जॉन अब्राहम की यथार्थ परक रोचक बाटला हाउस / जयप्रकाश चौकसे

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जॉन अब्राहम की यथार्थ परक रोचक बाटला हाउस
प्रकाशन तिथि : 08 अगस्त 2019


जॉन अब्राहम और डायरेक्टर निखिल आडवाणी की फिल्म 'बाटला हाउस' प्रदर्शित होने जा रही है। यह एक सत्य घटना से प्रेरित फिल्म है। संजीव कुमार यादव एक आला अफसर पुलिस वाले हैं और विवादास्पद बाटला हाउस घटना के समय पुलिस अफसर थे और आज भी वे सक्रिय हैं। निखिल आडवाणी और जॉन अब्राहम उनसे मुलाकातें कर चुके हैं और गहरे शोध के बाद उन्होंने फिल्म बनाई है। संजीव कुमार की पत्नी शोभना ने उन्हें बताया कि उनके पति दिन भर में बमुश्किल पांच मिनट बोलते हैं। फिल्मकार ने पात्र को मितभाषी व्यक्ति की तरह प्रस्तुत किया है। बोलने में ऊर्जा लगती है और कम बोलने वाले लोग ऊर्जा के अपव्यय से बचते हैं। महीने में एक दिन मौन व्रत का पालन करने वाले सार्थकता अर्जित करते हैं। कम बोलने वाले संजीव यादव की रिवॉल्वर ही अपराधियों से बात करती रही है और उन्हें पुलिस महकमे में शूटआउट विशेषज्ञ माना जाता है। नेता कितना बोलते हैं। उनके बोले हुए शब्द भी पर्यावरण को हानि पहुंचा रहे हैं।

ज्ञातव्य है कि 2008 में दिल्ली के जामिया नगर में यह घटना घटी थी। बाटला हाउस एक छात्रावास है। अफसर संजीव कुमार यादव ने स्वीकार किया कि घटना के बाद वे अपराध बोध से व्यथित रहे। यहां तक कि उन्होंने आत्महत्या का विचार भी किया था। उनकी पत्नी ने उन्हें प्रेरित करके अपराध बोध से मुक्ति की लंबी प्रक्रिया अवधि में उन्हें बहुत सहायता की। क्या हम यह कल्पना कर सकते हैं कि फांसी पर लटकाने का काम करने वाले व्यक्ति के अवचेतन में कितनी आंधियां चलती होंगी?

फांसी पर लटकाए जाने वाले व्यक्ति से उसका कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं रहता। अवाम के अहित करने वाले दस्तावेज टाइप करने वाले व्यक्ति का क्या दोष है? उन पर हस्ताक्षर करने वाला तो स्वयं को धार्मिक बता रहा है। बाटला हाउस छात्रावास में आतंकवादी घुस गए और पुलिस ने उन्हें मार गिराया था। इस प्रक्रिया में कुछ मासूम छात्र भी आहत हुए थे। जब अन्याय से लड़ने के लिए सेना कूच करती है, तब सैनिकों के बूट के नीचे कुछ कोंपले कुचली जाती हैं, रेंगते हुए जीव-जंतु भी मर जाते हैं। इसके लिए अपराध बोध अनावश्यक है। दूसरे विश्वयुद्ध में जितने व्यक्ति मारे गए उससे कहीं अधिक लोग आतंकवाद में मारे गए हैं। आतंकवाद एक व्यवसाय है, जिसका किसी धर्म से कोई संबंध नहीं है जैसा कि फिल्म 'मुल्क' में प्रस्तुत किया गया है। जॉन अब्राहम ने भी अपनी फिल्म को पुरातन आख्यानों के प्रभाव से मुक्त रखा है।

प्रदर्शन के पूर्व मुंबई में फिल्म दिखाई गई है और सभी ने फिल्मकार तथा जॉन अब्राहम की प्रशंसा की है। ज्ञातव्य है कि जॉन अब्राहम ने कुछ फिल्मों का निर्माण किया है और कुछ फिल्मों के सह-निर्माता भी रहे हैं। ज्ञातव्य है कि राजीव गांधी की हत्या के षड्यंत्र को फिल्म 'मद्रास कैफे' में प्रस्तुत किया गया था। उन्होंने 'विकी डोनर' में भी पूंजी निवेश किया है। जॉन अब्राहम मसाला फिल्में नहीं बनाते परंतु उनकी फिल्में रोचक होती हैं और सभी फिल्मों ने लाभ कमाया है।

यह प्रचारित है कि जॉन अब्राहम को मोटर साइकिल की सवारी का शौक रहा है परंतु उन्हें शतरंज खेलना सबसे अधिक पसंद है। उनका कहना है कि शतरंज में एक चाल के समय विरोधी की विचार प्रक्रिया का अनुमान लगाने के साथ ही अपनी अगली दो चालों के बारे में भी सोचना पड़ता है। शतरंज के प्रमुख मोहरे राजा-रानी हैं परंतु मात्र एक घर चलने वाले प्यादे का महत्व सबसे अधिक है। शतरंज के खेल में घोड़ा ढाई घर चल सकता है और कतार से बाहर जाकर भी विरोधी के मोहरे मार सकता है। व्यवस्था यही काम करती है और अवाम प्यादे की तरह है, जो सबसे महत्वपूर्ण होते हुए भी उपेक्षा का शिकार होता रहा है।

जॉन अब्राहम फिल्म की पटकथा पढ़कर उसमें लगाई जाने वाली पूंजी तथा पूंजी की वापसी और लाभ-हानि का भी पूरा अध्ययन करते हैं। वे अपनी आर्थिक सीमा के भीतर सारे काम करते हैं। वे जानते हैं कि होम करते समय हाथ को ताप लगता है परंतु हाथ झुलस नहीं जाए इसका वे ध्यान रखते हैं। इस वर्ष 15 अगस्त को अक्षय कुमार अभिनीत रियल कहानी मंगल-यात्रा से प्रेरित फिल्म के साथ ही जॉन अब्राहम की यथार्थ परक रोचक फिल्म का प्रदर्शन होने जा रहा है। दर्शक सभी प्रकार की फिल्में देखते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि कल्पना के ताने-बाने में यथार्थ का रेशा और यथार्थ में कल्पना का रेशा होता है।