ज्ञानु-दा / जबर सिंह कैन्तुरा
क्वी मन्खि समाज पर आपरि इनि छाप छोड़ि देंदिन कि लोग ऊं तैं हमेशा याद कर्दिन। वूंकि बात, वूंका विचार सभा- बैठकों मा लगदिन। इना लोग बेशक समाज का पिछड़्यां वर्ग का गरीब, अनपढ़ अर लाचार ह्वोन पर वु आपरि बातचित ब्यवहार अर सौ सलिका सि समाज मा उच्चि जगा पर पौंछि जांदिन। उन त बोल़्दन कि ढ़ुंगो त खाणि को हि होंद भलो पर क्वी बाटा को ढ़ुंगो रगड़ अर ठोकर खै- खैेक खांणि का ढ़ुंगा तैं दिखै देंद गुंठ्ठा ! अर खांणि का भितर भि त निकल्दिन क्वी करकरा ऐबिण्डा,बांगा ट्येरा , निकामा जौं तैं बड़ो सि बड़ो सल्लि भि नि सलैइ सकद। अब पढै लिखै को जमानो च ।गरीब गुर्बा भि आपरि -आपरि सामर्था हिसाब सि औलाद तैं पड़ौंद लिखौंद छन। क्वी भग्यान द्वी आखर पड़िक आपरा गौं-गऽल़ा , बाबु दादौं को नौं , वूंकि इज्जत - पर्मत अर आपरि मरजाद नं भूलो त इनि पड़ै लिखै को सबु तैं होलु फ़ैदा। पर बाजा - बाजा त द्वी आखर पड़िक जमीन छोड़ी ऐंचै ऐंच हेर्न लगि जांदिन , छोट्टा बड़ा क्वी लिहाज नि । इनौं सि भला त अनपढ़ हि छन जौं मू न चकड़ैति, न क्वी जाल़- फाल़ , न सच्चि झुट्टि, जु ज्यू मां वी गिच्चा भैर । क्वी त अनपढ़ ह्वेक भि इनि ज्ञान ध्यान अर न्यो निसाफै बात कर्दिन कि बड़ा सि बड़ा पड़्यां लिख्यां आर चकड़़ैत भि वूं का सामणि थकते जांदिन। वु आपरा ब्योहार,बोल चाल सि सब्यों का दुख सुख का दगड़्या बणिकि इना घुलि मिलि जांदिन कि आपरा कुटुम परिवार का हि लगण लगदिन। हमारो औजि ज्ञानु दा इनि त छौ -गरीब, अनपढ़। परम ज्ञानि ! करीब बीस साल पैलि कि बात च, ज्ञानु तैं मैं आपरा कुटुम को हि समझद छौ किलै कि हफ्ता मा तीन चार दिन त वो हमारा हि गौं रंद छयो। आपरि बिर्ति चलौंद छौ। हमारा गौं सि करिबन तीन- साढ़ि तीन मील दूर छौ वेकु गौं। बाजि दां त मैंना पाखा तक भि वे आपरा गौं जाणै फुरसत हि निं मिल़्द छै। जु-जु मवासा वैकि बिर्ति मा छया कभि एक्कि मौ का ड्येरा कभि हैक्कि का । दगड़ा मा रंद छै वेकि जुन्खा सिलणै मशीन---। वै त छै वेकि सारि पू्ंजि, जमीन-पुंगड़ि, ब्वे बाबु , लत्ति कपड़ि ! भौत पुराणि मशीन । काल़ि रंद छै ह्वेईं। जब ज्ञानु दा वींन सिलैऽ कर्द छौ-- ह्ये ! कन चल़्द छै, सर्र- सर्र ,सर्र- सर्र जन ब्वोलेन कि आजै कि हो ल्ह्यांईं नैंईं - नैं ! ज्ञानु दा दगड़ि क्वी अलखणि अर उटपटागि छ्वोरा चखन्यों भि कर्द छया । वो दिक्क ह्वे जांद छौ पर वेन कैक तैं भि लाग - कुलाग निं ब्बोलि नांहि कैका ब्वे बाबु मां सिकैत करि। हांं, पर क्वी मशीन पर छेड़ो त जरूर ज्ञान्वा मुख सि निकल़ि जांद छौ- क्या च रै यु इनों छिरबिघ्नि , मैंन येका बबाजि मूं सिकैत कन्न। बस वेको इत्थी बोन्नु भौत छौ। छ्वोरा - छ्वोरि डरि जांद छा। बबााजि कि डर बरौबर क्वी हौर डर नि छै। ताबै त बोल़्दिन कि सीदि सादि गौड़ि को पूंछ सब्बि मरोड़दन अर मर्ख्वोल़्या त क्वी नेड़ा ध्वोरा भि निं जांद। ज्ञानु ब्वोद्द छौ- या मशीन भौत भागवान च, ईंका परताप हि मेरि कुटुमदारि को ल्वोण त्येल चन्नु च।यै च हमारि पाल़न्गता कन्नी। क्वी पन्द्र बीस बर्स ह्वेगि ह्वोला। मेरो ठाकुर, मेरो रज्जा जब मलिटरि बिटन पेंसन ऐ छौ वे बक्त राजि खुसि आपरि पेंसन औंण कि खुसि मा मैं तैं मेरि सेवा भग्त्यो इनाम दिनि छौ। पुराणि चीज अर वा भि मलिटरि कि ! अजि आज क्वी ठक-ठका भि गऽणी द्येलु त ताब भि नीं इनि चीज मिलण्या।इनि चीज अब बणदै कख छन । मेरा ककान त वीं नैं मसीन लेंदि दां छक्की कल़दार भि दिनिन अर पांच छै मैेना मा हि ह्वोण लगि घड़घड़, घड़घड़ ! सलौण तैं सिन्नगर जांण पड़ि वूं , औण जाणौ खर्च अलग। रोज रोजै दिकदारि ह्वेगि कका करौंक। डांडै समजा दू ! तै डांड भर्द-भर्द पछताणा छन वु। मेरो ठाकुर , पेंसन औंदि दां बानि बानि कि चीजि ल्है छौ। वूं चीज्यों मा आफुक तैं न्हांण को कांसा बैठोल ह्वोक्का अर मैंक या मसीन भि छै । अहा ! जब ठाकुर फैड़ि मा बैठिक बांज का अंगार्वी भर्यीं साज सजैक गुड़ाखु गुड़ गुड़ौंद छौ त मैं भि भ्वां आंगण मा बैठिक रौंस लगण लगि जांद छै पर क्य कन्न हमारि किसमत मां नीं ठाकुर्वा ह्वोक्का गुड़ गुड़ौणौं सुख । साज ठाकुर्वा ह्वोक्का परै फुंड गाडिकि वीं साज पर हि प्येण पड़द तमाखु। भुस्स- भुस्स ! बिना पाणि । बिना ह्वोक्का । सूकि साज । ठाकुरन रैबार भेजि छौ- ज्ञानु मां बोल्यान मैं पेंसन ऐग्यों। अरे, उबैं ऐ जै दू बुन। रैबार क्य सूणि कि बस, मैं ठाकुर मिलणै कत्त-मत्त ह्वेगि छै।भोल़्कण्यों सुब्येर- रात्ति घड़ि पैटी छौ मैं। वे टैम पर ल्ह्वे छौ मैं पर। नुन्यारा ताब बासिन जब मैं आपरि बिर्ति मां पौंछिग्यों। मेरा ठाकुरै चा त रातै बणि जांद छै। पौंछ्यों त सेवा सौंल़ि, हाल कुशल का बाद गरम गरम चा पिन्निं । आ--हा ! कुट्यां आदै खसबू ! सवादि् , कड़क , तीन तोलै चाऽ ! सैडि उकाल़ि कि थकौट अर पाल़ान अल़्यां खुट्टौं को जाड्डो जक्खि हर्चि ह्वो ! ठाकुरन आंगण मा टाट बिछै अर अंगिठि सुल्कैऽ। डांडि कांठ्यों मा घाम औण सि पैेलि , गप्प एक गिलास चा को हैक्को ! छ्वीं बात्त लगण लगीन।अबि छ्वीं लगौणै लग्यां छा कि ठकर्वांण एक गिलास गरम - गरम दूध, आल्लु- प्याजै भुज्जि,एक कटोरा घ्यू अर रोट्टि दी गै। जिन्दगि मा पैलि दां इनो कल्यो खै। मर्दि मर्दि भि मैं भूलि नि सकदूं ठकर्वाण्या हातौ सवाद अर झंगोरा दाणौं जन गगराण्या घ्यू कि खसबु ! उन त पूरि बिर्ति मा हाम तैं दूध द्येणौ रिवाज नीं, बोल़्दन कि गोरु भैंसौं पर दाग लगि जांद हमारो ।पर ठाकुर कौंको जब भि लैंदु ह्वेयु वूंन दूध द्येंण मा कबि क्वी भीन नि करि। वे दिन खूब छ्वीं बात्त लगिन। मलिटरि कि,घऽर बौंणै अर गौं पट्टि कि। खूब खांणि प्येणि ह्वे ! ठाकुरन ब्वोलि- ज्ञानु या मशीन त्वेक तैं च रै ल्ह्यांईं, गौं करौंकु टूटु टालो कन्ना काम औलि। अर या गरम पैंट, जर्सि , गमबूट भि त्वेकेैऽ छन। पाथा करिबन त मसाला हि दिनि छया। कुटुमदारिक खाणु- कल्यो अलग। मेरि औज्याणी तैं ठकुर्वाण्यों पुराणो टालखो, पाखलो अर पटग्वा। वै टैम का हमारा ठाकुर रज्जा पोथलौं कि आपरा कल्य़पु पर धरीं छ्वोपै चार्यूं हाम पर छ्वोप धर्द छया अर हमारि भि सेवा भग्ति, माया पीड़ उन्नि छै । ब्याखन्या बग्त छन्नि मूं ज्ञानु दा कि अंगिठि सुल्कि जांद छै। टाट-दरि बिछि जांद छै। काल़ि मशीन-- टूटा टाल्ला कन्न तैं जुन्खौं कि ढ़्येर। सल्तराज,कुर्ता, फत्वे, बिल्वोज ---। ज्ञानु दै पितल़ै अंगुठि सि पैरे जांद छै आंगुल़ा पर। लगण लगि जांद छा टल्ला। हाम सब्बि गौं का नौंना बैठि जांद छा ज्ञानु का ध्वोरा। तब लगौंद छौ वु छ्वीं बात्त। कुछ आफु भुक्त्यों कुछ सुण्यूं।
कख क्या च ह्वोणू, कनों च ह्वोणू।कैको ब्यो ह्वेगि।कैका ब्यो मा बाजणा बजौंदारौं अर डोल्येर्वी कनि-कनि खिदमत ह्वे। कैकि नौंनि ज्वान ह्वेक ब्येवोण लैख ह्वेगि। कैका नौंना होंदा खांदा अर लैख छन--कैका तन्नि फुंड ढोल़्यां -- खत्यां छन वगैरा । कथा लगद छै- छै भायों कि लड्यूंत सूना बैंण कि, कूणा बूड कि,राजुला मालुशाही कि,हरि हिंडवाण,जीतु बगड्वाल़, तीलु रौतेलि, राजा भोज , ल्येंडर्या छ्वोरा , रामैण, मा-ऽभारत। बिराल़ि कि,मन्ख्या बाघ कि अर कत्थी वु कथा भि जु स्कुलि नौंनौं कि किताब्यों मा रंद छै। वेका बरौबर कथा सुणौंदारो क्वी निं छौ गौं गऽल़ा मा। कथा सुणौंद सुणौंद वु कथा का पातरों मा इनों रऽल़ि मिस्यिक हर्चि जांद छौ जन कि उ खुद हि कै पात्र को सुख- दुख अर पिड़ा भ्वोगणू हो ! बाचै उकाल़-उन्द्यार , मुक्ख से हर्ष ,हिर्ष अर अणी आतुरी बतौण मा वो माहिर छौ। कथा सुणौंदि सुणौंद कभि कथा का मुताबिक रोंण बैठि जांद छौ अर कभि हैंसण। हम तैं भि वेकि कथा रोव्वे देंद छै । हैंसै देंद छै। तन्नि जाब क्वी बादुरि या जोश कि कथा ह्वोंदि छै त वेकि बाच ह्वे जांद छै कड़- कड़ि,जोर - जोरेै ! आंखा तड़ तड़ा । हम कभि हैंसदा त कबि रोंदा। अर कबि वै दगड़ि पोथलौं कि चार्यूं दूर परदेस उड़ि जांदा पंखूड़ फड़फड़ौंद- फड़फड़ौंद ! कभि राऽगसै डरौण्या कथा सूणिक हम डरिकि थतराण लगि जांद छया । एक्का हैक्का पर चिपटि जांद छा चम्म। ज्ञानु कैइ नासी दवैयों को जाणगुरु भी छौ। - कौंल़ बै ,फोड़ा-दुखणा, काट्यां-फुक्यां, पुटगै डौ- कटै, सिलखम, जर मुंडारु - ! सैडा गौं पट्टि कि खबर - ज्ञानु एक चल़्दो फिरदो लोकल रेडियो स्टेशन छौ! जो कभि खबर सुणौंदो, कभि खट्टि मिठि कथा अर कभि ब्यो बरात्यों, थऽल़ा मेल़ौं मा आपरि छणछणि आवाज मां गीत लगैकि लोखु तैं नचौंद छौ। नचौण्या गीत अर ढ़ोल बजौंण मा जै कारज मा ज्ञानु नीं वख मजा निं औंद छौ। अगर दगड़ा को दमांऊ बजौण वाल़ो कबि ताल से बेताल ह्वे जौ,वे सि क्वी गल़्ति ह्वे गै त तड़ाक से ढ़ोल बजौण वाल़ि लाकुड़ि पड़ि जांदि कपाल़ि पर। तब रंद छौ उ बिचारो मुंड पर उठ्यूं दमाल़ो मिमोचणू, दबौणू ! भारि पिडा़ मा। ज्ञानु बिल्कुल लिहाज नि कर्द छौ। वे दगड़ि का दमांया डर्यां डर्यां रंद छया बिचारा।खबनि कब कपाल़ि पर पड़ि जौ तड़ाक ! रुप्या भि खूब झपोड़ेंद छा नाचदारौं का खिस्सौं परै। कैकि च्वोरि ह्वेगि, कैकि चिठ्ठि नीं औणी, कैकि भैंसि तूंगी,कैकि नथुलि हर्ची,कैको नौंनु घर बिटिन भागी झगड़ा करिक, क्वी बिमार च भौत दिन बिटिन -- सब्बि ज्ञानु मूं औंद छा गणत करौंण तैं। ज्ञानु पर सब्बु बिस्वास छौ , वेको गणत कभि झूट्टो निं ह्वे। स्कुलि बच्चौं का धुल़ेटा मा उ माटो ढ़्वोल़्द छौ। फिर वे माटा मा आपरा आंगुल़ान अलग अलग चौक्वोर बणैक ऊंका भितर कुछ रेखड़ा सि खैंचद छौ-- मुक्ख भितर कुछ मंत्र गुण गुण --हात ज्वोड़िकि आंखा मूंजिकि ऐंच सर्ग जनै मुक्क करिकि आपरा गुरु तैं प्रणाम --- । पांच छै बर्षै कैं भि कन्या सि धुल़ेटा का माटा मा खैंच्यां रेखड़ौं मद्दि कै भि एका रेखडा़ पर आंखा बन्द करीकि आंगुल़ि धन्न तैं बोद् छयो। ज्ञानु चश्मा पैरिकि भौत बरीक नजरन नौंनि कि आंगु़ल़ि देखद छौ। बस्स ! जन्नि नौंनिन कै भि रेखड़ा पर आपरि आंगुल़ि लगैई ज्ञानु का गणत तैं एकदम सवालौ जवाब मिलि जांद छौ। कै दां गड़बड़ वे बग्त ह्वोंदि छै जब नौंनि आपरि आंगुल़ि कै भि एक्का चौक्वोर मा नां बल्कि द्वी चौक्वोर्वा बीच धरिकि आंखा खोल़्द छै। उना मा ज्ञानु तैं गणत कन्न मां कुछ जादा बग्त लगि जांद छौ। पर तब भि जवाब मिलि हि जांद छौ। पुछदारा भि संतोष करिक चलि जांद छा। किलैकि वेकि गणत विद्या कभि झूट नि ह्वे। ज्ञान्वी खाण कमौण लैख आपरि क्वी जमीन नि छै। येक-द्वी पुगड़्योंन क्य ह्वोण छौ कच्चि कबल़दारि मा।भुज्ज्या हि लैख ह्वे। फसल पर डड्वारौ हि सारो भरोसो।कबि क्वी इनाम किताब मिलि जौ बस्स ! भौत बर्षु मा जब मैं प्वोरु का साल लखनौंउ बिटिन आपरा गौं गयूं त सूंणि कि ज्ञानु बिमार च। ज्ञान्वी भारि खुद छै लगीं मैं। वेसि मिलिकि वेकि साद खबर कन्नैं इच्छा ह्वोणै छै।पैटिग्यों मैं वेका गौं जांण तैं। बाटु उन्द्यार्यौ छौ। ज्ञानु दा कि पुराणि बात्त एक्केक करी याद औण लगीं छै-- --- वे दिन सुबेर बिटिन सैडो गौं उत्पास मा छौ। द्वी दगड़्या ; मूल़्यि ब्वड्यो नौनु अर पतरोल़ चचा नौंनु सुब्येर सुब्येर खबनि कख चलि गै छा। जरा हितराड़ मारि छै बल पतरोल़ चचान आपरा नौंना तैं दर्जा पांचा बोर्डै परिक्षा मा फेल ह्वोंण पर। सैडा गौं ढ़ुंडा ढ़ुंड ह्वोण लगी छै। मूल़्यि ब्वडि का कारणा सबि गौं करौं तैं रोवोणा छा। - हे! कखि गाड- बिट्टा फाल़ त नि माल्लि ह्वो मेरौंन। ब्वडि हतास ह्वेगि छै। सब्वा अगनै हात जोड़ी बिनति छै कन्नी आपरा नौंना खोजैणै। उथ्वीं पतरोल़्यांण चाचि कि भि उन्नि दसा। माथ्या खोल़ा सि मुड़्या खोल़ा , बामण ख्वोल़ा सि नगेला मंदिर सब्बि जगौं सैडा गौं वाल़ा लग्यां ख्वोजण।मंदिर, स्कूल, पंचैतघर, दुकानि क्वी जगा निं छुटिन। पर दुया द्वी कखि निं मिलिन। बौण , गाड-गदना कखि नां। गौं बिटन अलग- अलग बाट्टौं वूं द्वियों का ख्वोजदारा भेजे गैन नजीक- नजीका गौं कि तरफां। पर हे राम ! कखि बिटिन भी क्वी खबर नि मिलि सकि।सुब्येर बिटिन सैडु गौं भागम भाग मां छौ। ज्ञानु दा हमारा गौं मा हि छौ आयूं। ब्याखन्या बग्त मूल़्यि ब्वडि रोंदि-रोंदि गैइ ज्ञानु मूं गणत करौंण तैं। ज्ञानुन भौत द्येर गणत करिक ऐंच सर्गै तरप आपरा गुरु तैं हात ज्वोड़िक , कौल़ कसम दीक, फिर आपरा हातै लकीर्वी तरफ आंखा करिक ब्वोलि - हे दिशा ! फिकर नं कर वु द्वी राजि खुसि छन। डरणा छन पर औणै स्वोचणा छन, बाट्टु बिर्ड़ि गिन । ब्वडि कि आंख्यों मां आशा कि ज्वोगीण चमकण लगी छै। - म्येरा गुरु कि झै विरदि ! भोल़ा छैं ढ़ल़्कण सि पैलि द्विय्या द्वी आपरि - आपरि ड्येल़ि भितर ऐ जाला। मूल़्यि ब्वडि आर पतरोल़ चचा कौं तैं ढ़ाडस त ह्वेगि छौ पर पूरो भरोसो निं ह्वे। जन ज्ञानुन ब्वोलि छौ वांसि भि पैलि - भोल़्कण्यो आदा दिन फुंड द्वीई बिरड़दा- बिरड़दा पौंछी छा आपरा ड्येरौं। ईं घटना सि ज्ञान्वी चराचरि सैडा गौं तक हि नां बल्कि पूरि पट्टि मां फैली छै। सब्बि ज्ञान्वी-ऽ गणत विद्या तैं माणि गै छा ।--- --- ---वे दिनै बात त मैं कभि निं भूलि सकदों । कैइ दां याद ऐ जांदि । अाठां बोर्डै परिक्षै तैय्यारि कन्न तैं हम गौं सि करिबन छै सात मील दूर स्कूलै मां रंद छैया , रात दिन ढ़क्याण बिस्तरा , रासन सम्येत। सुब्येर अंद्यार्वी छौ वे बग्त। हम प्रार्थना छा कन्ना अर गुरु जि टिमरू फांगु त्वोड़िकि दांतून कन्नै तय्यारि । ज्ञानु ऐ ,गुरु जि का कन्दूड़ पर सुर्कि सि कुछ ब्वोलि अर बांदण मा बैठि गै। गुरुजिन कुल़्लु़ भि नि करि। वु ऐन अर मैंमा ब्वोलि 'ज्ञानु त्वे ल्येण च आयूं । तु वे दगड़ि चलि जा अब्बि' । म्येरि बालबुद्धि ! क्वी सवाल-द्वार नि करि आर जुत्ता पैरिकि ज्ञानु दगड़ि चन्न लगि ग्यों। कख ? नां मैंन पूछि नं कुछ ज्ञानुन बतै। ज्ञानु का हौ भौ - उतपास, सुस्त, आतुरि, मुक्ख पर पिड़ा आंख्यों भितर क्वी बड़ो सदमा ! अगनै अगनै ज्ञानु दा पिछनै पिछनै मैं। कुछ दूर जैकि, अचाणचक्क उंद्यार्यों जनि जांण लगि वु त मैं अचरज ! मैंन पूछि 'हमारा गौंको बाट्टु त यख मूं बिटिन बैं-ऽ हात्थां च । उंद्यारि ?' 'बजार जांण कुछ सौदा तैं।' गुम्म ह्वे गै छौ ज्ञानु । चल़्दा चल़्द डेढ़ द्वी मील नीस पौंछिग्यां वे दुबाट्टा मूं जु हमारा गौं बिटिन औंद छौ।ज्ञानु खड़ु ह्वेक अगनै बाट्टै तरफ़ द्येखण लगी दू-र।जब वे अगनैं क्वी नि दिखेणि त ज्ञानुन भ्वां एका डल़ा मां बैठिकि मैंक तैं भि बैठणौ इसारो करि। स्कूलै पढ़ै अर इमत्यान वगैरा बारा मां पूछण लगि। संस्कृता शास्त्रि गुरु जि का बाबत पूछ्यूं। वूंको बांसौ डंडा कति दां खै वगैरा-वगैरा। वु श्लोक बोन्न लगि - वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरो पराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा- न्यन्यानि संयाति नवानि देही। ज्ञानु दा आंख्यों का भितर आंसु छा जु कैभि बग्त भैर ऐ सकद छा। वेन श्लोकौ मतलब पूछि। मैंन बतै दिनि। मैं स्वोचणू कि जन शास्त्रि गुरजि भौण मां संस्कृता शब्द्वू शुद्ध उच्चारण करदिन , ऐनसैन, उन्नि ज्ञानु भि ? वु मैं समझौंणू कि कृष्ण जिन अर्जुन तैं कुरुक्षेत्र मां क्या क्या ज्ञान दिनि - तुमारो क्या गै जो तुम रोणा छै----जो लिनि यखि -- जो दिनि यखि ---। कैइ श्लोक , वूंको अर्थ अर ज्ञान ध्याने बात सिखैन ज्ञानु दान। वु इंतजार मां उब्वी तरफ द्येखणू छौ । मैं भि द्येखण लग्यूं । दू--र एक म-ऽड़ु -- । हमारा गौंका ल्वोग दिख्येण लगिन। ज्ञानु जोर जोर सि मैं पकड़िकि कारणा कर्द कर्द रोंण लगी। फ्येणौ फुचकु लगी छौ वेका गिच्चा पर। म्येरा मुंड मा हाथ धरिकि ब्वोन्न लगि- म्येरा ठाकुरै त्वे परै छ्वोप आज खतम् ! 'म्येरो ठाकुर चलिगि आज, बैकुंठ'! हौर भि वेकि कैइ पुराणि बात्त बाटा फुंड याद औणी रैंन । चल़्दो चल़्दो पौंछिग्यों मैं वेका गौं। 'कूड़ि खन्द्वार ' नौं कि चार्यूं ज्ञान्वीं घासन ढ़कीं भ्वी मुंडि।उजड़ीं धुर्पाल़्या क्वी क्वी टुट्यां पठाल़ा रड़िक घास मा पड़्यां। बर्क - बथौं कि मार ! अगनैं बिटिन पाल़ जगा जगा तिड़कीं । कखि कंडाल़ि कखि ऐमड़ो जम्यूं ! मैं भितर चलि ग्यों। ज्ञानु भ्वां म्येल़ा मां बिछ्यां खांतड़ा मा पड़्यूं छौ। वेन गिच्चा भितर हल़्कि बाचन ब्वोलि- सेमानिन ठाकुरो ! पर पछाणि नि सकि। कुछ अचरज मा पड़ि गै। स्वोचणू रै होलु कि यु कु बीठ ऐ आज बिना क्वी भीन माण्यां गप्प म्येरि ड्येलि भितर ! जब मैंन आपरो नौं , गौं अर बबाजि को नौं बतैइ त गगडांदि-गगडांदि मुसकिलन कमर सीदो करिकि उठि। पैलि छिराऽड़ी मेरा मुक्क जनै देखण लगी। खुट्टौं हाथ लगौण जनि वेन हात बढ़ै मैंन वेको हाथ पकड़ी मुंड हलैक नां ब्वोलि। वेन मैं पर अंग्वाल़ मारि दिनि ! रोंण लगि गै। बाच भि नि ऐ सकणी छै ठीक सि । वु हमारो पुराणु औजि - जु कैई दिनु तैं बिर्ति मा बिटिन आपरा गौं जांदि दां सरासरि , पुल़्येंदि- पुल्य़ेंदू, गीत लगौंदि- लगौंदु बाटा फुंड मिल़्दारों तैं स्येमानिन ठाकुरो !-- स्येमानिन दिशौं ! ब्वोल़्द-ब्वोल़्द थकद नि छौ। मैं वूं दिनु जन कि सप्पा आपरा आंखौन द्येखणू ह्वों--- द्वी कांधौं मां जैका डड्वारा फांचा ,ग्येड़ गांठा रंद छा -- वे दिन कनि अवस्था मां छौ। वेका हाड्गौं पर लोत्गु चम्म बिलक्यूं जन बसग्याल़ ज्वोंक बिल्कदि। द्वी गल्वाड़ा छोटि छोटि उर्ख्याल़ौं कि चार्यूं जन रूड़्यों का घामुन सुख्यां। ह्येरां ! गिच्चा पर आट- दस दांत वु भि बोल़्दि दां सीदि शांत गौड़ि का कीलै चार्यूं हलाणा। जगा जगा पर टल्यैयों पैजमो कै रंगौ रै ह्वोलु क्वी निं बतैइ सकद छौ। कमर बांग्गु जन बथौंन डाल़ु ह्वो मुड़्यूं। अवस्था, ब्यवस्था अर गरिब्यो थ्येंच्यूं ज्ञानु दा ! ख्वाप्प ख्वाप्प कासणों छौ, भौत तकलीफ पिड़ा मां। कबरि ऐयै ?-- वु गौं गऽल़ा कि साद खबर पूछण लगि गै। वेकि बुरि हालत दिख्येणैं लगीं छै। फिर भि मैंन पूछि त बोन्न लगि निस्वोल़ि,निस्वोल़ि करी रुकि रुकी-ऽ-- बस,अाब कुछ दिनौं दाणों पाणि च-- अर आब हामुंन रैग तैं कन्न भि क्या ?---पुराणा ठाकुर लोग क्वी बच्यां नींन --चलि गिन बिचारा --। वूंका नौंना परदेस बसि गिन -- जु यख छन भि वूंमा वा अपण्यास वा मनख्यात वा दया पीड़ निं रैइ आब। ज्ञानु बोल़्दि दां कासणू भी छौ। पाणि पीकि बोन्न लगि -- आब त डड्वार भि कखै मिन्न -- पुगड़ौं कि राग जग्वाल़ि कन्न वाल़ा निं रैय्या क्वी भि। जु यख छन भि सब्बि सुसैट्यों वाल़ा ह्वेगिन।-- म्ये-ऽनत कैंन कन्न ? ह्ये लठ्याल़ौं -- ह्ये चुचौं ----। ह्ये म्येरि ब्वेई --- । पिड़ान कणाण लगी छौ वु।
--- पिस्तरु बिटिन हामुन तुमारि सेवा करि। आज तुम सब्बि उन्दु वाल़ा ह्वेग्यैइ। -- जाब तुमारि पुंगड़ि बांजि छन पड़ीं -- क्वी अद्येल़ पर छन चन्नीं त हमारि कूड़ि आफ्वी ह्वेगिन खन्द्वारऽ --। म्येरा ठाकुरै क्वी कमि नि छै तुमू तैं करीं।--- तुमारा कूड़ौं पर ताल़ा -- यख छोड़िकि किलैइ छै उन्दु वाल़ा ह्वोयां । यु गारु माटु-- हवा पांणि किलै भूल्यै तुम ? ज्ञानु-दा तैं एक फांचु छौ लिजायों म्येरो। थोड़ा देर बैठण का उपरान्त मैं पर सामर्थ निं रै छै ज्ञान्वी पिड़ा , कष्टै जिंदगि आपरा आंखौंन द्येखणै। मैं मन हि मन छौ स्वोचणु ज्ञान्वा इलाज का बारा मां। पर वे बग्त मैं उठणै कोशिश मां छौ। 'द्वी बर्स ह्वेगिन तुमारि औज्याण जायां।नौंना का नौं पर जु छौ भि परमातमा हि जाणो कख च । मर्यूं च कि बच्यूं।बर्ष रोज ह्वेगि।लापता च। वेका बाबत गणत कन्नौं सांसो नि ह्वोंद। कखि मरि सार्क्या ह्वोलो त गणत मां पता चल़्द हि मैंन बौल़्याऽ ह्वे जांण , मौत नीं औंण्या।' मैन बट्वा परै रुप्या गाडिकि फांच्चा मां धरि दिनिन। फांच्चो ज्ञान्वी तरफां खसकै- 'ज्ञानु-दा ! ए पर कुछ जुन्खा, चा मसाला खांण कल्यो च म्येरु ल्ह्यायूं तुमू तैं'। आंखा तड़तडा़ ह्वेक ऐंच मुंडै तरफां चड़ी छा वेका। फिर मुख पर मायुसि ऐगैइ छै।आंखौं मा बसग्याल़ि छोय्या ! सैडि गत्ति कांपण लगी छै वेकि थर- थर ! बोलण लगि - मैंन आपरा पुराणा ठाकुर्वा परताप खूब खै, खूब लैई - पैरि। क्वी कमि नि रैई। -- पर -- जब तुमुन इ गौं गऽला़ छोड़ि यालिन त धिक्कारत च मैंक जु मैं तुमारि क्वी चीज चीमूं ! बस्स, आपरि म्येसि मां रांन फल़्दा फूल़्दा डाल़्यों जना।' गैरि सांस लिनि ज्ञानु-दान । म्येरि तरफां द्येखण लगि। मैं चुप्प । 'अर ह्ये ठाकुर ! जो आपरो औजि समजिक कुछ द्येला त मैं वे दिन चीमलो भारि हर्ष खुसि सि, जै दिन तुम बाल बच्चौं सम्येत यख औला रैंण बसण तैं। बच्यूं रै जौलु त आपरि ठकर्वाण्या हाथ सि हि ल्योलु डड्वार पैलो- पैलो।' ज्ञान्वी आंखि मैं जनै छै। सैयद , देखणू रै होलु कि वेकि ब्वोलीं बात्तू मैं पर क्या असर ह्वोंद। मैं क्या बोल़्दूं । मैं ज्ञानु दा सामणि कुछ नि ब्वोलि सक्यूं । नीस स्वींस्याट करदि , फ्यऽणा फुचकौं आफु दगड़ि बगौंदि गाडै तरफ नजर पड़ि म्येरि अार वीं उंदैं तरफां जांदि देखिकि मैं खौल़्ये गैयू्ं