झगड़े की जड़ / उमेश मोहन धवन
भगीरथ के चार बेटे थे। व्यापार भी एक था और रहते भी एकसाथ अपने मकान में ही थे। पर इधर कुछ महीनों से उनमें बन नहीं पा रही थी। कभी कोई बेटा अपने भाई की शिकायत लेकर बाप के पास आता तो कभी दूसरा आकर बँटवारे की बात करता। उनके रोज रोज के झगड़ों से भगीरथ तंग आ गया । एक दिन तो चारों एक साथ उसके पास आकर व्यापार और जायदाद अलग करने की मांग करने लगे। भगीरथ ने परेशान होकर उनसे कहा “बचपन में तो तुम लोग ऐसे नहीं लड़ते थे। सब बड़े प्यार से मिलजुल कर रहते थे। अब ऐसा क्या हो गया है ? तभी बाप की नज़र बाहर बैठे तीन चार कुत्तों पर पड़ी जो आँखें बंद किये एकसाथ बैठे जीभ निकालकर हाँफ रहे थे। “तुमसे तो अच्छे ये कुत्ते ही हैं। कितनी शांति से एक साथ बैठे हैं। एक तुम लोग हो कि कुत्तों से भी बदतर हो। भगीरथ ने खीझकर ताना मारते हुये कहा। ये देख सभी भाइयों का सिर शर्म से झुक गया। तभी ऊपर की मंज़िल में रहने वाले किरायेदार ने एक रोटी फेंकी जो कुत्तों के बीच आकर गिरी। सभी ने आँखें खोल दीं। एक कुत्ता रोटी की तरफ लपका। उसे देख दूसरा भी भौंकने लगा। रोटी वाला कुत्ता जल्दी ही वहाँ से भाग जाना चाहता था पर बाकी सभी ने भौंककर उससे रोटी छीनने की कोशिश की। इसी छीनाझपटी में किसी को एक टुकड़ा मिला किसी को एक भी नहीं। पर सभी एक दूसरे को काटने में लगे थे। रोटी तो कब की खत्म हो गयी थी पर कुत्ते थे कि अभी तक एक दूसरे पर भौके जा रहे थे। कमरे में बैठे सभी लोगों को झगड़े का कारण अच्छी तरह समझ में आ गया था।