झुको, झुको और झुको / राजकिशोर
कई उपन्यासों को पढ़ने और कई फिल्में देखने के बाद मैं इस बात का कायल हो चुका हूँ कि कोई पूरी तरह खत्म नहीं होता यानी पतित से पतित आदमी में भी कुछ संभावना बची रहती है। इसी तरह, पतित से पतित देश में भी नया उभार आ सकता है। हर समाज में, हर वर्ग में, हर समूह में प्रतिभा होती है। किसी को भी आप परमानेंटली डिलिट नहीं कर सकते। डिलिट किए जाने पर वह रिसाइकिल बिन में जाकर बैठ जाएगा और रिस्टोर होने की प्रतीक्षा करेगा। इसलिए आप किसी को भी खारिज नहीं कर सकते। कुछ भी संभावना से परे नहीं है। सब कुछ होना बचा रहेगा। तब भी खिलेंगे फूल। लोग अपनी जाति जाएँगे भूल। ये रात कभी तो जाएगी। वो सुबह कभी तो आएगी।
सो मित्रो, लखनऊ में यह हो ही गया। मैं तो पढ़ कर बहुत आह्लादित हुआ, पर यह समझ में नहीं आया कि इस समाचार को लिखने वाला संवाददाता परेशान है, हतप्रभ है या खुश है। उसकी रिपोर्ट बता रही थी कि 18 अक्तूबर को लखनऊ में गजब हो गया। गजब यह हुआ कि मायावती सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार के अवसर पर आयोजित शपथ समारोह में 'अगड़े और पिछड़े, सभी मायावती के आगे दंडवत थे। कुछ ने शीश नवाया, कुछ चरण तक झुके, तो कुछ साष्टांग दंडवत हो गए। राजपूत भी थे, ब्राह्मण भी थे और यादव-वैश्य भी।...हालात ये थे कि एक ठाकुर मंत्री ने पैर छूने की हड़बड़ी में शपथ अधूरी छोड़ दी और राज्यपाल को टोकना पड़ा।'
मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरे जीते जी इतनी सुंदर घटना घट सकती है। मुझे बचपन से ही किसी के पैर छूना अटपटा लगता रहा है। कह सकता हूँ, अशिष्ट भी। अशिष्टता पैर छूने वाले की उतनी नहीं, जितनी छुआने वाले की। लेकिन आज मैं अपनी मूर्खता को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करना चाहता हूँ। मुझे मालूम ही नहीं था कि पैर छूना एक ऐतिहासिक घटना भी हो सकता है। इतिहास? नहीं, प्रति-इतिहास। इतिहास का तो अंत हो चुका। उसको नौकरी से हमेशा के लिए छुट्टी दे दी गई और प्रति-इतिहास को नियुक्त कर लिया गया। इतिहास आगे बढ़ने की जिद करता था। आजकल जिद्दी आदमियों के लिए कहीं जगह नहीं है। सो इतिहास की मृत्यु की घंटी बजा दी गई। प्रति-इतिहास किसी प्रकार की जिद नहीं करता। वह यह तक नहीं कहता कि किसी देश पर आक्रमण मत करो। किसी का खून मत बहाओ। किसी की बस्ती न जलाओ। औरतों को नंगा मत घुमाओ। औरतों के चेहरे पर जबर्दस्ती नकाब मत डालो। हमेशा अपने को सभ्य और दूसरे को असभ्य न मानो। प्रति-इतिहास एक विराट, सीमाहीन आशियाना है, जिसके भीतर कुछ भी किया जा सकता है। इस कुछ करने में कुछ न करना भी शामिल है। कह सकते हैं कि कुछ बनाने के लिए मिट्टी का गीला होना जरूरी है। सो हमने ठोस मिट्टी को 'भूरी भूरी खाक धूल' में बदल डाला है और उस पर दो लोटा पानी डाल कर अपनी प्रति-सृष्टि रच रहे हैं।
मायावती सरकार के ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य, यादव मंत्रियो, तुम्हें पता नहीं है कि तुमने अनजाने में क्या कर दिया है। तुम तो मायावती के प्रति अपना आभार प्रकट करने के लिए झुके थे। पर तुम्हें नहीं पता कि तुम एक सिद्धांत भी रच रहे थे। इस देश में कोई कुछ देता है, तो वह बदले में इसी की माँग करता है : झुको, जितना झुक सकते हो, झुको। अगर नहीं झुकोगे तो मान लिया जाएगा कि जो तुम्हें मिला है, वह तुम्हारा प्राप्य था। तुम्हारी इस अधिकार चेतना को तुम्हारा अहंकार माना जाएगा और तुम्हें बिरादरी से बाहर कर दिया जाएगा। सो झुको, मिलने के पहले झुको, मिलने के बाद झुको। हो सके तो वहाँ तक झुको जहाँ उसके पैर हैं। यहाँ तक न झुक सको, तो घुटने तक झुको। इतना भी काफी है। वह समझ जाएगा कि तुम झुकना तो और नीचे तक चाहते हो, पर साहस नहीं हो रहा है। ये वो जगह है दोस्तो, जहाँ साहस नहीं, निरीहता देखी जाती है। निरीहता है, दाँत निपोर कर खड़े रहने की शक्ति है, तो तुम इसे किस शैली में व्यक्त करते हो, यह तुम्हारे अंतःकरण का मामला है। यथार्थ यह है कि तुममें झुकने की इच्छा जोर मार रही है। इतना ही काफी है, मित्र। तुम आगे जाओगे। तुम्हें आगे जाने से कोई रोक नहीं सकता। हाँ, रियाज नियमित रूप से करते रहना।
मुझे पूरा विश्वास है कि ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया आदि मंत्री मायावती के आगे जमीन तक झुकने के पहले पर्याप्त रियाज करके आए होंगे। आखिर इसके पहले तो झुकने की नौबत कभी आई नहीं थी। पहली ही बार में इतना परफेक्शन! नहीं, सिर्फ दो-चार दिन के रियाज से यह ऊँचाई हासिल नहीं की जा सकती। इसके पीछे सैकड़ों वर्षों की आदत होनी चाहिए। एक गुलाम और गरीब देश में झुके बिना काम नहीं चलता। वही पुरानी आदत 18 अक्तूबर को काम आई। इतिहासकारो, हाथ पर हाथ रखे क्यों बैठे हो? अपना भारी-भरकम पोथा निकालो और थोड़ा झुक कर एक नए पन्ने पर लिखो, अब उत्तर प्रदेश को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता। इन झुके हुए लोगों की पीठ पर चढ़ कर ही महामहिषी मायावती दिल्ली की तरफ कूच करेंगी।
चिंता मत करो, जरूरत पड़ने पर वे भी झुकेंगी। पता नहीं किसके सामने झुकना पड़े। अपने दम पर बहुमत नहीं आया तो? थोड़ा झुकना ही पड़ेगा। इसीलिए मैं उत्तर प्रदेश के नए मंत्रियों को बधाई देता हूँ। वे सिर्फ इतिहास के प्रवक्ता नहीं हैं, प्रति-इतिहास के निर्माता भी है। वस्तुतः ऐसे ही बिंदुओं पर इतिहास और प्रति-इतिहास एक दूसरे के गले में बाँहें डाल कर ताता थैया नाचते नजर आते हैं।