टाईम पास टीचर / प्रमोद यादव
रामलाल मिडिल स्कूल में पी.टी.आई.है सुबह-सुबह रोज विद्यार्थियों को एक-डेढ़ घंटे सुर-ताल से पी.टी. कराकर फ्री हो जाता है. उसका फ्री होना स्कूल के बाकी टीचर्स को खूब अखरता है. वे बेचारे छः-छः पीरियेड पढ़ाकर तनखा पाते हैं और पी.टी.आई. एक-डेढ़ घंटे ‘सावधान-विश्राम’ कर पा लेता है. बाक़ी टीचर्स काफी मेहनत-मशक्कत कर,रात-रात भर तैयारी कर बच्चों को पढ़ाते हैं. सिलेबस भी ऐसा कि स्टूडेंट्स से ज्यादा टीचर्स को पढ़ना पड़ता है और स्टूडेंट्स भी कमबख्त इतने शरीर कि ठीक से ना पढाओ तो प्रिसिपल तक जा धमकते है.. रामलाल भगवान को अक्सर धन्यवाद देता कि अच्छा हुआ वह पी.टी.आई. ही बना...पढ़ने-पढ़ाने का कोई झंझट ही नहीं. फिजिकल ट्रेनिंग के सिलेबस में तो आजादी के बाद से आज तक कुछ ख़ास बदलाव हुआ ही नहीं - वही ‘सावधान’ और वही ‘विश्राम’..दोनों हाथ बांये फेंको फिर उलटे दायें ..एक कदम आगे तो दो कदम पीछे. मजे की बात ये कि उनके पी.टी. के क्रिया-कलापों को ना तो रोज-रोज प्रिसिपल देख सकता है,ना ही अन्य टीचर्स. एक ही फिल्म को भला कोई बार-बार कैसे झेले? ‘शोले’ को अट्ठारह बार देख रामलाल खुद बोर हो गया था.
तो किस्सा ये है कि जब कभी कोई टीचर अनुपस्थित रहता,छुट्टी पर जाता या ट्रेनिंग में होता तो उनके खाली पीरियेड को भरने पी.टी.आई रामलाल को किसी भी स्टैण्डर्ड के क्लास में कभी भी भेज दिया जाता ताकि विद्यार्थी हो-हुल्लड़ न करे.और क्लास में अमन-चैन रहे.. स्कूल में सब उन्हें ‘टाईम-पास’ टीचर भी कहते. प्रिसिपल के आदेश के तहत उन्हें सब करना पड़ता. वह बिना किसी तकरार के किसी भी क्लास में बैठकर बच्चों का टाईम पास कर खुद का भी निपटा लेता.
एक दिन जब आठवीं क्लास के गणित टीचर तिवारीजी एकाएक अनुपस्थित हुए तो उनके पीरियेड का जोड़-तोड़ करने पी.टी.आई.रामलाल को भेजा गया. उनका तो गणित से कोई दूर-दूर का भी नाता नहीं था...‘प्लस-माइनस’ कर लेता, इतना ही काफी था... इस विषय में भला विद्यार्थियों को क्या ‘टीप’ देता? टाईम-पास करने उसने बच्चों से कहा कि जो छात्र सबसे ज्यादा कल्पना की ऊंची उड़ान भरेगा,उसे वह एक ‘पारकर’ पेन ईनाम में देगा.
छात्रों ने पूछा- ‘कैसी कल्पना - कैसी उड़ान सर?’
तब उसने हिंट दिया कि सामान्य जीवन के जो क्रिया-कलाप हैं-उससे अलग-थलग,कुछ हटकर असामान्य बातों की कल्पना करो- कल्पना करो कि हम आस-पास के ग्रहों में बिना वीसा-पासपोर्ट के आसानी से आ-जा सकें तो कैसा हो? कल्पना करो कि अगर घर की वस्तुएं भी हमारी तरह चलने-फिरने लगे तो क्या हो? आदि-आदि. सारे छात्र विषय और आशय को समझ गए. फिर चार-पांच वक्ताओं ( विद्यार्थियों ) ने बारी-बारी से अपनी-अपनी कल्पनाओं में रंग भरे.
पहले विद्यार्थी ने कल्पना की उड़ान भरते कहा- ‘सर, पूरे विश्व में आज ‘जाम’ (ट्रेफिक जाम) की स्थिति है.दिन-ब-दिन यह और बिगडती जा रही...काश हम हवा में उड़कर आ-जा पाते..’
पी.टी.आई ने टोका- ‘ये कल्पना तो कब से साकार है बरखुरदार ..हम उड़ तो रहे है-विमान से, हेलीकाप्टर से,अन्तरिक्सयान से..’
‘नहीं सर..मेरा मतलब ‘इंडीव्यूजुअल ‘से था..हम यूं ही जब चाहे हवा में छलांग लगा दौड़ पाते, चल पाते, उड़ पाते..’
पी.टी.आई. ने पुनः टोका- ‘पहाड़ से छलांग मारते लोग पैराग्लाईडिंग तो कर ही रहें हैं..’
‘नहीं सर..मेरा आशय बिना किसी अतिरिक्त अटेचमेंट के उड़ने से था-जैसे चिड़िया उडती है..फुर्र से कभी भी उड़ जाती है और बिना किसी रनवे के कहीं भी उतर भी जाती है..’
‘फिर तो भैय्या ..जैसे विमानों के लिए ए.टी.सी. होता है वैसे ही कुछ व्यवस्था करनी होगी..हवा में ‘फोर-लेन’, ‘सिक्स लेन’बनाने होंगे..जिनके पास हवा में उड़ने का लाइसेंस होगा,वे ही हवा में उड़ेंगे और बाकी बी.पी.एल.टाईप के लोग नीचे अपनी सुविधानुसार चलेंगे..आधे ऊपर और आधे नीचे...नीचे वालों पर हमेशा मौत का साया मंडराता रहेगा..क्या मालुम कब कोई ऊपर से मौत बन सर पर टपक जाए..ऊपर एक्सीडेंट होगा तो ऊपर कोई मरे न मरे नीचे वाले का मरना तो तय..तब अखबारों में कुछ इस तरह के न्यूज पढने मिलेंगे- “ कल रात आकाशमार्ग क्रमांक-तीन में दो हडताली गुटों के बीच जबरदस्त संघर्ष हुआ जिसमें बत्तीस हड़ताली कलेक्टोरेट पहुँचने की जगह ‘देवलोक’ पहुँच गए. बाकी जो बचे ,उनमें से चालीस हडताली नीचे सदर बाजार इलाके में गिरकर काल-कलवित हो गए.. कुछ भाग्यशाली जो इस हादसे में बचे वे सरकारी हास्पीटल में आखिरी सांस गिन रहे..मरने वालों में दोनों पक्ष के हडताली शामिल. इस हादसे में बाजार के बारह दुकान चपेट में आने से तेरह राहगीर ,चौदह गाय और पंद्रह आवारा कुत्ते भी मारे गए..’
सब छात्र ‘हो-हो’ कर हंसने लगे. पी.टी.आई. ने उस विद्यार्थी की पीठ ठोंकी और फिर दूसरे को आमंत्रित किया. दूसरे ने उड़ान भरते कहा- ‘सर,क्या ही बढ़िया होता,अगर पशु-पक्छी भी हमारी तरह बोलते..’
पी.टी.आई.ने कहा - ‘बोलते तो हैं यार..कुत्ता भौं –भौं करता है,गाय रंभाती है, गधा रेंकता है,बकरी में-में करती है,कौआ कांव-कांव करता है,बिल्ली मिमियाती है,सांप फुंकारता है..’
‘नहीं सर..मेरा तात्पर्य है कि हम जिस तरह आपस में बोलते-समझते हैं, वैसी ही समझ और बोलने की क्षमता उनमें होती.. हम आपसी संवाद कर पाते तो क्या बढ़िया होता..’
पी.टी.आई बोला -’बढ़िया नहीं मेरे लाल..बड़ी दुर्गति होती..केवल मानव जाति के शोर-शराबे से ही इस कदर ध्वनि प्रदूषण है..इन्हें शामिल कर क्यों सृष्टि को बर्बाद करना चाहते हो?’
‘अरे सर..इसमें बर्बादी वाली क्या बात है..इसके फायदे भी तो देखिये-आज हम पालतू जानवरों के साथ जाने-अनजाने कितना जुल्म करते हैं..उनसे हाड –तोड़ काम लेते हैं पर बदले में क्या देते हैं? मुट्ठी भर दाना-पानी ताकि वो जिन्दा रहे और हमारी जरूरतों को पूरी करता रहे..इनमें जुबान होगी तो हक़ के साथ बोल तो सकेंगे कि भैया..कम से कम पेट भर खाना तो दिया करो.’
‘हाँ..और दूसरी बातें तुम नहीं सोच रहे हो..कल को ये भी मजदूर यूनियनों की तरह कई यूनियन बना लेंगे..बकरे कटने से मना कर देंगे..मुर्गे सुबह-सुबह बांग नहीं देंगे मच्छर पूरे घर के दरों-दीवार पर पोस्टर चस्पा कर देंगे- “ जीव हत्या बंद करो “ बैल कभी भी हल जोतते-जोतते अचानक बोनस-एरियर्स पर अड़ जायेंगे..गधे मानव अधिकार आयोग की तरह कोई आयोग गठन कर शारीरिक शोषण के खिलाफ जंग छेड़ देंगे..घोड़ियाँ वर को अपनी पीठ पर बिठाने के पूर्व अपने लिए दो-चार वर मांगेगी..काबुली चना..ताज़ी घास आदि-अदि..’
पी.टी.आई.की बाते पूरी भी नहीं हुई कि बच्चे ताली पीटने लगे.तब तीसरे वक्ता को अपनी बात रखने आमंत्रित किया. तीसरे ने कहा- ‘सर..पशु-पक्छी न सही..अगर पेड़-पौधों के साथ संवाद कायम हो जाए तो कितना अच्छा होगा..’
‘क्या अच्छा होगा बताओ ? ‘उसने पूछा.
‘सर..कोई बच्चा लापता हो जाए तो हमें पुलिस के पास नहीं जाना होगा..आसपास खड़े बड़े-बड़े पेड़ों से पूछ लेंगे- “पीपल भैया..टिंकू को कहीं आते-जाते देखा क्या?” तब वह मिनटों में ही अपनी लम्बी-लम्बी जड़ों से आसपास के पेड़ों को तरंगे भेज, पता कर बता देगा कि टिंकू तालाब के किनारे वाले बबूल के नीचे बैठा रो रहा है..यह भी बता देगा कि उसके क्रांतिकारी क्रंदन से बबूल लाल-पीला भी हो रहा है..जल्दी जाकर उसे कब्जे में लें..’
‘और कुछ?’
‘सर..घर की चौकीदारी के लिए हमें कुत्ते पालने की जरुरत नहीं होगी.गार्डन में दो-चार लम्बे-लम्बे पेड़- नारियल,अशोका,पाम जैसा लगा देंगे..पूरी रात वे चोर-उचक्कों पर नजर रखेंगे..और दूसरी बात ये कि आज जंगल के जंगल तेजी से कट रहें हैं..लकड़ी चोरों का गिरोह रातों-रात कीमती लकड़ियाँ काट ले जाते हैं..इनमें जुबान होगी तो कम से कम चिल्ला तो सकेंगे- “हेल्प-हेल्प”..’
पी.टी.आई.ने बात काटते कहा- ‘काटने वाले तो जुबान पर पट्टी बाँध काट ले जायेंगे..दूसरे पहलू पर भी सोचो..हम आसानी से आम, सेब, संतरा नहीं तोड़ पायेंगे..वे टूटने से इंकार करेंगे ..यही कहेंगे-“ टपके तभी खाना “..टपकने के इंतज़ार में हमीं टपक जायेंगे..गुलाब, सेवंती, मोंगरा तोड़ना भी मुश्किल काम हो जाएगा तब पत्नी या प्रेयसी के जूडे में क्या टाँकेंगें? बाबाजी का ठुल्लू?’
सारे विद्यार्थी ठहाका मार हंसने लगे.
अगले वक्ता को आमंत्रित करते पी.टी.आई. ने कहा- ‘पेड़-पौधे, पशु-पक्छी को छोड़ कोई नई उड़ान भरो यार..’
तो उस वक्ता ने बोलना शुरू किया-’सर..क्या ही बढ़िया होता कि हम सब भी “ एलियन “ जैसे होते..सब के सब एक जैसे दिखते..जैसे फिल्म “ कोई मिल गया ” में “जादू” दिखता था..तब ना रंगभेद का कोई झंझट होता ना खूबसूरत-बदसूरत दिखने का रोना..सब बिना किसी टेंशन के मेल-जोल के साथ ठाठ से रहते..’
‘नहीं बेटे..’ पी.टी.आई.ने समझाया- ‘ऐसा नहीं है..बचपन में मैं भी तुम्हारी तरह सोचता था..तब सारे पगड़ी वाले सरदार मुझे एक-से लगते..होश सम्हाला तब जाना कि देविंदर और तेजिंदर में अक्षय और अजय (देवगन) जितना फर्क है... तुम एलियन बनोगे तब यह फर्क समझ आएगा ..ठीक है..बैठ जाओ..अब पांच मिनट ही बचे हैं पीरियेड ख़त्म होने में...कोई और उड़ना चाहे तो जल्दी करे..’
एक विद्यार्थी उठा और कहने लगा- ‘सर..मेरी कल्पना कुछ हटकर है..क्या ही अच्छा होता कि औरतों की तरह मर्द भी बच्चे जनते ..एक बार माँ पैदा करे तो नेक्स्ट टर्न बाप....बारी-बारी दोनों “ प्रिगनेंट “ होते ..’
‘गुड..वेरी गुड....तुम्हारी कल्पना सचमुच धांसू है....अब इसके फायदे-नुकसान पर भी प्रकाश डालो..’
‘सर..फायदा ये कि नारी-शक्ति को थोड़ी राहत मिलेगी.. बच्चा जनने में ही बेचारी की सारी उर्जा चूक जाती है..थोडा तो आराम मिलेगा..और फिर हर बार वही क्यों पैदा करे? मर्द पैदा करे तो वह भी जाने “ पीर पराई “...जाने कि नौ महीने चारदीवारी में कैसे कटते हैं..जाने कि “ डिलवरी “ कितना “ डेंजरस इवेंट “ होता है..आज जब सब काम स्त्री-पुरुष कंधे से कन्धा मिला कर रहे हैं तो डिलवरी क्यों नहीं?. कितना मजा आएगा जब कोई पूछेगा- “ आपके पापा आजकल नहीं दिखते ..दौरे पर हैं क्या?”
तब बिटिया जवाब देगी- “ नहीं अंकल....पापाजी “पेट’ से हैं..आठवां चल रहा है न..”
स्कूलों में भी बर्थ सर्टिफिकेट में “एम” या “एफ”.लिखा होगा जैसे फिल्मों के आरम्भ में दिखाया जाता है कि फिल्म “ए” सर्टिफिकेट या “यू” वाला है..बच्चों के सर्टिफिकेट देखते ही पता चल जाएगा कि माँ ने जना या बाप ने..माँ वाले में ऊपर “एफ”(फीमेल).लिखा होगा और बाप वाले में “एम” (मेल)..’
तभी स्कूल-बेल बजी और पीरियेड ख़त्म हो गया...आखिरी वक्ता अपनी उड़ान पूरी न कर पाया फिर भी पी.टी.आई.रामलाल ने उसे ईनाम में पारकर पेन देकर “धांसू उड़ान “ के लिए सम्मानित किया.
रामलाल घर लौटा तो बार-बार उस छात्र की बातें दिमाग में कौंधती रही.. उसकी पत्नी दूसरी बार अभी पेट से है.. अगर कहीं ये उसका ‘टर्न’ होता.. पत्नी की जगह वह पेट से होता तो...? सोचकर ही उसे उबकाई आने लगी.. वह वाश- बेसिन की ओर लपका ..दो-तीन उल्टियाँ हो गई..पेट भारी लगने लगा..डर गया कि कहीं सचमुच तो....वह पूरी रात सो न सका.. सोचता रहा...कल्पना-मात्र से इतना डर तो भगवान जाने सचमुच ऐसा हो तो क्या हो?