टुकड़खोर / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
अभय खा–पीकर कमर सीधी करने के लिए लेटा ही था कि घर के कोने पर एक कुत्ता ज़ोर–ज़ोर से भौंकने लगा। उसने खिड़की से उस पर कंकड़ दे मारा। चोट खाकर कूँ–कूँ करता हुआ कुत्ता वहाँ से भाग खड़ा हुआ।
कुछ क्षण बाद वह चादर ओढ़कर लेटा ही था कि कुत्ते की आवाज़ और तेज हो गई. लगा, जैसे वह उसके सिर पर ही भौंक रहा है। वह भुनभुनाया, 'दफ्तर में साहब नहीं चैन लेने देते। रात के नौ बजे जाकर पिण्ड छोड़ा, वह भी सुबह जल्दी आने की मीठी हिदायत के साथ। आज दिन–भर फाइलों में आँखें टाँकनी पड़ीं। उल्टे–सीधे काम करें साहब, सब शिकायतों के जवाब तैयार करे वह। टरकाते भी नहीं बनता। न जाने साहब का माथा कब गरम हो जाए? कब उसे रूखी–सूखी सीट पर पटक दे? इस दफ्तर में क्लर्की करना कुत्ता घसीटी से भी बदतर है। हरदम जी–जी कहते हुए मुँह सूख जाता है। मेडिकल क्लेम में अड़ंगे लगने का खटका न होता तो मजा चखा देता खूसट को।'
भौंकने की आवाज़ रात के गहराते सन्नाटे को चाकू की तरह चीरने लगी। वह झुंझलाकर उठा–"हरामजादे, तेरी खबर लेनी पड़ेगी।"
डसने दरवाज़ा खोला। दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनकर कुत्ता भौंकते–भौंकते बेहाल हो उठा। वह डण्डा उइाने लगा तो पत्नी ने टोका, "आज क्या हो गया है आपको? अगर यह कुत्ता रात–भर भौंकता रहा तो आप रात–भर डण्डा लेकर इसके पीछे दौड़ते रहेंगे क्या?"
"बिना डण्डा खाए यह चुप होने वाला नहीं।" वह झल्लाया।
"आप रुकिए." कहकर पत्नी उठी और कटोरदान से एक रोटी निकाल लाई. अतू–अतू की आवाज़ लगाकर पत्नी ने रोटी गली में फेंक दी।
कुत्ते ने लपककर रोटी उठाई. एक बार पीछे मुड़कर देखा और तीर की तरह दूसरी गली में तेजी से मुड़ गया।