जोया और सूरज, अमीरों में वर्गभेद / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :09 जून 2015
जोया अख्तर ने आधुनिक उद्योगपति परिवार और समकक्ष परिवारों की कथा 'दिल धड़कने दो' में प्रस्तुत की है। कोई पच्चीस वर्ष पूर्व सूरज बड़जात्या की 'हम आपके हैं कौन' में भी अमीर परिवारों की कथा प्रस्तुत की गई थी। जोया अख्तर और सूरज बड़जात्या द्वारा प्रस्तुत अमीर घराने अलग-अलग हैं और चौथे तथा पांचवें दशक की फिल्मों में प्रस्तुत अमीर घराने और भी अलग परिवार के लगते थे। बहरहाल, हम जोया और सूरज के परिवारों के आचार-व्यवहार के अंतर से समाज में आए परिवर्तनों का मोटा अनुमान लगा सकते हैं। समाज संरचना के अंतर का अंदाज भी लग जाता है। सूरज का परिवार जश्न मनाने राम टेकड़ी जाता है, जोया का मेडीटेरियन क्रूज पर जाता है। सूरज के परिवार मंदिर नुमा घर और घर नुमा मंदिर में रहते हैं, जोया के अमीर 'व्हाइट हाउस' की तर्ज पर बने मकानों में रहते हैं। आर्थिक उदारवाद के बाद अमेरिकन आर्किटेक्चर की नकल भारत में हो रही है। सूरज के परिवार का मुस्लिम मित्र भी मिठाई खाता है, पाये नहीं खाता। वह कुछ कांग्रेस के तुष्टीकरण वाला मुस्लिम परिवार है। जोया की मुस्लिम नायिका का जन्म लंदन में हुआ परंतु अपने नाचने-गाने का जुनून उसे जहाज के मनोरंजन विभाग का सदस्य बना देता है। वह कुछ हद तक मार्क्स के विचारों की है।
दरअसल, दोनों फिल्मों में प्रस्तुत औद्योगिक घराने यथार्थ नहीं हैं। अंबानी, टाटा, अडानी परिवार ऐसे नहीं हैं। इन फिल्मी परिवारों से आप केवल औसत अमीरों के व्यवहार-विचार का अंदाजा लगा सकते हैं। बिड़ला और बजाज परिवार गांधी भक्त रहे और बिरला मंदिर शृंखला का उदय हुआ अन्यथा सारे मंदिर राम, कृष्ण, हनुमान, महावीर के होते थे। इससे आप यह भी अनुमान लगा सकते हैं कि ईश्वर अमीरों की जल्दी सुनता है! बकौल साहिर 'आसमां पर है खुदा और जमीं पर हम, आजकल वह इस तरफ देखता है कम।' अमीरों में भी कई वर्ग हैं। वहां एक किस्म की जाति प्रथा है। कुछ खानदानी अमीर हैं तो कुछ घुसपैठिए हैं। इनमें रोटी-बेटी का व्यवहार नहीं होता। दूसरे विश्वयुद्ध के समय मिट्टी के तेल के एक व्यापारी के पास दो हजार का माल था, जो काला बाजार में दस गुना मुनाफा दे गया। फिर पैसे ने पैसा बनाया और मध्यम वर्ग की बस्ती छोड़कर उसने श्रेष्ठि वर्ग के इलाके में कोठी बना ली। नेहरू ने रातोंरात रईस बने व्यक्ति के बारे में लिखा कि वे आधुनिकता का सैटेलाइट पकड़ने पंखहीन होने के बावजूद उड़े और अपनी धरती को भी खो दिया। आर्थिक उदारवाद के बाद ऐसे कई लोग अमीर हो गए। जोया की फिल्म के अमीर इसी वर्ग के हैं और इसमें व्यापार की शतरंज पर रोटी-बेटी का व्यवहार होता है।
यह आर्थिक उदारवाद का ही करिश्मा है कि सूरज ने अपनी निर्माणाधीन फिल्म में अमीर परिवार की जगह एक रजवाड़ा रख लिया। एक बार वे नवधनाड्य परिवार को 'मैं प्रेम की दीवानी हूं' में प्रस्तुत करके चोट खा चुके थे। सूरज के परिवार बिड़ला प्रभाव से बने थे परंतु अंबानी-अडानी अब कहीं आगे निकल चुके हैं। दरअसल, धीरूभाई अंबानी के प्रवेश से ही औद्योगिक परिवारों के ढांचे में परिवर्तन आ गया। आज के असली उच्चतम औद्योगिक घराने रिश्वत नहीं देते, वे अदृश्य रहकर कठपुतलियां नचाते हैं। यह भी हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमारे गणतंत्र के मुखौटे के पीछे एक सामंतवादी चेहरा भी छुपा है। अत: सूरज का राज परिवार किस किस्म का होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। यह भी गौरतलब है कि हॉलीवुड के 'टाइटैनिक' का नायक गरीब मनमौजी है, जो लॉटरी के दम पर श्रेष्ठि वर्ग के जहाज में पहुंचा है। वह भारतीय फॉर्मूले की गरीब-अमीर प्रेम कथा है। जोया के जहाज में एेसा कोई पात्र नहीं है परंतु इसकी कमी उन्होंने एक मार्क्सवादी-सी नायिका डालकर पूरी की। नायक कहता है, 'मैं हवाई जहाज उड़ाता हूं,' वह पूछती है, 'साइकिल चला लेते हो?' धरती का स्पर्श इस तरह जहाज पर पहुंचता है। जोया की फिल्म भारत में अमेरिका के प्रभाव की फिल्म है। यह भी गौरतलब है कि सूरज की फिल्म में कुत्ता ईश्वरीय आशीर्वाद से पत्र सही जगह पहंुचाता है परंतु जोया की फिल्म का सूत्रधार कुत्ता ही सबसे अधिक बुद्धिमान और मानवीय संवेदना रखता है। भले ही आवाज आमिर खान की है परंतु जबान हरिशंकर परसाई की है।