ज्योत के पहरेदार बहरे हो गए / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 02 नवम्बर 2018
अमिताभ बच्चन द्वारा संचालित 'कौन बनेगा करोड़पति' में एक किसान ने यह बताया कि उसकी औसत आय 60,000 रुपए सालाना होती है, जिसमें 30,000 उसे बीज खरीदने और बोने में खर्च करने पड़ते हैं। वह मात्र 30,000 में वर्षभर जीवन यापन करता है। उस क्षेत्र में वर्षा कम होती है और कई बार तीन किलोमीटर जाकर वह पीने लायक पानी ला पाता है। प्राय: वह बीज बोने पर पैसा व परिश्रम करता है परंतु वर्षा नहीं होने पर उसके प्रयास जाया हो जाते हैं। वह अपनी पत्नी के गहने महाजन के पास गिरवी रखता है। उसके रहवासी क्षेत्र की परम्परा के अनुसार गहने गिरवी रखने के कारण उसकी पत्नी अपने मायके नहीं जा पाती। पानी की कमी आंसुओं को बहाने से दूर नहीं होती। जीवनभर वह कितने हजार लीटर आंसू बहाता है। इसका आकलन नहीं किया जा सकता। इस तथ्य के साथ ही वित्त मंत्री का बयान है कि भारत में व्यवसाय करना पहले की अपेक्षा अब कुछ प्रतिशत आसान हो गया है-अत्यंत हास्यास्पद लगता है। अन्नदाता किसान का परिवार एक-एक दाने के लिए तरसता है।
फिल्मकार मेहबूब खान ने किसान के जीवन पर 1939 में 'औरत' नामक फिल्म बनाई थी, जिसे उन्होंने 1956 में 'मदर इंडिया' के नाम से बनाया था। यह भारत की सफलतम फिल्म मानी जाती है। किसान की करुण दशा पर सआदत हसन मंटो ने 'किसान कन्या' नामक पटकथा विगत सदी के चौथे दशक में लिखी थी। सारांश यह है कि सतत परिवर्तन होते जीवन में किसान की समस्याएं एवं अभाव एकमात्र दुख है, जो कभी बदला ही नहीं।
सदियों से हम भारत को कृषि प्रधान देश कहते आ रहे हैं। वर्तमान भारत को झूठी-सच्ची खबर प्रधान देश कहना चाहिए। खबर-संसार की सुर्खियां जीवन का यथार्थ बयां नहीं करतीं। किसान के खून के आंसू धरती पर सच्चा इतिहास लिख रहे हैं, जिसे पढ़कर हमें शर्मसार होना चाहिए। नोट और वोट की चर्चा चटखारे लेकर की जा रही है मानो यही एकमात्र महत्वपूर्ण बात है। चुनाव जीतने के किमिये मात्र को जान लेना गीता के रहस्य को जान लेने की तरह परिभाषित किया जा रहा है। हम कितना खोखला सारहीन जीवन जीने का अभिनय करते जा रहे हैं और नट सम्राट को नेता मान रहे हैं। कैसे इस्पाती सीने हैं हमारे कि किसान व्यथा-कथा सुनकर फटते नहीं हैं। दशकों पूर्व अल्बर्ट कामू ने संवेदना विहीन पात्र की रचना की थी और उस समय लगता था कि यह भयावह जीवन का यथार्थ नहीं बनेगा परंतु अब स्वीकार करना होगा कि अल्बर्ट कामू ने भविष्य को देख लिया था।
अल्बर्ट कामू यह कल्पना नहीं कर पाए थे कि अन्याय व असमानता आधारित व्यवस्था के खिलाफ कितना भी लिखा जाए, उस व्यवस्था और अवाम के सोच-विचार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। बुलेट प्रूफ जैकेट की तरह करुणा प्रूफ ह्रदय भी विकसित होंगे। बुलेट प्रूफ जैकेट भेदे जा सकेंगे पर पाषाण ह्रदय पर कभी मानवीय करुणा का प्रभाव नहीं होगा। 'कौन बनेगा करोड़पति' कार्यक्रम में आए किसान ने यह भी बताया कि उसके क्षेत्र में प्रतिदिन केवल चंद घंटों के लिए बिजली आती है। उसी सीमित समय के लिए उपलब्ध बिजली से मोटर चलाकर कुओं से पानी निकाला जाता है, बच्चे पढ़ाई कर लेते हैं और उसने भी थोड़ा पढ़ लिया है। महानगरों को निरंतर बिजली मिलती रहे, इसलिए ग्रामीण क्षेत्र को वंचित किया जाता है। अनेक दशक पूर्व एक हॉलीवुड फिल्म प्रदर्शित हुई थी। 'व्हेयर वर यू व्हेन द लाइट्स वेंट आउट' कुछ घंटों के लिए महानगरों में बिजली जाने की घटना पर बनी यह एक हास्य फिल्म थी।
उस किसान का जीवन कार्यक्रम में जीती हुई धनराशि से बदल जाएगा। अब उसकी पत्नी के गहने गिरवी नहीं रखे जाएंगे और वह वर्षों बाद मायके जा पाएगी। कभी-कभी कहीं-कहीं लॉटरी खुल जाने से जीवन बदल जाता है परंतु इसे समाज में आया परिवर्तन नहीं कहा जा सकता। व्यवस्था में ऐसा परिवर्तन आना चाहिए कि अधिकतम लोग स्वयं के पसीने से अर्जित धन से सामान्य जीवन जी पाएं। अगर उस करोड़पति किसान का पड़ोसी कर्ज में डूबा है और पानी के अभाव में वह खेती नहीं कर पाया है तो उसका इत्तेफाक से अमीर हो जाने का कोई महत्व ही नहीं है। दीपावली के पावन अवसर पर पूरे मोहल्ले में केवल एक घर में अनेक दिए प्रकाश दे रहे हों और शेष सारे घरों में अंधकार छाया हो, तो ऐसी तरक्की का क्या फायदा। आम आदमी का शरीर उस दिए की तरह नहीं हो, जिसमें तेल के बदले उसका रक्त और बाती के रूप में उसकी आत्मा जल रही हो। क्या कभी ऐसी दीपावली हम मना पाएंगे? वह दीपावली हमीं से आएगी-इस तरह की आशा का उजास बना रहना चाहिए। दमोह के सत्यमोहन वर्मा की पंक्तियां हैं- 'अंधेरे और गहरे हो गए हैं, अंधेरे की बात तक सुनने को नहीं तत्पर ज्योत के पहरेदार इतने बहरे हो गए है।