ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया / ओशो / पृष्ठ 1
Gadya Kosh से
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ओशो की आवाज जब
बहती हुई पवन की तरह
किसी के अंतर में सरसराती है,
एक बादल की तरह घिरती हुई बूँद-बूँद बरसती है,
और सूरज की एक किरण होकर
कहीं अन्तर्मन में उतरती है तो कह सकती हूँ,
वहां चेतना का सोया हुआ बीज पनपने लगता है।
फिर कितने ही रंगों का जो फूल खिलता है
उसका कोई भी नाम हो सकता है।
वो बुद्ध होकर भी खिलता है,
महावीर होकर भी खिलता है,
और नानक होकर भी खिलता है।
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