झूला पहाड़ / मनोहर चमोली 'मनु'
चूजा, गुबरैला और चींटी एक साथ थे। किसी ने भी पहाड़ नहीं देखा था। चींटी बोली,‘‘मुझे पहाड़ पर चढ़ना है।’’ चूजा हँसते हुए बोला,‘‘तुम मुझे पहाड़ समझ लो। मेरी पीठ पर चढ़ जाओ। एक चींटी के लिए चूजे की पीठ किसी पहाड़ से कम नहीं।’’ गुबरैला बोला,‘‘मैं कैसे अनुमान लगाऊँ?’’ पास में ही खरगोश था। वह बोला,‘‘एक गुबरैले के लिए खरगोश की पीठ पर चढ़ना पहाड़ के बराबर होगा। वैसे तो मैंने भी पहाड़ नहीं देखा। वह बड़ा है। बहुत दूर है। हाँ! हम पहाड़ को महसूस कर सकते हैं।’’ चूजे ने पूछा,‘‘कैसे?’’
तभी एक हाथी आ गया। खरगोश ने हाथी को सारी बात बताई। हाथी हँसा। बोला,‘‘ठीक है। मेरे पैरों से होते हुए पूँछ पकड़ लो। फिर पीठ पर चढ़ जाओ। तुम सबके लिए मेरी पीठ पहाड़ के समान है।’’ सब हाथी पर चढ़ने लगे। पीठ तक का सफ़र जैसे-तैसे पूरा हुआ। चूजा बोला,‘‘थकान हो गई।’’ गुबरैला ने कहा,‘‘अब उतरेंगे कैसे?’’ खरगोश सबसे आगे था। चूजे ने उसकी पूँछ पकड़ ली। चूजे की पूँछ गुबरैले ने पकड़ ली। गुबरैला चींटी से बोला,‘‘तुम मेरी पीठ पर चढ़ जाओ।’’ अब हाथी बोला,‘‘बढ़िया। अब मेरे सिर की ओर आ जाओ। सूँड से नीचे उतर आओ।’’ हाथी ने सिर झुकाया। सूँड को धरती पर टिका दिया। सब झूला झूलते हुए नीचे आ गए।