जोश में न आइये / गणेशशंकर विद्यार्थी
कानपुर कांग्रेस की समाप्ति के बाद से युक्तप्रांत में, हिंदू सभा द्वारा व्यवस्थापिका सभाओं के आगामी चुनाव लड़े जाने की बात फिर जोर पकड़ रही है। अलीगढ़ की मुस्लिम लीग में मुसलमान नेताओं ने जिस बेहूदा मनोवृत्ति का परिचय दिया, सर अब्दुर्रहीम ने जैसा भद्दा व्याख्यान दिया और मिस्टर जिन्ना के सदृश आदमियों न उन बातों में, जो राष्ट्रीयता की घातक हैं, जिस प्रकार सहयोग किया, उस सबको देखकर युक्तप्रांत और पंजाब की हिंदू जनता क्षुब्ध हो उठी हो और महामना मालवीय के सदृश पुरुष भी अब यह बात कहने लगे हैं कि मुसलमानों के विषाक्त मनोभाव को दबाने के लिये, हिंदू महासभा को अपने प्रतिनिधि व्यवस्थापिका सभाओं में भेजने चाहिये। आगरा प्रांतीय हिंदू सभा के अधिवेशन के समय भी यह बात उठी थी। भाई परमानंद ने इस प्रांत में दौरा करके, इस मामले पर लोगों को काफी उभाड़ा था। आज फिर से वही बात उठायी जा रही है। हमने किसी गतांक में इस विषय पर प्रकाश डाला था और यह दिखला दिया था कि हिंदू समाज के लिए जातिगत चुनाव प्रणाली का आश्रय लेना नाशक है। एक तो इस दृष्टि से यह बात ठीक नहीं है कि हिंदू समाज में अनेकों फिरकें हैं और यदि एक बार चुनाव जातीय सिद्धांत पर लड़ा गया तो फिर छोटे-छोटे जातीय उपभेदों की महत्वाकांक्षाओं को परितृप्त करना कठिन हो जायेगा। इस विचार से हिंदू महासभा का चुनाव के मार्ग में पादक्षेप करना तो भयावह है ही, एक दूसरे विचार से भी उसे इस काम में हाथ न डालना चाहिये। व्यवस्थापिका सभा में कांग्रेस के जो सदस्य जायेंगे, वे वहाँ लड़ाई ठानने जायेंगे। उनका यह कर्तव्य होगा कि हर समय वे वहाँ अपना झंडा फहराते रहें। इसके विपरित यदि हिंदू महासभा ने अपने मेंबर आप भेजे, तो वे मेंबर ऐसे होंगे जो बात-बात में हिंदू-हित की फर्जी, बिल्कुल काल्पनिक, पूर्ति के लिये सरकार की जूतियाँ उठाते फिरेंगे। यदि वे ऐसा न करेंगे तो हिंदू महासभा उनसे असंतुष्ट होगी और यदि उन्होंने ऐसा किया तो देश की स्वतंत्रता-प्राप्ति के मार्ग को वे अवरुद्ध करेंगे। इसलिये हम अत्यंत आग्रहपूर्वक देश भर की हिंदू सभाओं से प्रार्थना करते हैं कि वे दुराग्रही मुस्लिम नेताओं की उत्तेजक बातों में आकर अपने राष्ट्रीय हित की हत्या न करें। उन्हें इन बातों पर ध्यान ही न देना चाहिये। मुसलमानों के नेताओं का उत्तर यदि हिंदू समाज देना चाहता है तो अपना संगठन दृढ़ करके दे सकता है। देश की राजनैतिक प्रगति को नष्ट करके, दुश्मन को असगुन करने के लिये अपने अंग विशेष का उच्छेद करके, मुसलमानों की उद्दंडता का जवाब देना ठीक नहीं। आगे के कथन से हमारे भाव स्पष्ट हो जायेंगे।
सरकार तो यह चाहती है कि हिंदू और मुसलमान दोनों उसकी खुशामद किया करें। यदि हिंदुओं के हित की रक्षा करने के ख्याल से कोई आदमी कौंसिलों में जाता है तो यह उसकी भूल है। व्यवस्थापिका सभा में हिंदू सभा के प्रतिनिधि कुछ नहीं कर सकते, कम-से-कम कोई ऐसी बात नहीं कर सकते, जिससे हिंदू हितों की रक्षा हो सके। सरकार की खु़शामद से दो-एक टुकड़े मिल जायें तो मिल जायें, वरना वे भी नसीब नहीं हो सकते। अभी हाल में बंबई की चालाक सरकार ने, एक सर्कुलर द्वारा यह जाहिर किया कि बंबई प्रांतवासी मुसलमानों को नौकरियों में विशेष रूप से जगहें देने के वक्त वह दो मुस्लिम संस्थाओं की सलाह लिया करेगी और वे संस्थाएँ बड़ी नौकरियों के लिये जिन उम्मीदवारों के नाम पेश करेंगी, उनके नाम स्वीकार कर लिये जायेंगे। सरकार ने यह भी वायदा किया है कि जो-जो जगहें खाली हुआ करेंगी और जो नई जगहें बनती जायेंगी, उनकी सूचना सरकार उन संस्थाओं को दे दिया करेगी। मुसलमानों की इस तरह पूछ होते देख सिंध प्रांत के 'सिंध हिंदू एसोसिएशन' नामक मंडल ने बंबई के गवर्नर को एक पत्र लिखा। उस पत्र में एसोसिएशन ने सरकार का ध्यान इस ओर दिलाया कि सिंध में हिंदू कर्मचारियों को न तो कोई ऊँची जगह ही दी जाती है और न उनकी तरक्की किसी ऊँचे ओहदे पर की जाती है, इसलिये बड़ी इनायत हो, अगर सरकार हिंदुओं पर भी दयादृष्टि करे। आप जानते हैं कि बंबई के गवर्नर की तरफ से इस बात का क्या जबवा दिया गया? गवर्नर ने ऐसोसिएशन को लिखवा भेजा कि सिंध की तरफ से जो हिंदू मेंबर पहले की कौंसिल में भेजे गये थे, उन्होंने ज़्यादातर मौकों पर सरकार के खिलाफ वोट दिया और इस बार भी सिंध ने जो मेंबर भेजे हैं, उन्होंने सिवा एक मर्तबा के, सरकार के पक्ष में वोट नहीं दिया, इसलिये सरकार बड़ी-बड़ी नौकरियाँ उन लोगों को, हिंदुओं को, हर्गिज न देगी, जिनके चुने हुए उम्मीदवार हमेशा सरकार की मुखालफत करते चले जा रहे हैं। सरकार तो बड़ी-बड़ी नौकरियाँ उसी जमायत को देगी, जो सरकार का साथ देती रही है, क्योंकि बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता, सरकार की दृष्टि से, इसी में है कि वह अपने खुशामदियों को आगे बढ़ावे। बंबई के गवर्नर सर लेस्ली के प्राइवेट सेक्रेटरी ने अपने आका और मिस्टर पहलाजनी ने 99 फीसदी वोट सरकार के खिलाफ दिए और मिस्टर जेठानंद मुखी ने 72 फीसदी वोट सरकार के खिलाफ डाले। ऐसी हालत में आप यह कैसे आशा करते हैं कि हिंदुओं को ऊँची नौकरियाँ दी जायें? इस एक ही उदाहरण से हमारी बात स्पष्ट हो जाती है। सरकार बिना खुशामद के टुकड़ा न देगी। यदि हिंदू समाज यह चाहता है कि फर्जी हिंदू हित की रक्षा के लिये चापलूस मेंबर कौंसिलों और एसेम्बली में भेजे जाएँ, तब तो वह हिंदू महासभा को चुनाव का काम अपने हाथों में लेने द, पर यदि वह राष्ट्रीयता का गला घोंटना नहीं चाहता और यदि वह देश की युद्ध भावना को जीवित-जागृत रखना चाहता है तो उसका यह परम धर्म है कि वह हिंदू महासभा को चुनावों का काम अपने हाथ में लेने से रोके।