झूठ के रंग अनेक, खो रहा है विवेक / जयप्रकाश चौकसे

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झूठ के रंग अनेक, खो रहा है विवेक
प्रकाशन तिथि :25 दिसंबर 2017


कहावतों काजन्म होता है मनुष्य जीवन के अनुभव से। कई बार इस काम में सदियां लग जाती हैं परंतु हर क्षण यह प्रक्रिया जारी रहती है। कभी-कभी इनके पीछे कोई तर्क आधारित कारण भी नहीं होता परंतु अकारण कुछ नहीं है। यूरोप में 'संगम' की शूटिंग के समय राजेन्द्र कुमार राज कपूर को नींद से जगाने के लिए उनके कक्ष में आते थे। दिन में शूटिंग और देर रात में प्रयोगशाला से आए पिछले दिन के रश प्रिंट देखने के कारण नींद के घंटे कम ही मिलते थे। एक दिन राजेन्द्र कुमार ने कई प्रयास किए परंतु राज कपूर उठ नहीं रहे थे। जब राजेन्द्र कुमार ने कहा कि दोपहर होने को आई है तब राज कपूर ने कहा कि आप झूठ बोल रहे हैं।

राजेन्द्र कुमार कमरे की बालकनी के पास खड़े थे। अनायास उनके मुंह से निकला 'झूठ बोलूं तो कौआ काटे।' इस घटना के दस वर्ष बाद राज कपूर 'बॉबी' के लिए गीत रच रहे थे। उन्हें युवा प्रेमी-प्रेमिका की नोंक-झोंक के गीत के लिए आकर्षक मुखड़ा नहीं मिल रहा था। पुरानी साधारण-सी घटना का स्मरण हुआ और मुुखड़ा बन गया 'झूठ बोले कौआ काटे, काले कौए से डरियो, मैं मायके चली जाऊंगी तू देखते रहियो।'

श्रोताओं को अंतरे याद नहीं रहते। गीत की त्वरित लोकप्रियता मुखड़े से बनती है। इतना ही नहीं राज कपूर के मित्र 'बाबू मोशाय' ऋषिकेश मुखर्जी ने अनिल कपूर अभिनीत फिल्म का नाम रखा 'झूठ बोले कौआ काटे' ज्ञातव्य है कि ऋषिकेश मुखर्जी ने राज कपूर के साथ बैठकर 'आनंद' की पटकथा लंदन में तब बनाई थी जब वहां टेक्नीकलर लैब में 'संगम' की शूटिंग के उपरांत किया जाने वाला काम चल रहा था। जब मुखर्जी साहब 'आनंद' बनाना चाहते थे तब राज कपूर मोटे हो गए थे। उन्हें कैंसर के मरीज के रूप में दर्शक के मन में उतारना कठिन था। दक्षिण के श्रीधर की फिल्म 'दिल एक मंदिर' में कैंसर विशेषज्ञ मर जाता है और रोगी ठीक हो जाता है।

कैंसर केंद्रित खाकसार की 'शायद' में इच्छा मृत्यु पर विचार किया गया है कि लाइलाज रोग से ग्रस्त रोगी स्वेच्छा से मर जाना चाहता है। उसका शरीर यातना शिवर बन चुका है। उसके इलाज पर खर्च राशि परिवार का भविष्य खतरे में डाल सकती है। क्लाइमैक्स में पति द्वारा बेहद इसरार करने पर पत्नी उसे जहर का इन्जेक्शन देती है। छुई-मुई सेन्सर का एतराज था कि एक भारतीय पत्नी अपने पति को जहर नहीं दे सकती। लंबी कानूनी उलझन से बचने के लिए उस घटना को आत्महत्या की तरह प्रस्तुत करना पड़ा। इस तरह एक साहसी कथा की हत्या कर दी गई। 'शायद' में मरीज के दिल में उठती मृत्यु की समस्या को इस बिंब विधान से प्रस्तुत किया गया कि मरीज अस्पताल के अपने कक्ष की खिड़की से देखता है कि सामने वाले घर की छत पर श्राद्ध का भोजन कौओं को खिलाया जा रहा है। शूटिंग के िलए विविध भोजन छत पर डाले गए पर एक भी कौआ नहीं आया। शायद वे जान गए कि कोई मृत्यु नहीं हुई है और मृत्यु का स्वांग रचा जा रहा है। एक दिन निर्माण प्रबंधन के व्यक्ति ने बताया कि आज कौए छत पर आएंगे। बाद में ज्ञात हुआ कि उस व्यक्ति ने मरे हुए कौए को छत पर डाला था। यह सच भी शूटिंग समाप्त होने के बाद मालूम पड़ा। कहा जाता है कौए नहीं चाहते कि अन्य प्राणी यह काम करें।

हाल में ज्ञात हुआ कि बरसों पूर्व एक घपला हुआ ही नहीं था परंतु झूठे प्रचार के कारण सत्ता परिवर्तन हुआ। 'सत्य मेव जयते' के मंत्र को मानने वाले देश में ऐसा भी हुआ है। रहस्य उजागर होने के बाद दक्षिण भारत में लोग आहत महसूस कर रहे हैं। इस तरह के कार्यों द्वारा उत्तर-दक्षिण के बीच विश्वास टूट सकता है। धरती के गर्भ में सरहदें उत्पन्न कर दी गई और वे कभी भी उजागर हो सकती हैं गोयाकि 'बांटो और राज करो' की अंग्रेजों की नीति बदस्तूर जारी है।

मीर तकी मीर की नज़्म आज के हालात का विवरण प्रस्तुत करती है। 'अय झूठ आज शहर में तेरा ही दौर है शेवा (चलन) यही सभी का, यही सबका तौर है, अय झूठ तू शुआर (तारीक) हुआ सारी खल्क (दुनिया) का, क्या शाह का, वजीर का क्या, अहले दल्क ( जोगी) का, अय झूठ तेरे शहर में ताबई (अधीन) सभी मर जाए क्यों कोई, वे बोलें सच कभी।'

आज झूठ बोलने वाले को उसकी आत्मा ही नहीं काटती तो कोई क्या करे? नैराश्य की यह दशा हमेशा जारी नहीं रहेगी। इंतजार अपने आप मे मुकम्मल काम है।