जोया फैक्टर: क्या अनुष्का शर्मा जोया है? / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :05 जनवरी 2015
विज्ञापन की दुनिया से जुड़ी अनुजा चौहान के उपन्यास 'जोया फैक्टर' के फिल्मांकन के अधिकार शाहरुख खान ने खरीदे थे परंतु किसी कारण फिल्म नहीं बना पाए। पूजा एवं आरती शेट्टी ने उनसे बात की आैर लेखिका तथा खान एवं शेट्टी के बीच तीन पक्षीय समझौता हुआ आैर अब स्वयं आरती ने फाइनल संस्करण लिख लिया है तथा कलाकारों के चयन पर विचार चल रहा है। 'पीके' में अपने अभिनय के लिए चर्चित अनुष्का शर्मा से मुलाकात की जाएगी जिसके दो कारण हैं, उसका कुशल अभिनेत्री होना आैर यथार्थ जीवन में कप्तान विराट कोहली से उनकी अंतरंग मित्र होना। मूल उपन्यास की नायिका भी क्रिकेट कप्तान से प्रेम करती है। दरअसल सिनेमा में यथार्थ के रिश्ते काल्पनिक फिल्म में संप्रेषित भावना को अतिरिक्त धार देते हैं। दशकों पूर्व ख्वाजा अहमद अब्बास ने 'आवारा' की पटकथा शिखर फिल्मकार मेहबूब को नहीं बेची क्योंकि वे यह पिता-पुत्र कहानी पृथ्वीराज आैर दिलीप कुमार के साथ बनाना चाहते थे जबकि अब्बास पृथ्वीराज आैर राजकपूर को ही लेकर फिल्म बनाने के पक्ष में थे। जब 'आवारा' के एक दृश्य में राजकपूर पृथ्वीराज से कहते हैं कि मैं अपने को ही बहुत बड़ा कपटी समझता था, आप तो मेरे भी बाप निकले। कथा में उन पात्रों को उनका असली रिश्ता मालूम नहीं है परंतु सिनेमाघर में असल जीवन के रिश्ते के कारण तालियां पड़ती थीं। मनाेरंजन उद्योग में दर्शक से भावनात्मक तादात्मय बनाना आवश्यक होता है।
बहरहाल 'जोया फैक्टर' का घटनाक्रम कुछ ऐसा चलता है कि क्रिकेट बोर्ड तक यह विश्वास करने लगता है कि जोया की ग्राउंड पर मौजूदगी भारतीय टीम के लिए लकी है। अत: विश्व कप में टीम के साथ ऑस्ट्रेलिया जाने के लिए पैसे देकर अनुबंधित करता है आैर तीन माह के टूर में जोया आैर कप्तान का प्रेम भी हो जाता है। पूरा घटनाक्रम ही मजेदार है परंतु फाइनल के पूर्व कप्तान जोया से भारत लौटने का वादा करवाता है क्योंकि उसका कहना है कि लकी मास्काेट के कारण टीम की मेहनत प्रतिभा का अवमूल्यन हो रहा है। पूरे देश के क्रिकेट प्रेमी जोया को ही जीत का कारण समझ रहे हैं, यहां तक कि अन्य देशों की टीमें भी जोया से अनुबंध करना चाहती है। बहरहाल जोया भारत लौट आती है तो हजारों अंधविश्वासी क्रिकेट प्रेमी आंदोलन करते हैं कि वह वापस जाए। पूरा घटनाक्रम मनोरंजक आैर उत्तेजक है जो प्रेम-कथा में गूंथा गया है।
आज कल सामाजिक वातावरण देखकर लगता है कि इस फिल्म को भी अनावश्यक विरोध सहना पड़ सकता है। अंधविश्वास के प्रति इस तरह का हिंसात्मक रुझान के प्रति घोर आग्रह समझ के परे हैं। अच्छे खासे पढ़े-लिखे लोग इसमें शामिल हो जाते हैं। इसके साथ यह भी सच है कि कुछ क्रिकेट खिलाड़ी भी अंधविश्वासी होते हैं। जो अंर्तवस्त्र पहनकर सेंचुरी मारी हो, उसे ही धो-धोकर फट जाने की हद तक उसका इस्तेमाल करते हैं। एक गुणवान खिलाड़ी गले में लाल रूमाल बांधना कभी नहीं भूले। यह सारा सोच ही विचित्र है।
यह समझना कठिन है कि अंधविश्वास का जन्म कैसे होता है। कभी किसी ने कह दिया कि बिल्ली रास्ते काटने पर काम नहीं बनता आैर एक दो बार इत्तेफाक से ऐसा हो भी गया तो बात मजबूत हो गई। कितने ही विद्वान सड़क पर ठिठक कर खड़े हो जाते हैं कि बिल्ली रास्ता काट गई अब कोई आैर उधर से गुजरे तो हम चले गाेयाकि किसी आैर का नुकसान उन्हें पसंद है। इस तरह तो अंध विश्वास हमें बुरा मनुष्य भी बना देते हैं। दरअसल आत्म-विश्वास की कमी आैर स्वयं की प्रतिभा तथा मेहनत पर यकीन नहीं कर पाने के कारण लोग अंधविश्वासी हो जाते हैं। इसके साथ यह भी सच है कि जब हम व्यवस्था में कमियों के कारण किसी को रातों-रात अमीर होते देखते हैं तो अंध विश्वास के प्रति आग्रह बढ़ जाता है। इस तरह की झूठी बातें फैल जाती है कि भाग्य से पैसा आता है आैर बुद्धि से चला जाता है जबकि हमारे पुराणों में वर्णित है कि ईश्वर लक्ष्मी के आशीर्वाद से प्राप्त धन वापस ले सकता है परंतु मां सरस्वती के आशीर्वाद को वापस लेने का अधिकार स्वयं ईश्वर ने अपने पास नहीं रखा। धर्म का भवन रोशन आैर हवादार है परंतु उसकी तल मंजिल में छुपे अंधविश्वास आैर कुरीतियां रात में भवन में विचरण करती है जिन्हें धर्म समझने की गलती होती है। वह भवन तो रोशन है। सारी बुरी बातें एक तरह की घुसपैठियां है।