टर्मिनेशन लेटर / शमशाद इलाही अंसारी

Gadya Kosh से
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तीन बहनों का इकलौता छोटा भाई था सौरव। रिटायर्ड पिता की खुशियों का तब कोई ठिकाना न था जब उन्हें पता चला कि उनका बेटा शीघ्र ही दुबई की एक फ़र्म में नौकरी करेगा। तीन बेटियों की शादी और सौरव के एम०बी०ए० की पढ़ा़ई के खर्च के बाद बूढे़ पिता की तमाम पूंजी खर्च हो चुकी थी। इस ख़बर ने पूरे घर में खुशियों,आशाओं और सपनों के नये रंग-बिरंगे दीपक जला दिए थे। सौरव दुबई आ गया और बड़े मनोयोग से अपने कार्य में जुट गया. हर माह अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा वह महीने की पहली तारीख़ को अपने एकाउंट से पिता के नाम ट्रांसफ़र करता. पिछ्ले दिनों जब उसे अपनी माँ की तबियत खराब होने का पता चला तो उसने अपने मित्र को भेज कर उनकी तसल्ली बख्श जाँच एक अच्छे डाक्टर से करवाई, पता चला कि ब्लड प्रैशर हाई था और एक दवा हमेशा खानी होगी. सौरव को अपनी बढी़ जिम्मेदारी का अहसास और घना हो गया था.

हर रोज़ की तरह सौरव ने सुबह दफ़्तर पहुँचते ही अपना लैपटाप आन किया और ई-मेल चेक करने लगा.विश्व व्यापी मंदी के दौर में भी उसे अपनी सेल्स फ़िगर्स पर संतोष था. मंदी के चलते उसके कई सहकर्मियों की कंम्पनी ने छुट्टी कर दी थी. सभी कर्मी इस बात को लेकर आश्चर्यचकित थे कि न तो कंम्पनी को कोई घाटा हुआ, न धन्धे में कोई गिरावट आयी फ़िर भी कंम्पनी कर्मचारियों की छंटनी क्यों कर रही है? सौरव के एक सहयोगी सज्जाद का जुमला उसे याद रहता, वो कहता,"मंदी तो एक बहाना है, बास को छुरी चलाना है".

टेलीफ़ोन की घंटी ने उसे चौंकाते हुये हड़काया, डिस्पले पर बास का नंबर देख मुस्तैदी से रिसिवर उठाते ही उसके होंठों से ओटोमैटिक फ़ोर्मेट में शब्द निकले, "गुड मार्निंग सर"..., सौरव, कम डाऊन प्लीज़..बास की आवाज़ की गंभीरता भाँप कर, सौरव ने बिजली की फ़ुर्ती से कुर्सी छोडी और बास के रुम में लपकते हुये दाखिल हुआ. सिगरेट में गहरा कश भरते और धुँआ एक ओर छोड़ते हुए बास ने सौरव को बैठने का इशारा किया.

"सौरव, मैनेजमैंट ने तुम्हारी डिविज़न की पुअर पर्फ़ोमेंस के लिये और कई लोगों के साथ तुम्हे भी दोषी माना है, ये महीना आपका आखिरी महीना है"....बात पूरी किये बगैर एक लिफ़ाफ़ा, बास ने सौरव की तरफ़ बढा़ दिया...!!

"आल राईट सर", बुझे स्वर में सौरव ने लिफ़ाफ़ा पकड़ते हुये कुर्सी छोडी़ और दबे क़दमों से अपने केबिन की ओर बढ़ा.जो रास्ता वह चंद लम्हों में पिछ्ले चौदह माह से पूरा कर लेता था आज वो फ़ासला तय करने में उसे बहुत देर लगी. अपनी कुर्सी पर बैठ बंद लिफ़ाफ़े को खोल कर उसने वह लेटर पढ़ने की कोशिश की, उसकी साँसे तेज़ हो गयी थी, उसकी निगाह लेटर को पढ़ने की कोशिश करती लेकिन गोल गोल घूमते शब्द उससे पढे़ ही नही जा रहे थे, उसने सामने दीवार पर अपनी निगाह दौडा़यी, वहाँ भी छोटे-छोटे शब्द परिक्रमा करते दिखाई दिये.

लैपटाप पर उसके बैंक एकाऊंट की विंडो खुली थी, मनी ट्राँसफ़र की कंफ़र्मेशन को सौरव ने कैंसिल कर दिया.



रचनाकाल: २४.०९.२००९