झूठ / लिली पोतपरा / आफ़ताब अहमद
अभी घर न जाइए नानी !” टिंका अपनी नानी से रिरियाते हुए कहती है, जो उसके बालों में कंघी करते हुए घड़ी की ओर देखने लगी थीं। टिंका को मालूम है कि नाना काम से घर वापस आने वाले होंगे और भूखे होंगे। फिर भी वह नहीं चाहती कि उसकी नानी अपने घर जाएँ। नानी के चले जाने के बाद उसे अपना अपार्टमेंट अजीब तरह से ठंडा महसूस होने लगता है, हालाँकि उसके फ़ौरन बाद उसकी माँ और पापा घर आते हैं। “थोड़ी देर और रुकिए, इतनी जल्दी क्या है ?”
नानी उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहती हैं: “ठीक है, मैं बस दुकान तक जाऊँगी। ब्रेड लाना है, और नाना के लिए कॉफ़ी भी लानी है।”
टिंका का रिरियाना रुक जाता है। नानी कोट पहनती हैं। वे हाल के आईने पर एक नज़र डालती हैं, अपना बैग उठाती हैं और चली जाती हैं। टिंका दौड़कर बेडरूम की खिड़की के पास जाती है, क्योंकि वहाँ से बाहर आँगन नज़र आता है, जहाँ से दुकान से अपार्टमेंट में दाख़िल होने वाले हर व्यक्ति को वह देख सकती है।
टिंका खिड़की के पास दुबकी बैठी है। उसे सामने के गेट से माँ आती हुई नज़र आती हैं। वह अपने पापा को फ़ोर्ड कार की बग़ल में कार पार्क करते हुए देखती है और लोगों को काम से घर वापस आते हुए देखती है।
“टिंका, किचन में आओ। आख़िर तुम कर क्या रही हो? वहाँ ऐसी क्या बात है जो इतनी देर से बैठी हो?” माँ नानी के पकाए लंच को दुबारा गर्म करते हुए कहती हैं। पापा कुछ नहीं कहते, क्योंकि काम के बाद उन्हें बहुत भूख लगी है और वे फ़ौरन खाना चाहते हैं।
टिंका खिड़की के बाहर देखती है। उसे पेशाब लगा है, लेकिन वह वहाँ से हटती नहीं, क्योंकि उसे मालूम है कि उसके जाते ही नानी वापस आएँगी। उसे होमवर्क करना है, लेकिन वह नहीं करती क्योंकि नानी अब किसी भी वक़्त वापस आ सकती हैं।
सूरज धीरे-धीरे डूब रहा है। टिंका दौड़कर बाथरूम में पेशाब करने जाती है। उसकी बहन म्यूज़िक स्कूल से घर वापस आती है। माँ चिड़चिड़ाई हुई हैं, और पापा फ़ुटबाल खेलने गए हैं। जिस शीशे से टिंका अपना चेहरा सटाए बैठी है वह उसके मुँह की भाप से धुंधला गया है।
अब तक़रीबन रात हो चुकी है। टिंका का मुँह बदमज़ा सा हो रहा है। उसे महसूस होता है कि जैसे उसके पेट में एक अजीब सा मकड़ी का जाला हो। जैसे सैंकड़ों चिपचिपे मकड़े उसके अन्दर रेंग रहे हों।
“बेटी, यहाँ आओ, कार्टून देखो। आख़िर तुम्हें आज हुआ क्या है?” माँ कहती हैं, जो अभी भी बुरे मूड में हैं।
“मैं नहीं आती,” टिंका धीरे से कहती है। फिर कहती है: “ नानी अभी-अभी दुकान गई हैं। दुकान बंद होने वाली है। वो अब आने ही वाली होंगी।
नानी वापस नहीं आतीं। टिंका अपना पाजामा पहनती है और थोड़ा दही खाती है। अब वह खिड़की को नहीं देख रही है। वह किसी की तरफ़ नहीं देखती। वह अब कुछ देखना ही नहीं चाहती। लेकिन उसके लिए आँखें बंद करना भी कठिन है क्योंकि वह आँखें मूंदती है, तो उसे नानी नज़र आती हैं -- दरवाज़े से निकलकर दुकान की तरफ़ जाते हुए। वे सैकड़ों दफ़ा जाती हैं और सैकड़ों बार वापस नहीं आतीं।
अगली सुबह टिंका को महसूस होता है कि वह एक ही रात में कई साल बड़ी हो गई।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : आफ़ताब अहमद