झोपड़पट्टी : पर्यटन आकर्षण / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :30 जनवरी 2018
भारत में लाखों विदेशी इस अजब-गजब देश के भ्रमण के लिए अाते हैं। उन्हें प्राय: ताजमहल, कुतुबमीनार, अजंता-एलोरा इत्यादि स्थानों पर ले जाया जाता है। कुछ लोग फिल्म स्टूडियो भी जाते हैं। मुंबई के रवि सान्सी नामक व्यक्ति ने सिंगापुर से आए एक पर्यटक द्वारा इच्छा जाहिर करने पर उसे अपनी झोपड़पट्टी में बसे एक कमरे के निवास की सैर भी कराई, जिसमें उसके परिवार के सोलह सदस्य रहते हैं, जिसमें से कुछ को बरामदे में सोना पड़ता है। छोटे से कमरे में एक लॉफ्ट भी बनाया गया है, जिसमें कुछ सदस्य रात गुजार सकें। बस्ती में एक शौचालय है,जिसमें बस्ती के सारे निवासी जाते हैं। प्राय: कतार में खड़ा होना पड़ता है। पर्यटक ने इच्छा जाहिर की कि वह एक दिन उस घर में गुजारना चाहता है और उनके साथ भोजन भी करेगा। वह विदेशी भारत की गरीबी को अनुभव करना चाहता था ताकि स्वदेश जाकर भोगे हुए यथार्थ का विवरण लिख सके। पर्यटक ने रवि सान्सी को इस मेजबानी के लिए दो हजार रुपए दिए। बस्ती की गलियां संकरी हैं, गंदगी चारों और पसरी है। मनुष्य मक्खियों की तरह भिनभिनाते हैं, मच्छर समूह गीत गाते हैं।
पर्यटक ने एक दिन अभावों का जायजा लिया और विदाई के समय वह रोने लगा, क्योंकि अभावभरा दिन बिताते समय उसने सनसनी महसूस की थी और उसके जीवन का वह सबसे विचित्र अनुभव था। इस घटना के बाद रवि सांसी ने इसे अपना व्यवसाय बना लिया है और वह पर्यटकों को गरीबी की अनुभव यात्रा पर ले जाने का व्यवसाय करने लगा। हमारे आलमपनाह अपना अधिकांश समय विदेश में गुजारते हैं। इस बात को रवि सान्सी के प्रयोग के साथ जोड़कर देखें तो आपको कबीर की उलटबासी समझने में सहायता मिलेगी। इस घटना से स्मरण आता है कि महान कलाकार नरगिस ने राज्यसभा में बयान दिया था कि फिल्मकार सत्यजीत राय भारत की गरीबी को अपनी फिल्मों में प्रस्तुत करते हुए गरीबी का ही 'निर्यात' करते हैं। इस बयान पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने यह कहकर नरगिस को डांटा था कि 'मदर इंडिया' अभिनीत करने से आप भारतवर्ष की नुमाइन्दगी करने का अधिकार प्राप्त नहीं कर सकतीं।
पीटर ओ' टूल और रिचर्ड बर्टन अभिनीत 'बैकेट' में रिचर्ड बर्टन अपने मित्र हैनरी को कहता है कि उसे चर्च के उच्च पद पर आसीन करवाने के बाद यह संभव है कि वह अपने मित्र प्रिंस हैनरी के विरोध में खड़ा हो जाए, क्योंकि तब वह ईश्वर का चाकर होने के नाते राजा के विरोध में खड़ा हो सकता है। ज्ञातव्य है कि 'बैकेट' को ही ऋषिकेश मुखर्जी ने 'नमक हराम' के नाम से बनाया था। सारांश यह कि पूर्व नियोजित भूमिकाओं में रमते हुए मनुष्य की विचार शैली बदल सकती है। भूमिकाओं द्वारा भी 'परकीया प्रवेश' हो सकता है। गाइड अपने अंदाजे बयां में गरीबी भ्रमण करने वाले विदेशियों को गरीबी के भेद समझाएगा। गरीबी की भी कई सतहें हैं और चतुर गाइड गरीबी के भीतर के वर्ग संघर्ष को पर्यटक को समझा जा सकता है। दीपिका पादुकोण के ड्राइवर और माही गिल के ड्राइवर में अंतर है।
जब आपका हवाई जहाज मुंबई में उतरने वाला होता है तब खिड़की से आप बहुमंजिला इमारतें देखते हैं तो भ्रम होता है कि कहीं आप न्यूयॉर्क तो नहीं आ गए परंतु जब हवाई जहाज लगभग लैंड करने को होता है तो झोपड़पटि्टयां देखकर लगता है कि यहां हारलेम भी है, जो न्यूयॉर्क में गरीब नीग्रो लोगों की बस्ती है। अजब-गजब भारत में एक ही क्षण में सैकड़ों सदियां समाई होती हैं और पूंजीवादी पताकाओं की तरह बहुमंजिला इमारतों के साथ झोपड़पटि्टयां भी नज़र आती हैं। भारत एक सिनेमाई मोन्ताज की तरह नज़र आता है। नेताओं के भाषण फास्टस्पीड में शूट किए हुए और गरीबी स्लो स्पीड में लिए दृश्यों की तरह नज़र आती है। गरीबी का उत्पाद करना, उसका निर्यात करना और उसे दिनोंदिन झेलना अलग-अलग अनुभव हैं।
याद आता है कि इरफान खान अभिनीत 'हिंदी मीडियम' नामक फिल्म में अपने बेटों को गरीबों के आरक्षित कोटे से स्कूल में दाखला दिलाने के लिए धनाढ्य इरफान अपनी पत्नी सहित गरीबों की बस्ती में कुछ दिन रहता है। यह एक सामाजिक सोद्देश्यता की महान फिल्म थी, जो हमें 1833 में लॉर्ड मैकाले के ब्रिटिश संसद में दिए बयान की याद दिलाता है कि भारत की शिक्षा प्रणाली में अंग्रेजी भाषा के शामिल होने के बाद कुछ तेजस्वी छात्र ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज में शिक्षा ग्रहण करने के बाद भारत के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होंगे परंतु अंग्रेजी भाषा सदैव के लिए उस देश के सामूहिक अवचेतन में समाकर अजर-अमर हो जाएगी। लॉर्ड मैकाले ने यह नहीं सोचा था कि भारत में अंग्रेजी विविध स्वरूप, लहजे ग्रहण करेगी और क्षेत्रीयता में रम जाएगी।