जैकी दादा का बदला समय / जयप्रकाश चौकसे

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जैकी दादा का बदला समय

प्रकाशन तिथि : 29 अगस्त 2012

विगत कुछ वर्षों से जैकी श्रॉफ कष्ट में थे। उनकी पत्नी आयशा के द्वारा बनाई गई 'बूम' की असफलता का आर्थिक भार कम नहीं था। ज्ञातव्य है कि आज की शिखर सितारा कैटरीना कैफ ने 'बूम' में बिकिनी की लघुता वाली भूमिका की थी। जैकी श्रॉफ के समकालीन अनिल कपूर चुस्त-दुरुस्त हैं और उन्हें भूमिकाएं भी मिल रही हैं, परंतु जैकी के पास काम नहीं था। अपने शिखर दिनों में जैकी श्रॉफ ने सोनी टेलीविजन के भारत में प्रवेश के समय कुछ शेयर खरीदे थे और कुछ दिन पूर्व ही उन्हें लगभग पचास करोड़ रुपए उन शेयरों के बदले मिले हैं, मराठी फिल्म 'हृदयनाथ' में उनकी प्रशंसा हो रही है, उनके सुपुत्र टाइगर को साजिद नाडियाडवाला ने अनुबंधित किया है। 'कवर स्टोरी' नामक फिल्म में वह खोजी पत्रकार की भूमिका कर रहे हैं। गोयाकि लोकप्रिय विश्वास के अनुसार उनका समय बदल गया है, शायद कुंडली में शुक्र की महादशा आ गई है।

पचास करोड़ रुपए बड़ी रकम होती है, परंतु एक सितारा अगर अपनी अकड़ और स्वाभाविक तर्कहीनता से चले तो मुंबई जैसे महानगर में यह रकम एक दिन में खर्च हो सकती है। मुंबई के श्रेष्ठि क्षेत्र वाल्केश्वर के निकट एक गरीब बस्ती तीन बत्ती में जैकी श्रॉफ का जन्म हुआ और वहीं वह जवान हुए। आज अगर पुराने दिनों की स्मृति में वह दो बेडरूम का फ्लैट उस बस्ती में खरीदें तो पचास करोड़ में किसी पुरानी इमारत में ही मिलेगा। यहां गौरतलब है कि हर उच्च वर्ग के क्षेत्र में गरीबों की वैध या अवैध बस्ती अवश्य रहती है। हमारे महानगरों का विकास ही कुछ ऐसा हुआ है कि उनमें कस्बे और गांव भी बसे हैं। यही वजह है कि महानगरों की किसी संकरी गली में एक ठाठिया सिनेमा भी होता है, जिसमें आंचलिक फिल्में दिखाई जाती हैं। मुंबई में भोजपुरी, तमिल, बांग्ला इत्यादि भाषाओं में बनी फिल्मों का प्रदर्शन नियमित रूप से होता है। दूसरी गौरतलब बात यह है कि हमारे महानगर अमेरिका या यूरोप के महानगरों की तरह नहीं है। हमारे महानगर हमारी रेलों की तरह हैं, जिनमें प्रथम श्रेणी के वातानुकूलित डिब्बे के साथ ही बिना आरक्षण के खड़े-खड़े सफर करने वाला डिब्बा भी लगा रहता है। अफसोस है कि वातानुकूलित वाले जानकर इस तथ्य से अनजान बनते हैं कि भीड़ भरा प्लेटफॉर्म तो एक ही है, जिस पर सभी डिब्बों के मुसाफिर उतरते हैं।

ज्ञातव्य है कि जैकी श्रॉफ अपनी जवानी में नुक्कड़ पर धमाचौकड़ी करने वाले लापरवाह व्यक्ति थे और मॉडलिंग के एक अवसर के बाद देव आनंद ने उन्हें अपनी 'स्वामी दादा' में खलनायक के सहयोगी की संक्षिप्त भूमिका दी थी। उन दिनों सितारा पुत्र संजय दत्त से परेशान सुभाष घई ने बड़े साहस के साथ जैकी श्रॉफ एवं असफल 'पेंटर बाबू' की नायिका मीनाक्षी शेषाद्रि को लेकर 'हीरो' जैसी सुपरहिट फिल्म बनाई। 'जैकी दादा की तो निकल पड़ी', कुछ ऐसा हर्षोल्लास था उनके मोहल्ले में।

उन्हीं दिनों अनिल कपूर भी संघर्ष भरे 'वो सात दिन' से निकलकर बड़ी व्यावसायिक सफलता की तलाश में थे। सुभाष घई उन दिनों अमिताभ बच्चन के साथ अपनी महत्वाकांक्षी 'देवा' बना रहे थे, फिर अहं के टकराव या अन्य किसी कारण से उनतीस लाख के खर्च के बाद 'देवा' खारिज हो गई और सुभाष घई ने जैकी श्रॉफ तथा अनिल कपूर के साथ ९ माह में सुपरहिट 'राम लखन' बनाई। जाने वह साहसी सुभाष घई अब कहां चला गया?

बहरहाल, जैकी श्रॉफ और अनिल कपूर ने दुश्मन-दोस्त की तरह रिश्ता निभाते हुए अनेक फिल्में साथ-साथ कीं। अनिल कपूर व्यवस्थित एवं संतुलित व्यक्ति रहे, जबकि जैकी अव्यवस्थित व मूडी रहे। अनिल कपूर की पत्नी सुनीता भी व्यवस्थित एवं अनुशासित रहीं तो उन्हें कभी बुरा 'समय' नहीं देखना पड़ा, परंतु जैकी का बेफिक्र अंदाज एवं उनकी पत्नी का मूडी होना ही संभवत: उनके कष्ट में आने का कारण रहा हो। दरअसल लोगों की तीन श्रेणियां होती हैं या कहें चार- कुछ लोग विगत में जीते हैं, कुछ वर्तमान में और कुछ भविष्य की चिंता में तथा चौथी श्रेणी के लोग विगत के महत्व को अवचेतन में संजोकर वर्तमान में जीते हुए अनजान भविष्य के प्रति सावधान और सचेत रहते हैं। दरअसल हर क्षण में गुजश्ता सदियों के साथ आने वाली सदियों का वजूद होता है। अनेक लोग जीवन के जाम (शराब का गिलास) में मस्त समय के जामेजम (क्रिस्टल बॉल) को नजरअंदाज करते हैं।

बहरहाल, उनके सुपुत्र टाइगर को साजिद नाडियाडवाला हीरो बना रहे हैं जो वर्तमान के शोमैन सुभाष घई हैं, जबकि सुभाष घई अतीत की स्मृतियों में ज रहे हैं।