टी वी के किसान / चित्तरंजन गोप 'लुकाठी'
हल-बैल खोलकर, बरामदे की चारपाई पर बैठा भूखला सुस्ता रहा था। कीचड़ से लथपथ... पसीने से नहाया हुआ... कृशकाय... कृष्णवर्ण... कांतिहीन चेहरा। उसकी बेटी ने आवाज दी, "बापू, अंदर बैठिए न।" वह उठकर टीवी के सामने जाकर बैठा। तभी टीवी पर एक विज्ञापन आया। एक किसान अपनी पत्नी के साथ खेत में काम कर रहा था और कृषकों की एक योजना के बारे में बता रहा था। उनके दमकते चेहरे और खूबसूरत पहनावे को देखकर भूखला मुस्कुरा उठा। उसकी बेटी ने पूछा, "बापू, आप मुस्कुरा क्यों रहे हैं?"
"टीवी के किसानों को देख कर।" कहते हुए भूखला हंस पड़ा।
"क्यों, ऐसी क्या बात है?" बेटी ने पूछा।
"बेटी, ऐसी कौन-सी योजना है जो किसानों के चेहरे पर इस तरह की...?"
तभी उसकी पत्नी ने एक गिलास पानी और एक शीशी में थोड़ा तेल लाकर दिया। वह गटगटाकर पानी पी गया। बेटी बोली—बापू, वे किसान नहीं है। फिल्म के हीरो-हीरोइन हैं। उनका नाम...
भूखला हाथ में तेल की शीशी लिए उठ चुका था। वह तालाब की ओर चल दिया, नहाने के लिए।