जो गिरफ्तार नहीं हुए / राजकिशोर
बच्चू बाबू ने मेरे घर में प्रवेश किया तो वे बहुत उत्साह में थे। आज वे बीड़ी नहीं, सिगरेट पी रहे थे। होंठों की रंगत देख कर ऐसे लगता था कि उनका पान-पर्व अभी-अभी सम्पन्न हुआ है। दो व्यसनों की यह निकटता बता रही थी कि बच्चू बाबू के लिए आज का दिन विशेष महत्व रखता है। दूसरों की खुशी से मुझे भी खुशी होती है, इसलिए मैंने अपनी पूरी हँसमुखता के साथ उनका स्वागत किया। सभी महान आत्माएँ एक ही तरह से सोचती हैं, इस उक्ति पर मेरा विश्वास एक बार फिर दृढ़ हुआ, जब मैंने गौर किया कि वे कुर्सी पर इस तरह बैठ गए जैसे यह उन्हीं के लिए बनाई गई थी।
बच्चू बाबू का व्यक्तित्व ऐसा है कि उनका परिचय देने के लिए किसी को भी शब्दों के अभाव का सामना नहीं करना पड़ेगा। उनका समग्र परिचय हिंदी के एक छोटे-से, पर शक्तिशाली शब्द से दिया जा सकता है 'बच्चू बाबू गुंडा थे।' वे स्थानीय गुंडा थे और वैश्वीकरण के दौर में भी अपनी स्थानीयता पर टिके रहे। कुछ लोगों का कहना है कि वैश्वीकरण और स्थानीयता दोनों आवश्यक हैं या वैश्वीकरण का मुकाबला स्थानीयता से ही किया जा सकता है। इन प्रतिपादनों का ठीक-ठीक अर्थ क्या है, यह मैं बड़े-बड़े विद्वानों के लेख और किताबें पढ़ कर भी नहीं समझ पाया हूँ। क्या इसका मतलब यह है कि मोबाइल फोन का तार कान में लगा कर छठ मनाया जाए और ईमेल से करवा चौथ की शुभकामनाएँ भेजी जाएँ? या, विदेशी पूँजी का हमला तेज हो रहा हो, तो दुर्गा पूजा और भी भव्य तरीके से मनाई जाए? पता नहीं। इतना जरूर है कि बच्चू बाबू ने बिहार राज्य के बाहर एक ही बार कदम रखा था, जब वे कांग्रेसी लोगों के साथ थे और संजय गांधी ने नागपुर में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का एक बड़ा सम्मेलन बुलाया था, जिसे समय के चलन को देखते हुए 'राष्ट्रीय' की संज्ञा दी गई थी। सम्मेलन से लौटते हुए कार्यकर्ताओं ने विभिन्न रेलवे स्टेशनों पर जो लूट-पाट मचाई, उसकी खबर अखबारों में छपने पर कुछ लोगों को शक होने लगा था कि कहीं वह सम्मेलन अराष्ट्रीय तो नहीं था।
केंद्र में एक बार फिर मनमोहन सिंह की सरकार बन गई थी। कुछ दलों को इस बार सरकार में शामिल नहीं किया गया था। इससे जहाँ तक बच्चू बाबू का सवाल है, वे बहुत ही खुश थे। यहाँ 'गद्गद' शब्द का प्रयोग ज्यादा प्रासंगिक होता, पर यह समय पर नहीं सूझा। बच्चू बाबू ने मुझसे अपनी निजी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, 'अभी तक मुझे थोड़ा सँभल कर काम करना पड़ता था, पर अब मुझे लगता है कि मैं सरकार का अंग हूँ। अब आप किसी भी थाने में चले जाइए, मेरे खिलाफ एफआईआर नहीं लिखवा पाएँगे। उलटे उसी दिन नहीं तो अगले दिन दोपहर तक मुझे खबर मिल जाएगी कि मेरे खिलाफ एफआईआर लिखवाने कौन गया था।' संजय गांधी और उनकी माँ इंदिरा गांधी को प्रगति का पर्याय माना जाता था। अब मेरा दृढ़ विश्वास हो गया कि उनके नेतृत्व में देश सचमुच प्रगति ही कर रहा था।
चाय आने के पहले ही बच्चू बाबू ने अपना सवाल दाग दिया। उन्होंने कहा, 'माननीय रेल मंत्री लालू प्रसाद जी बड़े गर्व से यह दावा कर रहे हैं कि माननीय आडवाणी जी को गिरफ्तार करने का फैसला उनका अपना था। जो अन्य नेता इस गिरफ्तारी का श्रेय लेना चाहते हैं, वे असत्य बोल रहे हैं। माननीय शरद यादव ने तो गिरफ्तारी को रोकने तक की कोशिश की थी। आपकी क्या राय है?'
मैं जानता था कि इस सन्दर्भ में मेरी राय का कोई महत्व नहीं है। यह शिष्ट प्रश्न मेरी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि वक्ता द्वारा अपनी राय प्रकट करने की पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए पूछा जा रहा है। इसलिए मैंने एक बेचारा-सा उत्तर दे दिया, 'जल्दी क्या है? लालू प्रसाद जो पुस्तक लिख रहे हैं, उसमें वे सारा रहस्य खोल देंगे। तब इस पर विचार किया जाएगा।'
बच्चू बाबू ने अपना परिचित ठहाका मारा - 'इस तरह का वादा तो बहुत-से नेता कर चुके हैं। पर बाद में न कोई किताब लिखता है और न रहस्य प्रकट करता है। माननीय विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 1989-90 में पता नहीं कितनी जन सभाओं में कहा था कि मेरे पास राजीव गांधी के उस खाते का नंबर है जिसमें उन्होंने बोफोर्स का पैसा रख छोड़ा है। उन्होंने कहा था कि मैं उचित समय पर यह नंबर सार्वजनिक कर दूँगा। पर वह समय सोलह साल के बाद भी नहीं आ पाया है। माननीय मुलायम सिंह जी भी इस तरह के वादे करते रहते हैं। माननीय अमर सिंह के पास भी काफी भेद हैं। माननीय नटवर सिंह का भी कहना है कि उनके पास ऐसे सीक्रेट हैं कि सोनिया गांधी और कांग्रेस दोनों दहल जाएँगे। लेकिन वे भी शायद समय आने पर ही खोलेंगे। पता नहीं, वह समय कब आएगा? आएगा भी या नहीं, कौन कह सकता है? यह भी हो सकता है कि जो यह हिम्मत करे, उसका हाल माननीय जसवंत सिंह जैसा हो जाए। जसवंत सिंह की इज्जत शायद इसी में थी कि वे ये रहस्य अपनी छाती में ही छिपा कर रखते।'
मैंने विषय बदलने की महत्त्वाकांक्षा के साथ कहा, 'खैर, यह तो आप मानेंगे ही कि माननीय आडवाणी जी को गिरफ्तार करना कम साहस की बात नहीं थी। बिहार को हमेशा इस पर गर्व रहेगा कि माननीय लालू प्रसाद के मुख्यमंत्रित्व में उसने उस विषाक्त रथ यात्रा को रोका।'
बच्चू बाबू ने फिर ठहाका लगाया, 'सर, गुजरात के उस सांसद को बिहार में गिरेंफ्तार करना कौन भारी काम था? माननीय लालू प्रसाद जी में नैतिक साहस होता तो वे (अपनी तरफ इशारा करते हुए) बच्चू प्रसाद को गिरफ्तार करके दिखाते! आपको पता है, बिहार में सीनियर और जूनियर, दोनों मिलाकर, बच्चू प्रसादों की कुल संख्या कितनी है? इन सबको जेल में बंद कर दिया जाता, तो बिहार एक बहुत बड़ी समस्या से मुक्त हो जाता। पर गिरफ्तार किया तो किसे? आडवाणी को, जो अपना ज्यादा समय बिहार के बाहर बिताते हैं। इससे बिहार की स्थिति में क्या फर्क पड़ा?'
मैंने पूछा, 'यह आप कह रहे हैं?'
बच्चू बाबू पहले गंभीर हुए, फिर मुस्कराए, 'मैंने कल ही 'लगे रहो मुन्नाभाई' देखी है।'