जेरॉक्स : मशीनें और मनुष्य / जयप्रकाश चौकसे

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जेरॉक्स : मशीनें और मनुष्य
प्रकाशन तिथि :03 फरवरी 2018


जेरॉक्स कम्पनी जापान ने खरीद ली है। प्रतियां बनाने के कार्बन को जेरॉक्स ने बाजार से बाहर कर दिया था। अब जेरॉक्स गुजरे कल के कार्बन कॉपी की तरह हो गया है। जेरॉक्स बाजार में 1959 में आया था और 'सठियाने' तक वह लगभग नष्ट हो गया है। मनुष्यों के भी जेरॉक्स होते हैं और मान्यता है कि एक ही शक्ल सूरत के सात लोग हर काल खंड में मौजूद होते हैं। जुड़वां भाइयों के भी हाथों की लकीरें अलग-अलग होती हैं। कभी-कभी जुड़वां हमशक्ल नहीं होते। दूसरे विश्वयुद्ध के समय जर्मनी में एक अंग्रेज गिरफ्तार हुआ जिसका हमशक्ल जर्मन जेलर था। अत: जर्मन गुप्तचर विभाग ने अपने जर्मन जेलर को अपनी कैद में व्यक्ति की जगह लंदन भेजा ताकि वह वहां जर्मनी के लिए जासूसी कर सके परन्तु उसी रात एक अवसर पाकर कैदी अंग्रेज ने अपने हमशक्ल जर्मन अफसर की जगह ले ली। जर्मन सरकार ने ही उसे लंदन भिजवाया।

इसमें पेंच यह है कि ब्रिटिश गुप्तचर को जर्मन योजना की खबर लग गई थी। अत: लंदन में उस अंग्रेज को अंग्रेजी हुकुमत पकड़ना चाहती थी तथा लंदन में सक्रिय जर्मन भी उसे मारना चाहते थे क्योंकि संदेश मिल गया था कि अंग्रेज कैदी ने अपने हमशक्ल जर्मन जेलर को मारकर उसकी जगह ले ली है।

ज्ञातव्य है कि सलीम-जावेद की लिखी अमिताभ बच्चन अभिनीत 'डॉन' इसी घटना से प्रेरित फिल्म थी। गुलशन नंदा के उपन्यास 'वापसी' से प्रेरित फिल्म बारह रील बनकर अधूरी ही छोड़ दी गई क्योंकि पूंजी निवेशक का दीवाला निकल गया था। इस अधूरी फिल्म में राजेश खन्ना, जीनत अमान, राखी, अमजद खान और प्राण अभिनय कर रहे थे। सुरेन्दर खन्ना निर्देशित फिल्म का संगीत राहुल देव बर्मन ने दिया था। फिल्म के घटनाक्रम में भारतीय फौजी पकड़ा गया और पाकिस्तान की जेल में केद है तथा उसके हमशक्ल पाकिस्तानी फौजी को भारत भेजा गया है। वह छुटि्टयों में घर लौटता है तो उसकी मां उसे बताती है कि देश के विभाजन के समय उसका एक बेटा पाकिस्तान में छूट गया है। पाकिस्तान से आया व्यक्ति अब जान गया है कि वह अपने घर अपनी मां के पास पहुंच गया है और जिसे पाकिस्तान में कैद किया गया है, वह उसका अपना सगा भाई है।

यहां उसकी शादी की तैयारी हो रही है और पाकिस्तान में उसकी पत्नी अपने पति के भारतीय हमशक्ल को कैद से आजाद कराने के प्रयास कर रही है। भारतीय अफसर अपनी होने वाली भाभी से शादी नहीं कर सकता। वह भारी मानसिक तनाव में है। इसी पशोपेश के समय के लिए निदा फाज़ली ने गीत लिखा था- 'ये कंकर पत्थर की दुनिया इन्सां की मुसीबत क्या जाने, ये बेजान लकीरों का नक्शा इन्सां की मोहब्बत क्या जाने, आजाद न तू, आजाद न मैं, तस्वीर बदलती रहती है परन्तु दीवार वही रहती है।' इस गीत में दोनों मुल्कों की आर्थिक गुलामी और गरीबी के कारण शायर ने लिखा कि दोनों ही आज़ाद नहीं हैं। राजनीतिक स्वतंत्रता आर्थिक असमानता के दौर में कोई मायने नहीं रखती। हकीकत यह है कि पाकिस्तान में कुछ लोग लता मंगेशकर के गाए हुए गीत सुनते हैं और अपने उस घर की याद में टेसू बहाते हैं जो भारत में छूट गया है। इसी तरह भारत में भी कुछ लोग नूरजहां के गीत सुनते हैं और लाहौर के अनारकली बाजार में छूट गए अपने घर की याद करते हैं।

दोनों ही देशों की मौजूदा युवा पीढ़ी, बंटवारे की उस ऐतिहासिक दुर्घटना से पूरी तरह मुक्त है। उन्हें लता और नूरजहां के गीतों को सुनते हुए बुजुर्गों के टेसुओं के बहाने पर हंसी आती है। यह भी गौरतलब है कि विदेशों में बसे भारतीय और पाकिस्तानी एक-दूसरे के मित्र हैं और वे उन यादों से पूरी तरह मुक्त हैं। दोनों देशों की युवा पीढ़ियां अपने बुजुर्गों की जेरॉक्स कॉपियां नहीं हैं। यह राजनैतिक नादानी है कि सभी एक सा सोचें और एक सा आचरण करें। विविधता विटामिन है और विविधता शक्ति है।