की टेबल पर रख कर अपनी आंखें ढक लीं।शर्माने का यह अनूठा अंदाज मुझे अच्छा लगा।
उन सबसे मिल कर जब मैं क्लास रूम से बाहर निकली तब सामने वाले कमरे के दरवाजे पर लिखे अक्षरों ने मेरा ध्यान अपनी तरफ खींचा।अंग्रेजी के बडे अक्षरों में वहां लिखा था- एन। एफ। ई।- इसका अर्थ क्या हो सकता है? बहुत माथा खपाया लेकिन समझ में नहीं आया।वहां रूकने की कोई जरूरत तो थी नहीं इसलिए आगे बढने लगी।ठीक उसी समय एक महिला, जो शायद किसी बच्चे से मिलने आयी होगी, ने उस कमरे के दरवाजे पर हाथ रख कर उसे खोलने की कोशिश की। दरवाजा शायद अंदर से बन्द नहीं था, इसलिए जरा सा दबाव पडते ही खुल गया।मैं अभी उस कमरे से एकाध कदम ही आगे जा पायी थी।मुझे लगा जैसे जेरिन ने मुझे आवाज दी हो -
“पऽऽऽ दऽऽऽऽ माऽऽऽ दीऽऽऽ दीऽऽऽ।”
मैंने इधर उधर देखा। कहीं कोई नहीं था।आगे बढ ली।तभी फिर से वही आवाज कानों में पडी।
“पऽऽऽ दऽऽऽऽ माऽऽऽ दीऽऽऽ दीऽऽऽ।”
उल्टे पैर लौट ली। सीधे अंजना की क्लास में जाकर उससे पूछा -
“अंजना, जेरिन कहां है? दिखायी नहीं दिया।” मीनू की क्लास में तो था नहीं।”
“जेरिन को - एन। एफ। ई।-में शिफ्ट कर दिया गया है।”
“- एन। एफ। ई।- ही तो लिखा हुआ है सामने वाले कमरे के दरवाजे पर। अच्छा। लेकिन इस शब्द का मतलब मेरी समझ मे नहीं आया,बतायेंगीं?”
““- एन। एफ। ई।- मीन्स् नान फार्मल एजुकेशन।”
“ओह ! जेरिन को तो आपने मीनू के साथ ही प्रमोट किया था और वह उसी क्लास में गया था।फिर ऐसा क्या हो गया कि उसे दूसरी क्लास में शिफ्ट कर दिया गया।?”
“मीनू की क्लास में बच्चे ज्यादा हो गये थे जिसमें से जेरिन की तो एक्स्ट्रा केयर भी करनी पडती थी इसलिए।उसकी क्लास टीचर अनिता है और हेल्पर कोई नयी महिला है।”
बताते हुए अंजना उदास हो गयी। मुझे याद आया कि पृथ्वी के अलावा जेरिन टॉयलेट जाने के लिये किसी और को नहीं बताता था।खासकर किसी महिला से। अब किससे कहता होगा? सोचने लगी -कितने दिन लगे थे जेरिन को उस क्लास में एडजस्ट होने मे। धीरे धीरे उसने अपनी एक छोटी सी दुनियां बना ली थी। जो अभी अभी बनी थी इसलिये नयी थी। मन भर कर रह भी नहीं पाया उसमें कि उजड ग़यी।
उमडते हुये मन को संभालते हुये मैंने आगे कुछ नहीं पूछा और तुरंत वहां से बाहर निकल आयी।अनायास ही मेरे पैर - एन। एफ। ई।- क्लासरूम की तरफ बढ ग़ये। दरवाजा पूरा खुला था।उस दरवाजे से टिककर अनीता खडी थी और उनके सामने वही महिला। अपने बच्चे के विषय मे जानकारी हासिल करने आयी होगी।अनिता से पूछ कर मैंने उस कमरे में प्रवेश किया।दरवाजे के ठीक सामने स्टैंण्डिग पोजीशन में जेरिन दिखायी दिया। पहले की ही तरह बंधा हुआ है। चश्मा अभी भी उसकी आंखों पर है किन्तु उसके पीछे से झांकती आंखों की चमक गायब है। चुप-चाप खडा जेरिन उदास है और शायद इसीलिए कुछ नहीं बोल रहा है। मेरी बात कौन सुनेगा यहां पर? किसी बच्चे को किस क्लास में रखना है, इसका निर्णय ये लोग किस आधार पर करतें हैं, उन सबके बारे में मैं जानतीं ही कितना हूं? किन्तु अगर मुझसे कोई राय मांगता तो मैं यही कहती कि जेरिन को वापस उसी क्लास मे भेज दिया जाये। लेकिन मुझसे कौन पूछने आ रहा है? अपने सिर को मैंने एक तरफ झटका और फिर जेरिन की तरफ देखा। उसकी आख़ें हमेशा की तरह ऊपर छत पर अटकी थीं, उसे देखते ही मैं सीधे उसके पास पहुंची।उसका हाथ अपने हाथ में लेकर मैंने कहा-
“जेरिन, गुड मार्निंग।”
“गुड मार्निंग।” छत पर अटकीं हुयीं आंखें नीचे उतर आयीं। परन्तु इस समय भी उसने मेरी ओर न देखकर कहीं और ही देखना बेहतर समझा। उसकी मर्जी। पर मैंने महसूस किया कि उसके चेहरे का भाव बदल रहा है।मैंने पूछा-
“ जेरिन, मैं कौन हूं?”
“पऽऽऽ दऽऽऽऽ माऽऽऽ दीऽऽऽ दीऽऽऽ।” सुनकर कैसा तो लगा।
“अच्छा,तो जेरिन को मेरा नाम याद है !” मेरी बात सुनकर जेरिन हंसने लगा और मैने सोचा, जेरिन की याददाश्त कितनी अच्छी है।
“जेरिन, इस बच्ची का नाम तुम्हे मालूम है?” उसकी बांयीं तरफ बैठे बच्चे की तरफ इशारा करते हुए मैने पूछा -
“पुष्पा ऽऽऽ।” दूसरी दिशा में देखते हुए उसने उस बच्ची का सही नाम बताया।
“और वो?” उसी पहले वाली जगह पर नजरें जमाये-जमाये उसने फिर कहा -
“पुष्पा ऽऽऽ।”
जेरिन के अलावा इस कमरे मे पांच बच्चे और हैं। बारी-बारी से मैंने सबका नाम पूछा। हर बार एक ही जवाब मिला - 'पुष्पाऽऽऽ'। इस नाम के अलावा इस कमरे में उसके साथ मौजूद रहने वाले किसी बच्चे का नाम वह नहीं जानता। एक बात और, वह ये भी नहीं जानता कि यह पुष्पा नाम आखिर है किसका? अभी सबसे अपरिचित है जेरिन। इसीलिए अकेला भी है और उदास भी। ऐसा मुझे लगता है।
थोडी देर वहीं बैठने का जी किया।जेरिन के बगल में रखी मेज पर बैठ गयी।
“जेरिन नम्बर सुनाओ।”
“वन,टू, थ्री....।” ताली भी बजायी जेरिन ने। फिर पोयम, उसके बाद 'क' 'ब' 'स' 'द' सभी अक्षरों को भी पहचाना उसने और हर बार सही पहचानने पर शाबासी भी दे ली अपने को। पिछली क्लास में जो कुछ सीखा था वो सब अभी भी उसे याद है।
“पऽऽ दऽऽ माऽऽ दीऽऽ दीऽऽ आज पापा ऽ घर पर हैं और मम्मी भी। सामने दीवार की तरफ देखते हुये जेरिन ने मुझे बताया।
हेल्पर जो एक औरत थी उसी समय अपने हाथ में कोई निकर जैसी चीज लेकर इस क्लास में आयी। मुझे वहां जेरिन के पास बैठे हुये देखकर उसने कहा-
“अब देखिये न दीदी यह जेरिन की पैंट है। फिर पेशाब कर दिया। बताता ही नहीं। आज सुबह से दो बार अपनी पैंट खराब कर चुका।”कह कर वह बाहर धूप में उसे सुखाने के लिये चली गयी।
मैं सन्न थी। जेरिन के पक्ष में कुछ कह नहीं पायी।जेरिन की तरफ देखा -उसकी आंखें वापस छत पर टंग गयीं थीं।उसके बालों को सहलाने लगी।
तभी अनिता ने अचानक मेरे पास आकर मुझसे पूछा -
“अभी आप यहां है न?”
“हां, क्यों?”
“ कुछ देर इन बच्चों का ध्यान रखियेगा मैं अभी आयी।”
उन्हें मैंने आश्वस्त किया और वहीं बैठ गयी। इस कमरे में आने के बाद से अब तक मैंने सिर्फ जेरिन की तरफ ध्यान दिया था।अनिता के जाने के बाद मैंने एक सरसरी निगाह से अपने चारों ओर देखा। मेरी दांयीं तरफ एक जाना पहचाना चेहरा मौजूद था। “ओह! तो नेहा भी अब इसी क्लास में शिफ्ट कर दी गयी है। याद आया, पहले तो नेहा शीतल के क्लास में थी।सांवली-सलोनी, बडी-बडी चमकीली आंखों वाली नेहा ज्यादातर एक मीठी सी मुस्कान के साथ सबका स्वागत करती, आज उस पर दर्द हावी है। पूरी सावधानी के साथ उसे बांधा गया है। निवाड क़ी बेल्ट को क्रास करके उसके कमर से कंधे तक के हिस्से को जिस कुर्सी पर वह बैठी है उसी से बांध दिया गया है। किसी तरह का रिस्क नहीं होना चाहिए। अगर उसे बांधा न जाये तो उसका बैठना असंभव है, वह वहीं लुढक़ जायेगी। वह अपना कोई काम नहीं कर सकती। उसे अपने हर काम के लिए किसी न किसी की मदद की जरूरत पडती है। अभी मुझे वहां आकर बैठे हुए कुछ ही देर हुयी थी कि नेहा अजीब अजीब सी हरकतें करने लगी। मेरी निगाह उधर गयी। उसने अपने हाथों को पूरी ताकत से बाहर की तरफ तान दिया और आंखों को सिकोडक़र रोने की तैयारी करती दिखी।
“क्या हुआ नेहा?”
उसने कोई जवाब नहीं दिया। बल्कि अपने हाथ,पैर सब जितना हो सकता था उतनी ताकत के साथ तानती-तोडती दिखायी पडी। मुंह टेढा हो गया था।आंखों में आंसू झिलमिलाने लगे। लेकिन इतना सब होने के बावजूद उसके मुंह से एक भी शब्द बाहर नहीं निकला।याद आया, नेहा बोल नहीं सकती। मुझे घबडाहट होने लगी। ऐसी स्थिति मेरे सामने पहले कभी नहीं आयी थी।मैंने दुबारा वही सवाल किया।
“क्या हुआ नेहा? बताओ बेटा।”
उसके चेहरे का भाव वैसे ही बना रहा। उसमें किसी प्रकार का परिवर्तन होते मैंने नहीं दैखा।धीरे-धीरे उसके होंठ भिंच गये, माथे पर की रेखायें स्पष्ट दिखायी देने लगीं और नाक भी सिकुड ग़यी। अब रोई कि तब वाली स्थिति में पहुंच गयी है नेहा। अब मैं क्या करूं? मेरी समझ मे कुछ नहीं आ रहा था। मैंने सोचा शायद इसके पैरों में कोई तकलीफ है।
“पैर खोल दूं?”
अपनी जीभ को बाहर निकालने के साथ अपने सिर को तेजी के साथ दोनो दिशाओं में उसने झकझोर सा दिया।एकाएक कुछ कौंध गया।पिछले वर्ष वह शीतल के क्लास में थी उसने इसे कुछ शब्दों के लिए कुछ इशारे याद करवाये थे। उन्हीं मे से यह एक था। अगर उसे किसी बात से असहमति जतानी हो तो वह अपनी जीभ बाहर निकाल दिया करे। इसका मतलब अब मैं समझी, 'नहीं' कहा था उसने।
उसने मेरी बात से असहमति जतायी थी। मै समझ गयी।लेकिन उसके चेहरे का तनाव और बढ ग़या। मुझे लगा कि मैं उसके मन की बात समझ नहीं पा रहीं हूं और यह बात उसकी झुंझलाहट को बढाने मे मदद कर रही थी।
“फिर टेबल हटा दूं?”
पूछते-पूछते उसके सामने से टेबल मैंने हटा भी दिया।
उसकी जीभ एक बार फिर से बाहर थी। मैंने टेबल वापस उसकी पुरानी जगह पर रख दी।तब नेहा रो क्यों रही है? हार मान ली मैंने। इन बच्चों को अकेले छोडक़र बाहर अनिता को बुलाने कैसे जाऊं? लेकिन बाहर गये बिना नेहा की बात कैसे समझ में आयेगी? मैं लगभग दौडती हुयी दरवाजे के पास पहुंची।शायद कोई हेल्पर दिखायी पड ज़ाये। उसी को भेजकर अनिता को बुलवा लूंगी। दरवाजे के पास पहुंची तो देखा अनिता सामने से चली आ रही थी। चैन की सांस ली। अनिता को सब बताया। उसने किसी प्रकार की हडबडी नहीं दिखायी।
उसे देखते ही नेहा के चेहरे का आधा तनाव छंट गया था। नेहा ने अनिता को आते हुए देख लिया था।उसे अपने पास आते हुए देखकर उसे ढाढस हुआ होगा। अनिता आराम से चलते हुए नेहा के पास पहुंची।
“क्या बात है नेहा?”
सीधे अनिता की आंखों में देखकर नेहा ने अपनी आंखों से ही उसे कुछ समझाया। उसके दिमाग ने तुरंत काम करना शुरू किया। एक सैकेण्ड के अंतराल पर उसने पूछा-
“तुम्हारी बेल्ट खोल दूं नेहा? बैठे बैठे थक गयी हो न। लेटने का मन है तुम्हारा?”
नेहा ने अपने दांत दिखाये और उसकी आंखों के आंसू न जाने कहां गायब हो गये और उनकी चमक एकाएक बढ ग़यी।दांत दिखाना मतलब -हां। ओह ! तो यह बात थी।इतनी सी बात मेरी समझ में क्यों नहीं आयी? उसकी बात अनिता समझ गयी थी और मुझे खुशी हो रही थी यह सोचकर कि अब नेहा की परेशानी कम हो जायेगी।
उसके सारे बंधन अनिता ने खोल दिये। नेहा मुक्त हो गयी और खुश होकर अपने हाथों से जल्दी जल्दी अनिता के मुंह तक अपना हाथ ले जाने की कोशिश करने लगी।वह उसे प्यार करना चाहती थी।
अनिता ने उसकी इच्छा समझी और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर उसे सहलाते हुये कहा -
“दीदी भी तुम्हें प्यार करती है नेहा।” फिर अनिता ने संभालते हुए उसे अपनी गोद में उठाया और उसी कमरे के कोने मे बिछी हुयी दरी पर ले जाकर आराम से लिटा दिया। उसके बाद उसे एक इन्सट्रक्शन दिया -
“देखो नेहा, अभी तुम्हें सोना नहीं है। समझी कि नहीं।खाना खाकर सोना।ठीक है न।”
उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला -केवल एक प्यारी सी मुस्कान चेहरे पर फैल गयी। मुझे लगा कि उसकी समझ हम सबसे कहीं ज्यादा है।हम लोगों की सारी बातें नेहा समझती है बस अपनी जुबान से कुछ नहीं कह सकती। हम ही नहीं समझते उसे और उसकी बातों को। अपनी आंखों से नेहा हमें अपनी बातें समझाने का निरंतर प्रयास करती दिखायी देती है किन्तु हम हैं कि समझ के ही नहीं देते। मैं अपने आपको बहुत होशियार समझतीं थी परन्तु अभी तो मुझे इनके साथ रहने के योग्य बनने के लिए बहुत कुछ सीखना बाकी है। मैंने तय किया कि कुछ दिनों के लिये मैं भी उस वर्क-शॉप को अटैण्ड करूंगी जिसमें इस तरह के बच्चों को हैण्डल करने के बारे मे सिखाया जायेगा और जो पन्द्रह बीस दिनों के अंदर ही शुरू होने वाला है, ताकि मैं भी नेहा जैसी चमकीली आंखों वाले बच्चों की जरूरतों और उनके मन की बातों को कुछ समझ सकूं।