टाइगर श्राॅफ सितारा, आकाशगंगा का ध्रुवतारा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :02 अप्रैल 2018
टाइगर श्रॉफ की फिल्म 'बागी 2' ने पहले दिन ही 23 करोड़ रुपए की कमाई करके सांस लेने में कठिनाई महसूस कर रहे फिल्म उद्योग को प्राण-वायु प्रदान की है। इस फिल्म ने मसाला फिल्मों की बॉक्स ऑफिस ताकत का पुन: प्रमाण दिया है। सलमान खान जिस तख्त पर बैठे हैं, उस पर अपनी ताजपोशी का दावा दायर किया है टाइगर श्रॉफ ने। अब वे बॉक्स ऑफिस दरबार में तो पहुंच गए हैं परंतु सिंहासन अभी दूर है। सलमान खान की तरह ही टाइगर एक्शन नायक है परंतु वे अपने स्टन्ट में ताज़गी ला रहे हैं। नायक के चरित्र चित्रण में निस्वार्थ सेवा भाव दर्शक के साथ उसका भावानात्मक तादात्म्य बनाता है। फिल्म का नायक अपनी भूतपूर्व प्रेमिका की गुमशुदा बेटी की तलाश में अपने आपको झोंक देता है। हिंदी साहित्य में चंद्रधर शर्मा गुलेरी की 'उसने कहा था' का ही दूसरा स्वरूप है यह जज्बा। ज्ञातव्य है कि बिमल राय 'उसने कहा था' प्रेरित फिल्म बना चुके हैं। 'बागी' भूतपूर्व प्रेमिका को किए वादे की ही कहानी है। विवाह के सात फेरों में दिए गए वचन से अधिक भावनाप्रधान होते हैं प्रेमिका को दिए रक्षा के वचन। जीवन में पहला प्रेम अवचेतन में एक मजबूत गांठ की तरह गहरे तक पैठा होता है।
'बागी' दक्षिण भारत की सफल फिल्म से प्रेरित है और एक अमेरिकी फिल्म में भी विवाहित नायिका अपने पूर्व प्रेमी से निवेदन करती है कि वह उसकी अपहरण की गई बेटी को खोज निकाले। उस फिल्म में अपहरण करने वाला गिरोह वेश्यावृत्ति के लिए कन्याओं का अपहरण करता है। 'बागी' में यह कथा-पगडंडी नहीं ली गई है परंतु भावना वही है। कथाओं की आधार भूमि में अधिक परतें नहीं हैं परंतु अदायगी में ताज़गी का प्रयास हमेशा किया जा सकता है। टाइगर श्रॉफ ने अपनी पहली फिल्म की सफलता के बाद सुभाष घई को यह प्रस्ताव दिया था कि वह बिना पारिश्रमिक लिए उनके लिए एक फिल्म करना चाहता है, क्योंकि उन्होंने उनके पिता जैकी श्रॉफ को पहला मौका दिया था। यह बात अलग है कि सुभाष घई ने सधन्यवाद प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। रस्सी जलने पर भी एेंठन कायम रहती है।
ज्ञातव्य है कि जैकी श्रॉफ श्रेष्ठि वर्ग के रिहायशी इलाके तीन बत्ती के पास बसे गरीबों की बस्ती में रहते थे। हमारे तमाम महानगरों में गगनचुंबी संगमरमरी इमारतों के निकट ही गरीबों की बस्ती भी होती है, जहां से सेवकों का अमला उनकी खिदमत करता है। सेवकों के बिना अमीर आदमी एक दिन भी जी नहीं सकता। वे कितने निरीह प्राणी हैं। सारे सेवक हड़ताल पर चले जाएं तो अमीर आदमी के लिए वक्त रुक जाए। उसकी घड़ी में जितने पल होते हैं, उतने ही सेवकों की उसे अावश्यकता होती है। सेवक उसकी दुखती हुई नब्ज़ है। जैकी श्रॉफ ने प्रेमविवाह किया था और उनके पुत्र ने शक्ल अपनी मां आयशा से ली है और हिम्मत व हौसला अपने पिता से लिया है। उसके चेहरे पर मासूमियत है और बलिष्ट शरीर की नदी में मांसपेशियों की मछलियां तैरती रहती हैं। फिल्म नायक का जिस्म उसकी दुकान की तरह होता है और वह उसे चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए सारे जतन करता है। पृथ्वीराज कपूर भारतीय शैली की दंड-बैठक लगाते थे और धर्मेन्द्र भी उसी स्कूल के थे परंतु सलमान खान के सितारा बनते ही आधुनिक जिम में कलाकार कसरत करते हैं और आयात किया महंगा प्रोटीन पीते हैं। जिम में मांसपेशियां बनाने वाले व्यक्ति को प्रोटीन पेय और मिनरल्स लेने होते हैं, जिनकी कीमत प्रति माह पचास हजार से कम नहीं होती। जिमिंग जिस्म बनाने का महंगा तरीका है। आधुनिक युवा इसके नशे में गाफिल हैं। जिस्म मजबूत बनाने की भारतीय दंड-बैठक पद्धति में किसी उपकरण की आवश्यकता नहीं पड़ती। यह सस्ता, संुदर और टिकाऊ मार्ग है। आजकल सितारे बनने आए युवा लोग अभिनय सीखने का कोई प्रयास नहीं करते परंतु वे जिम जाते हैं, घुड़सवारी सीखते हैं और तैरने भी जाते हैं। फिल्म स्टूडियो कोई अखाड़ा नहीं है। संजीव कुमार जैसे श्रेष्ठ अभिनेता ने कभी कोई कसरत नहीं की और अपना कॅरिअर भी स्टन्ट फिल्म से प्रारंभ किया परंतु 'शोले' जैसी बहुसितारा फिल्म में भी उनका अभिनय सबसे अधिक प्रभावोत्पादक रहा। उनहोंने 'बीबी ओ बीबी' में दोहरी भूमिकाओं में हास्य को अभिनीत करने का नया मानदंड रचा। सुचित्रा सेन के लिए लिखी 'आंंधी' में भी संजीव कुमार अपनी जमीन नहीं छोड़ते।
बहरहाल, टाइगर श्रॉफ अपने समकालीन वरुण धवन, सिद्धार्थ मल्होत्रा इत्यादि से अधिक सफल सिद्ध हो रहे हैं। अत: हम यह अनुमान कर सकते हैं कि करण जौहर उनके लिए कोई प्रस्ताव लेकर अवश्य जाएंगे। सफलता की गंध सूंघते रहना अनेक फिल्मकारों का शगल है। टाइगर श्रॉफ अलग मिट्टी के बने हैं। टाइगर श्रॉफ में फिल्मकार साजिद नाडियाडवाला को विश्वास रहा है और साजिद नाडियाडवाला करण जौहर से जुदा किस्म के फिल्मकार हैं। करण जौहर मल्टीप्लैक्स दर्शक के लिए फिल्में बनाना पसंद करते हैं। वे तो अपनी पटकथा लिखने भी लंदन जाते हैं परंतु साजिद नाडियाडवाला एकल सिनेमा जाने वाले आम आदमी के लिए फिल्में बनाते हैं।
ज्ञातव्य है कि गोवा और गुजरात की सरकारें सिनेमाघरों की रक्षा के लिए टिकट बिक्री से 25 रुपए सर्विस टैक्स के रूप में सिनेमा मालिक को देने का फैसला कर चुकी है और अध्यादेश जारी हो रहा है। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सरकारों को भी दस रुपया सिनेमा के रखरखाव बाबत लेने के अावेदन दिए जा चुके हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमण ने भी ऐसे आदेश देने के पूर्व मंत्रिमंडल के अपने साथियों से परामर्श लिया है। सिनेमाघरों की रक्षा करना आवश्यक हैं, क्योंकि मनोरंजन भी आवश्यक है।