ज्ञात अज्ञात अभिज्ञात / नूर मुहम्मद 'नूर'
कोलकाता के जिन कुछ युवा रचनाकारों से मैं प्रभावित हुआ, उनमें अभिज्ञात प्रमुख हैं। कारण वे एक निहायत ही न सिर्फ़ एक सुलझे हुए इंसान हैं बल्कि़ वे एक मज़बूत खब्बू लेखक भी हैं..यानी आल राउंडर...उनकी सारी क़िताबें मैंने पढ़ी हैं...और इधर की आख़िरी दोनों क़िताबें भी..तीसरी बीवी जो शिल्पायन-दिल्ली से प्रकाशित कहानी संग्रह है और आकाशगंगा प्रकाशन से आया उनका उपन्यास कला बाज़ार इसके पहले की अपनी सारी क़िताबें उन्होंने खुद अपने नाद प्रकाशन से ही निकाली थी। उनका एक कविता संकलन छपते छपते प्रकाशन कोलकाता से शाया हुा है-'दी हुई नींद' शीर्षक से। उनके प्रिय कवि केदारनाथ सिंह है जिनका किन्चित हल्का प्रभाव उन पर दिखता है।
मैं पहली बार जब उनसे मिला वे सिर्फ़ कविताएं ही लिखा करते थे। उनके साथ कलकत्ते की कई गोष्ठियों में शिरकत की है..उनकी कविताओं के खुमार के दौर में ही उनका लघु उपन्यास 'अनचाहे दरवाज़े पर' पढ़ने का मौका मिला था, जो आकार में लघु होते हुए भी प्रकार और गुणवत्ता में बड़ा है। इस उपन्यास में जो स्त्री पात्र शुचिता और निम्मी हैं और पुरुष पात्र उदय..इन तीनों की मानसिक बनावट, विचार, व्यवहार से यह कथा रूपाकार लेती कुछ बेहद जटिल प्रश्नों से मुठभेड़ करती है। पुराने जर्जर मूल्यों के प्रति अनास्था इसके केन्द्र में है। जीवन में प्रेम और यौन सम्बंधों को यह अपने ही ढंग से लेकिन क़ायदे से डील करता उपन्यास है।
यह उपन्यास तस्लीमा नसरीन को समर्पित है। 11005 में यह मुझे मिला था, लगभग अठारह वर्ष पहले..इन 18 सालों में अभिज्ञात जी ने काफी तरक्क़ी की है। साहित्य से लेकर पत्रकारिता तक उन्होंने एक लम्बी शब्द यात्रा की है और इसके अक्स भी उनकी रचनाओं में हैं। इसके अलावा उनकी रुचि पेंटिंग, रंगमंच में भी रही। अनेक पुस्तकों के मुखपृष्ठ बनाये, रेखांकन किये. नाद नाम से प्रकाशन भी चलाया और व्यवसाय भी किया। इसके अलावा कई रंग हैं उनमें...मेरा सौभाग्य है मैंने उनकी सारी क़िताबें पढ़ी हैं। आधे दर्जन से अधिक उनकी क़िताबों में उनके विचार और अनुभव बहुत सलीके और सम्प्रेषणीयत, पारदर्शिता के साथ उनका रचनाओं में उनके महत्व को रेखांकित करने मे सक्षम हैं। आवारा हवाओं के ख़िलाफ़ चुपचाप, जो त्रिलोचन को समर्पित है, एक अदहन हमारे अन्दर, जो पाश को और दी हुई नींद, जो कलकत्ते के बेहद महत्त्वपूर्ण कवि सकलदीप सिंह (दिवंगत) और कीर्त्ति नारायण मिश्र को समर्पित है...अभिज्ञात जी के तीन बहुत अहम कविता पुस्तकें हैं-जो उन्हें एक सशक्त कवि के रूप में चिह्नित करने में सक्षम हैं। वे इन कविताओं मे एक बेहद सजग, चिन्तनशील और जुझारू कवि के रूप में मौज़ूद हैं। इन तीनों संग्रहों में कुल 87-88 के लगभग कविताएं हैं। मनुष्य और उसके संघर्ष और संवेदना की। उसके सपनों-सरोकारों की एक गहरी पड़ताल इन कविताओं में है।
-'मैं खरीफ की फसल के बाद साऊंगा/सोऊंगा ज़रूर रबी की फसल के बाद/हहकारते खाली खलिहानों के भर देने के बाद अन्नधन से..' अन्न निकाल लेने के बाद भी, खेतिहर को कहां चैन की नींदें मयस्सर होती हैं..काम ही काम...एक पूरा कार्यचक्र है जिसमें वो पिसता..चैन की नींद का सपना भी नहीं देश सकता..।
संसद कितनी ही बार हमने देखी है, हमारे रहनुमा संसद और विधानसभाओं में तक में सो जाते हैं.। कृषक जीवन को गहरे से जानने वाला ही ऐसा अद्भुत लिख सकता है..सादगी के शिल्प में रची इन तीनों संकलनों की कविताएं सिर्फ़ और सिर्फ़ पढ़ने से तआल्लुक रखती हैं। ये कविताएं नींद की दस्तकों को भी अनसुनी करवा दें। ऐसी ही एक कविता है 'हूक' -'हूक एक गर्म अंवाती बोरस है/सम्बंधों की शीत लहरी में..'।
गांव से लेकर शहर तक का जीवन-संघर्ष स्वरूप और उनसे उपजी व्याकुलताएं, बेचैनियां, इन कविताओं में समाई हुई हैं। वो जो किसी को नहीं दिखता-समज में आता वही छूटे हुए जीवन-दृश्य कवि की पूंजी है। जिसके पास यह पूंजी नहीं वह कवि नहीं। अभिज्ञात इस अर्थ में पूंजीपति कवि हैं-
'पीड़ा बाहर आ सकती है/मछली की तरह उछलकर/ चुप्पी से/ पीड़ा को बज लेने जो/ जो वह बजती हो।'
निःसहायता, खिन्नता से क्रोध-विरोध तक पहुंचती इन कविताओं में समाई साफ़गोई मोहती है-
'तुम मेरे लिए प्रार्थना करो../कि मैं हर चूतियापे पर/ कुत्ते की तरह मूतने का साहस जुटा पाऊं/ बहुत हो चुका/ईसबगोल घोंट कर सोना/सुबह के पैखाने पर संतोष व्यक्त करना।'
संघर्ष है। और उसकी कथा, जो कविताओं से लेकर कहानियों यहां तक कि उपन्यास में निरंतर है। संघर्ष ही जीवन है। इसी संघर्षपूर्ण जीवन का अर्क उनकी तमामतर रचनाओं में है। 'कला बाज़ार' उनका आत्मकथात्मक शैली में लिखा उपन्यास है। जीवन की तल्ख़ तेज हलचलों से भरपूर, बेहद सुगठित और पठनीयता हर जगह और क्षेत्र का तजरबा: पूरी बेबाकी के साथ..जालंधर से अमृतसर, इंदौर, जमशेदपुर और अन्त में कोलकाता..यह एक पूरा सर्किल जैसे पूरा कर एक उपन्यास में ढल जाता है। शिल्पायन से प्रकाशित है उनका कहानी संग्रह 'तीसरी बीवी'। कहानी संकलन क्या है, पान्डोरा बाक्स है। क्या नहीं है यहां। इतना समृद्ध कहानी संकलन शायद ही कोई और है।... इन कहानियों में हैं ऐसी जज़ीरे..एक द्वीप से दूसरे द्वीप की यात्रा पर निकल जाये पाठक..कहानी संकलन है या अंडमान-निकोबार द्वीप समूह...हाशिये की ज़िन्दगी से लेकर निम्न मध्यम और उच्चवर्ग तक इन कहानियों के रेजं में..उन वर्गों की तमामतर सच्चाइयां, पेचीदगियां इन कहानियों में हैं। 'तीसरी' बीवी का नूर, उसकी छोड़ दी गयी बेटी, हबीब..जाड़े का मौसम, चट की चोरी में हबीब का पकड़ा जाना-पहले से दो बीवियों वाले हबीब के घर नूर का ख़ुद अपनी परित्यक्ता बेटी को छोड़ आना...इक्कीसवीं सदी के हिन्दुस्तान में मुस्लिम समाज के निम्नवर्ग का जैसे आईना हो यह कहानी। और मुस्लिम ही क्यों, हर सम्प्रदाय में ऐसे वर्ग हैं अभी हमारे रहनुमाओं ने एक नया वर्ग अपने पराक्रम से पैदा कर लिया है जो राहत शिविरों में रहता है। चाहे जिस वर्ग का हो दंगे के बाद वह वर्गहीन होकर इन राहत कैम्पों में पड़ा रोटी-रोटी को मुहराज, ठंड और लू से मरता रहता है। शामली और शाह आलम के दंगा पीड़ित राहत शिविरों में रह रहे हर सम्प्रदाय, वर्ग के लोगों के हालात तो 'नूर' से भी कहीं बदतरह-उसकी बेटी को भल हबीब की तीसरी बीवी बन जाना पड़ा हो पर उसे ठंडी रात में कम्बल तो नरीस हो ही जाता है। अद्भुत कहानी है-सारी कहानियां एक से बढ़कर एक। 'क्रेज़ी फै़टेसी की दुनिया' एक और अपनी शैली की अलग अद्भुत कहानी है..बिन पढ़े इसे नहीं माना जा सकता। इसलिए भी ऊपर मैंने कहीं लिखा है कि चाहे कहानियां हो या कविताएं- सब पढ़ने से तआल्लुक़ रखती हैं। कोई पच्चीस कहानियां है इस संकलन में। जश्न, कुलटा, एक मौत, तोहफ़ा, मुन्नी माई..विशेषकर मुझे अच्छी लगीं। चाहे वो कविता हो या कहानी भाषा, सधी और पारदर्शी है। कहीं कहीं अवश्य फैंटेसीनुमा सी होती हुई एक आवरण बुनती है। पर यह अंतर्वस्तु के निर्वहन के चलते भी होता है। अक्सर रचनाएं चाहे जिस विधा की हों. अपना भाषाशिल्प लेकर ही उतरती हैं शब्दों में।
कलकत्ता के साहित्य संसादर में कथाकार विजय शर्मा के अलावा अभिज्ञात की मेरे प्रिय कहानीकार हैं...और बड़ी हद तक कवि भी। दोनों की खूबी एक सी है.. दोनों गोष्ठियों में बहुत कम जाते हैं और अपने मन की लिखते हैं। किसी वाद विचा की गुलामी ये नहीं करते और दोनों को पता है कि वे किसके पक्षधर हैं। दोनों के पास कुछ बेहतरीन कहानियां हैं। जो है उससे बेहतर रचने, करने की कोशिशें....अभिज्ञात, ज्ञाता हैं। अभिज्ञ हैं। ज्ञेय है। अज्ञेय नहीं। रचनाएं भी।