जॉन अब्राहम का सार्थक सिनेमा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 25 जनवरी 2014
जॉन अब्राहम अभिनेता बनने के पहले जिम में विशेषज्ञ की तरह काम करते थे। महेश भट्ट ने उन्हें सितारा बना दिया। फिल्म जगत में अपने शरीर सौष्ठव के प्रदर्शन के साथ अभिनय का प्रयास भी करते रहे। उनके और बिपाशा बसु के प्रचारित प्रेम प्रकरण ने भी बाजार भाव बढ़ाया। आदित्य चोपड़ा की धूम में मोटरसाइकिल सवार चोर की भूमिका ने उन्हें खूब लोकप्रियता प्रदान की। इस तरह जॉन अब्राहम के जो रूप सामने आते रहे, उससे उनके भीतर के सच को कोई जान नहीं पाया। जॉन अब्राहम विचारशील व्यक्ति हंै और योजनाबद्ध रूप से काम करते हैं। उन्होंने अलग किस्म के सिनेमा के लिए अनुराग कश्यप की 'नो स्मोकिंग' भी की और यही अलग करने का उनका विचार उस समय सामने आया जब उन्होंने 'विकी डोनर' का निर्माण किया। यह अत्यंत मनोरंजक और सामाजिक सोद्देश्यता की फिल्म थी। इसके बाद उन्होंने 'मद्रास कैफे' नामक कमाल की फिल्म का निर्माण किया और उसमें विश्वसनीय अभिनय भी किया। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि वह सिर्फ कसरती बदन नहीं, एक विचारशील व्यक्ति हैं और बॉक्स ऑफिस के परे दुबके से छुपे सिनेमा का हिमायती भी हैं और जोखम लेने का दम गुर्दा भी है उनके पास।
जॉन अब्राहम '1911' नामक सत्य घटना पर आधारित फिल्म बना रहे हैं। इसमें कलकत्ता की मोहन बगान फुटबॉल टीम ने इंग्लैंड के एक क्लब को हराया था गोयाकि यह फुटबॉल के माध्यम से एक और 'लगान' की संभावना जगाती है। यह बात अलग है कि भारत में क्रिकेट के लिए जैसा जुनून है वैसा फुटबॉल के लिए नहीं है और '1911' का स्केल भी 'लगान' की तरह महाकाव्यात्मक नहीं है। उनकी यह भी योजना है कि मोटर सायकिल रेस पर एक विश्वसनीय फिल्म बनाई जाए। हमारी फिल्मों में मोटरसाइकिल के दृश्य विशेष प्रभाव की टेक्नोलॉजी से किए जाते हैं और इनमें सवार का पसीना और खून नजर नहीं आता।
विगत कुछ वर्षों में मोटरसाइकिल उद्योग खूब मुनाफा कमा रहा है और मस्ती मंत्र जपने वाले युवा वर्ग में यह अत्यंत लोकप्रिय है। आज के युवा वर्ग को गति के प्रति गहरा रुझान है और यह वाहन उनके लिये युवा वय का प्रतीक है। वातानुकुलित कार में आराम तो है परंतु मोटरसाइकिल सवार को ताजी हवा मिलती है और उसका खुलापन उनके भीतर के खुलेपन के आग्रह के अनुरूप है। पिछली सीट पर बैठी प्रेमिका के साथ अंतरंगता के अवसर बनते है और मशीन का हार्स पॉवर वह अपनी रगों में दौड़ता महसूस करता है। आजकल कुछ ऐसी मोटरसाइकिलें भी बाजार में हैं जिनका मूल्य लग्जरी कार से अधिक है।
विदेशी बाजार में मशीनों द्वारा बनाई जाने वाली मोबाइक्स के साथ ही हाथों से गढ़ी विरल गाडिय़ां भी बनती हैं जो बहुत महंगे दामो में बिकती है। सलमान खान एक ऐसी ही विरल मोबाइक अपने पिता सलीम खान को भेंट दी है जो अपनी युवा अवस्था में इस वाहन से बहुत प्रेम करते थे।
बहरहाल युवा वर्ग को इसकी गति के नशे में गॉफिल होकर लापरवाही से इसे नहीं चलाना चाहिए। जॉन अब्राहम और सलमान खान की तरह महेंद्र सिंह धोनी का भी यह प्रिय वाहन है और उनके पास अनेक महंगी मोबाइक्स है। जिस काल खंड की मति ही गति है तो इस वाहन की लोकप्रियता बढ़ती ही जायेगी और आर्थिक उदारवाद ने नौकरीपेशा वर्ग की संख्या में खूब बढ़त प्रदान की है। गति को अपनी मति बनाने वाले इस फैलते-फूलते वर्ग से चुनावी राजनीतिक दुर्घटनाएं भी हो सकती है।
बहरहाल जॉन अब्राहम अब धीरे-धीरे अपने सृजन स्वरूप को उजागर कर रहे हैं और वे उद्योग की गुटबाजी में भी शामिल नहीं है। वे दावतें देकर भी अपना वक्त नष्ट नहीं करते। इसका प्रमाण यह है कि वे मंबई में बड़े धूम धड़ाके से शादी कर सकते थे और मीडिया में छा सकते थे परंतु उन्होंने सारी शोशेबाजी से बचते हुए न्यूयार्क में शादी की। वे अपने माता पिता का भी खूब स?मान करते हैं और सारी व्यस्तता के बावजूद उनसे नियमित रूप से मिलने जाते हैं। क्रिसमस का पूरा सप्ताह परिवार के साथ गुजारते हैं। जॉन अब्राहम ने बयान दिया है कि वे लीक से हटकर फिल्में ही बनाना चाहते हैं क्योंकि अच्छी और सार्थक फिल्मों के दर्शकों की सं?या इतनी है कि इन नियंत्रित बजट की फिल्मों की लागत थोड़े से मुनाफे के साथ वापस आ सकती है। वितरण, प्रदर्शन व्यवस्था फैल रही है तथा सैेलाइट चैनल पर भी ये फिल्में देखी जा सकती है। उनकी नीति स्पष्ट है कि अन्य निर्माताओं की मसाला फिल्मों से धन कमाकर सार्थक फिल्मों में लगाते रहेंगे। ज्ञातव्य है कि दशकों पूर्व शशिकपूर ने भी यही किया था परंतु प्रदर्शन व्यवस्था व्यापक नहीं होने के कारण उत्सव, जुनून, विजेता और कलयुग जैसी फिल्मों में उन्हें घाटा सहना पड़ा। जॉन अब्राहम की प्रचारित छवि के कारण इस पहलवान में छुपे कवि को हम पहचान नहीं पाए। हर सार्थक कार्य करने वाला कवि ही होता है।