जैकी और टाइगर श्राफ की गुरुदक्षिणा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :06 मार्च 2017
टाइगर श्रॉफ अपने पिता जैकी श्रॉफ के साथ फिल्मकार सुभाष घई से मिलने पहुंचे, जिनकी फिल्म निर्माण संस्था मुक्ता आर्ट्स विगत दशक से सक्रिय नहीं है और सुभाष घई अपनी फिल्म विधा प्रशिक्षण के संस्थान में ही फिल्मी भीष्म पितामह की मुद्रा में बैठे रहते हैं। काम और उम्र दोनों के लिहाज से सुभाष घई के लिए यादों के गलियारे में चहलकदमी करते रहना स्वाभाविक है। विगत सप्ताह वे यादों की जुगाली कर रहे थे और मानो यादों की मांद से ही निकलकर उनके पुराने शागिर्द जैकी श्राफ अपने पुत्र टाइगर के साथ उनसे मिलने पहुंचे।
पिता-पुत्र ने उनसे फिल्म निर्माण प्रारंभ करने की गुजारिश की और अपनी सेवाएं नि:शुल्क उन्हें देने की पेशकश की। खुशी है कि बाजार शासित अवसरवादी एवं गला-काटू प्रतिद्वंद्विता के दौर में भी कुछ लोग इस तरह धन्यवाद ज्ञापन करते हुए एक तरह से गुरु दक्षिणा देना चाहते हैं। सबकुछ कभी समाप्त नहीं होता, यहां हर पूर्णविराम को अर्द्धविराम ही मानना चाहिए, क्योंकि जीवन नामक भाषा का कोई व्याकरण नहीं होता। शिखर सत्ता पर बैठे लोगों का प्रलाप भी जारी है।
ज्ञातव्य है कि सुभाष घई सेल्समैन थे अौर शायद वे कोई साबुन बेचते थे। पुणे फिल्म संस्थान में उन्होंने फिल्म अभिनय का प्रशिक्षण लिया परंतु एक-दो फिल्मों में ही छोटी भूमिकाएं अभिनीत करके उन्होंने समझ लिया कि वे सितारा नहीं हो सकते तो उन्होंने अपने मित्र भल्ला के साथ मिलकर 'कालीचरण' नामक पटकथा लिखी और साहसी एवं प्रयोग पसंद करने वाले नारी सिप्पी ने उन्हें निर्देशन का अवसर दिया। इसकी मध्यम दर्जे की सफलता के बाद उन्होंने 'विश्वनाथ' और 'क्रोधी' फिल्में निर्देशित कीं। उस दौर के पूंजी निवेशक गुलशन राय के कहने पर उन्होंने सितारा पुत्रों के साथ काम किया परंतु सीनियर दिलीप कुमार और शम्मी कपूर की बैसाखियां लेकर 'विधाता' नामक फिल्म बनाई।
उनके मन में सितारा पुत्रों के अक्खड़ व्यवहार के प्रति आक्रोश था और वाल्केश्वर रोड के एक-तीन बत्ती स्थान पर दादागिरी करने वाले जैकी श्राफ को नायक लेकर 'हीरो' फिल्म बनाई, जिसमें मनोज कुमार की 'पेंटर बाबू' नामक असफल फिल्म की नायिका मीनाक्षी शेषाद्री को लिया। यह एक आक्रोश से भरे युवा फिल्मकार का विद्रोह था। फिल्म सफल रही। यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि सुभाष घई को संगीत की समझ है और उन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और गीतकार आनंद बक्षी के साथ मिलकर माधुर्य रचा और फिल्म सफल रही। इस फिल्मकार, संगीतकार व गीतकार की टीम के आदर्श थे राज कपूर, शंकर-जयकिशन और शैलेन्द्र। गौरतलब है कि आनंद बक्षी की मृत्यु के बाद सुभाष घई की फिल्में असफल होती गईं और एक गीतकार के निधन का ऐसा परिणाम कभी सामने नहीं आया। जयकिशन अौर शैलेन्द्र की असामयिक मृत्यु के बाद भी राज कपूर सफल फिल्में बनाते रहे। सुभाष घई की प्रचार टीम ने उन्हें 'शो मैन' प्रचारित किया और राज कपूर को भी 'द ग्रेटेस्ट शो मैन' के रूप में उनकी टीम प्रचािरत कर चुकी थी परंतु यह बात इसलिए उचित नहीं है कि राज कपूर सामाजिक सौद्देश्यता की मनोरंजक फिल्म गढ़ते थे और शो मैन वह होता है, जो भव्यता से प्रभावित करता है जैसे अमेरिका के सेसिल बी डीमिल को कह सकते थे परंतु अमेरिका के चार्ली चैपलिन को तो शो मैन नहीं कहते, वे तो मानवीय करुणा के गायक थे और राज कपूर के आदर्श भी।
बहरहाल, सुभाष घई की मुक्ता आर्ट्स को पुन: सक्रिय करने का टाइगर का प्रयास प्रशंसनीय है। रिलायंस एंटरटेनमेंट के आदित्य भी इसमें सहयोग कर रहे हैं और उन्होंने सुभाष घई से कहा कि वे नई फिल्म का संगीत रचे। एक बार सुभाष घई ने अपने घर इस खाकसार को पियानो पर कुछ धुनें सुनाई थीं। सुभाष घई के अवचेतन में राज कपूर गहरे पैठे हैं, क्योंकि राज कपूर के स्टूडियो और निवास स्थान पर पियानो है और वे कुशलता से इस वाद्य को बजाना जानते थे। राज कपूर की फिल्मों के संगीत में पूर्व का माधुर्य अौर पश्चिम की सिम्फनी गंगा-जमुना की तरह मिल जाते हैं। ज्ञातव्य है कि कोलकाता में राज कपूर ने शास्त्रीय संगीत के प्रारंभिक पाठ उसी व्यक्ति से पढ़े हैं, जिसने गायक मुकेश को भी संगीत की शिक्षा दी थी। इस अर्थ में वे दोनों गुरुभाई बन जाते हैं।
इस तरह के रिश्ते केवल कला संसार में निभाए जाते हैं और राजनीति मं तो प्राय: सीढ़ी खींच ली जाती है, जिस पर पैर रखकर आप शिखर पर चढ़ते हैं। बेचारे लालकृष्ण आडवाणी से बेहतर इसे कोई नहीं जानता, क्योंकि गुजरात के नृशंस सामूहिक हत्याकांड के बाद उनके दल के गोवा में आयोजित अधिवेशन में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री का निलंबन उन्होंने ही रोका था और आज वे हाशिये पर फेंक दिए गए हैं।