टेम्स की सरगम / भाग 14 / संतोष श्रीवास्तव

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

“वह आँख मेरी ममा के पास थी। उन्होंने कृष्ण के साक्षात दर्शन किए हैं।” रागिनी ने भावविभोर होकर कहा।

“हाँ, मुझे दीनाजी ने उनके बारे में सब कुछ बताया है। वे महान थीं... उन्होंने कृष्ण को प्रेम करके हमारी सदियों पुरानी “वसुधैव कुटुंबकम्' की परंपरा को सार्थक कर दिया।” और उमाशंकर ने आँखें बंद कर डायना को नमस्कर किया।

“क्या आप मुझे वेदांत भक्तों से मिलवायेंगे।”

“हाँ... हाँ... यह तो बहुत आसान है। यहाँ कृष्णजी के मंदिर में वे आसानी से हमें मिल जाएँगे। उनका सत्संग तुम्हारी थीसिस के बहुत काम आएगा।”

हाँ, मुझे कृष्ण पर ही अपनी थीसिस लिखनी है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में नाम लिखना है। पहले पोस्टग्रेजुएट फिर थीसिस वर्क शुरू। रागिनी ने सोचा।

कमरे की खिड़कियों के पल्ले झूल-झूलकर तूफान का संकेत दे रहे थे। उमाशंकर को बीबीसी जाना था। वहाँ उनका प्रोग्राम था। लेकिन यह बर्फानी तूफान... थोड़ी ही देर में बर्फ से सड़कों के किनारे अँटने लगे।

“मुझे चलना चाहिए वरना यह तूफान।” उमाशंकर ने व्याकुलता से कहा।

“इस तूफान में आपका जाना ठीक नहीं। बीबीसी वाले भी समझते हैं।”

घंटे भर बर्फ गिरती रही। थमने के बाद उमाशंकर की उतावली देख दीना ने कार से उन्हें जाने की सलाह दी। बाहर थोड़ी-थोड़ी बर्फ पिघलती जाती और मिट्टी के संग मिलकर कीचड़ बनती जाती। पोर्च की सीढ़ियाँ पर लाल पत्तियाँ बर्फ के नीचे दबी थरथरा रही थीं।

यूँ तो रागिनी ने ऑक्सफोर्ड में पोस्टग्रेजुएशन के लिए दाखिला ले लिया था और बाकायदा पढ़ाई शुरू कर दी पर नए माहौल में वह अपने को खपा नहीं पा रही थी। उमाशंकर ने भी आना बंद कर दिया था क्योंकि संस्कृत बहुत जल्दी और बहुत अच्छी तरह सीख चुकी थी रागिनी। उमांशकर को ताज्जुब था रागिनी की पकड़ पर। ऐसे विद्यार्थी विरले ही मिलते हैं। संस्कृत सीखते हुए ही उसने उमाशंकर के दिए तमाम ग्रंथों को पढ़ लिया था जिसमें सबसे अधिक प्रभावित किया था कालिदास ने। यूँ तो संस्कृत साहित्य में श्रृंगार रस ही प्रधान रहा है और सभी कवियों और लेखकों ने इसी रस पर आधारित रचनाएँ लिखी हैं पर कालिदास ने तो कमाल कर दिया। खासकर मेघदूत और अभिज्ञान शाकुंतलम् ऐसी रचनाएँ हैं जिनका कोई मुकाबला नहीं। मेघदूत में यक्ष-यक्षिणी के दिव्य प्रेम का एकमात्र गवाह वह बादल जो हिमालय के शिखरों पर ठिठका खड़ा बड़ी तल्लीनता से यक्ष का संदेश सुनता था। अद्भुत है यह रचना। रागिनी कई बार इसे पढ़कर भी अघाई नहीं है। अपनी पढ़ाई के अंतिम दिन वह खुद उमाशंकर को छोड़ने उसके घर गई। उमाशंकर को बीबीसी रेडियो स्टेशन जाने का नशा-सा था। वहाँ हिंदी विभाग में उसकी काफी जान पहचान बढ़ गई थी। नजदीक ही एक कमरा किराए पर लेकर वह रहता था। अक्सर बीबीसी के कैंटीन में खा पी लेता या फिर घर में खिचड़ी, आलू का भरता पका लेता।

“आज मेरे घर में खिचड़ी भरते की दावत हो जाए।”

“अरे नहीं... आप हाथ से पकाते हैं... मेरा मतलब है खुद पकाते हैं। दावत तो मुझे देनी चाहिए गुरु दक्षिणा में। मेरी संस्कृत की पढ़ाई पूरी हुई... आपने मुझे संस्कृत विशारद बना दिया।”

“तुम विदुषी हो रागिनी... खूब तरक्की करोगी। एक बार भारत जरूर जाना। मैं तो अब शायद ही जा पाऊँ।”

“क्यों आप क्यों नहीं जाना चाहते वहाँ?”

“वहाँ कौन है मेरा? अनाथ के लिए क्या देस क्या परदेस? अब यही मेरा देस है... यहीं अंत होना है जिंदगी का।”

मैं भी तो अनाथ हूँ कहना चाहा रागिनी ने पर नहीं कह पाई।

उमाशंकर के दुख को वह अपने दुख से दुगना नहीं करना चाहती थी। भारी मन से उसने उमाशंकर से विदा ली-”पढ़ाई समाप्त का मतलब यह नहीं कि आप अपनी इस शिष्या से मिलना ही छोड़ दें।”

उमाशंकर हलके से हँस दिया। चलती कार की खिड़की से ओझल होने तक हाथ हिलाती रही रागिनी।

संस्कृत की पढ़ाई बंद हो जाने के बाद से उसकी अधिकतर शामें सैम के साथ गुजरने लगीं। पुराने दोस्तों में बस सैम ही था। लंदन की सड़कों, पार्कों, दर्शनीय जगहों पर दोनों सैर सपाटा करते रहते। एक कप कॉफी के बहाने रेस्तरां में देर तक बैठे रहते। धीरे-धीरे यह नजदीकी, यह लगाव खुद-बखुद एक समझौते में तब्दील हो गया। रागिनी ने सैम की विज्ञापन फिल्मों में बतौर मॉडल काम करना स्वीकार कर लिया। यही तो सैम चाहता था। उसकी विज्ञापन फिल्मों के लिए शाहरा का लाजवाब हुस्न कामयाबी की खुलती सीढ़ियाँ था। दीना ने सुना तो सिर पीट लिया। एक प्रतिष्ठित घराने की इकलौती वारिस क्या मॉडलिंग करेगी? इतने सालों से खुद को भूलकर जो वह रागिनी को रच रही है, एक बेमिसाल व्यक्तित्व में ढाल रही है, उसका ये अंजाम? उसने फौरन मुनमुन को फोन लगाया-”दीदी... मेरी परवरिश ठीक नहीं थी। रागिनी तो हाथ से निकल गई।”

मुनमुन का स्वर काँपा-”अब?”

“कुछ समझ में नहीं आता। वह उस अमेरिकन लड़के के प्रेमजाल में फँस चुकी है। उसे सही गलत की समझ नहीं है। जब उसकी फिल्में मार्केट में आएँगी तो हमारी तो नाक कट जाएगी।”

“हमें धैर्य से काम लेना होगा दीना... यह उमर जोर-जबरदस्ती की नहीं है। वरना एक बार उठा गलत कदम जिंदगी भर का अभिशाप बन जाएगा। मैं सत्यजित से सलाह करती हूँ... सोचती हूँ कुछ।”

सत्यजित बिना किसी मानवीय रिश्ते के वैवाहिक बंधन के सब कुछ था मुनमुन का। उसके सारे रिश्ते सत्यजित से शुरू होते और सत्यजित पर ही जाकर समाप्त होते। वह उसका आदि और अंत था। दीना बहुत प्रभावित थी दोनों से।

बसंत में लंदन गमक रहा था। ओस्टरली के हर पार्क, हर बगीचे में फूल ही फूल थे। इन फूलों में सैम के साथ डूब जाना चाहती थी रागिनी। उसे सैम की हर हरकत लाजवाब लगती। शूटिंग पर वह वक्त से पहले पहुँच जाती। सैम सचमुच मेहनती था। फिल्मांकन के पहले सिचुएशन तैयार करके उसे बेहतरीन और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने की कोशिश करता था। उसे शूटिंग की तकनीक से लेकर कलाकारों के मूड, सोच, प्रयास, लगन और कोशिश में कोई कमी नहीं थी। पैकअप के बाद का पूरा समय वह रागिनी को देता। जब रागिनी पर फिल्माई पहली विज्ञापन फिल्म बनकर तैयार हुई, सैम बहुत खुश था। उसने सभी कलाकारों को विदा कर वह शाम रागिनी के साथ सेलिब्रेट की। शैम्पेन की बोतल खुली और उसने रागिनी को आलिंगन में भरते हुए उसके होठ चूम लिए-”इस कामयाबी का पूरा श्रेय तुम्हें जाता है मेरी रोज... जानती हो मेरे मन में क्या है। पूरा आसमान बाहों में भर लेना चाहता है यह सैमुअल द ग्रेट... सैमुअल हॉलिवुड में व्यावसायिक और कलात्मक फिल्में बनाने का इच्छुक है। क्या मेरा साथ दोगी मेरी जान?”

रागिनी ने सैम के सीने में मुँह छुपा लिया-”रागिनी तुम्हारी है डार्लिंग, तुम जो चाहे करा लो उससे।”

रागिनी प्रेम के सागर में डूबना चाहती थी। सैम के साथ मझधार का रुख मोडना चाहती थी... धरती की बनावट पर पानी-सा बहना उसे पसंद न था। वह अपने हिसाब से धारा को मोड़ना चाहती थी और सैम था कि... .

“रागिनी नहीं रोज... मेरी रोज... तुम्हारी संगत में मैं गुलाबों के साए में खो गया हूँ। रोज... हिचकॉक, फ्रैंक कोपरा, विलियम वाइलर, बिली वाइलर जैसे फिल्मकार इसी धरती पर तो हुए हैं न अलग हटकर तो नहीं... तो फिर मैं भी उन जैसा क्यों नहीं हो सकता।”

महत्वाकांक्षा की चिंगारी और इश्क के शोले एक साथ भड़के... रागिनी की आँखों में नशीला सागर ठाठें मार रहा था। सैम उसे भी दो पैग पिला चुका था और वह अपने आपे में नहीं रही थी। सैम ने उसकी आँखों पर अपने होठ फिराए, पलकें अपने आप मुँद गईं रागिनी की और उसकी पोशाक के बंधन खुलते गए। अनछुआ, गदराया, नाजुक जिस्म सैम के जोश उत्तेजना की आँच से धीरे-धीरे पिघलने लगा। शाम के विदा होते कपाटों पर ठिठुरती रात धीरे-धीरे दस्तक दे रही थी और उस ठिठुरन में, ठंडे एकाकी कमरे में दोनों ने एक-दूसरे के सुलगते जिस्म तापे। घंटों बाद जब नशा उतरा तो सैम का फोन घनघना उठा-”हलो, सैमुअल... क्या शूटिंग खतम नहीं हुई? रागिनी कहाँ है?”

सैम ने फोन रागिनी की ओर बढ़ाया। न जाने क्यों रागिनी काँप उठी। अपनी ममा समान दीना का वह क्या जवाब दे? जिसके हर सुख-दुख में दीना साए की तरह उसके साथ थी... जिसकी हर मुस्कान पर दीना सौ-सौ जान से निछावर होती है और एक बूँद आँसू पर खून के आँसू रोती है उस दीना से वह कैसे कहे कि उससे क्या अनर्थ हुआ है?

“आयम वेरी सॉरी आंटी... मैं बस निकल ही रही हूँ।” रागिनी ने कपड़े पहने। पूरा बदन मीठी चुभन से भरा था, आँखें मुँदी जा रही थीं। उसी नीम मदहोश हालत में सैम ने रागिनी को डायना विला लाकर छोड़ा। दीना दरवाजे पर ही सिगरेट फूँकती खड़ी थी। यह लत उसे अभी-अभी लगी थी जब से उसे सैम और रागिनी के संबंधों का पता चला था। रागिनी उससे आँख नहीं मिला पाई। सैम ने बात सँभाली-”सॉरी आंटी... आज काम ज्यादा था इसीलिए।”

दीना ने कुछ जवाब नहीं दिया। प्यार दीना ने भी किया था अपने जॉर्ज से पर इस तरह नहीं। कितने दिन टिकेगा यह बरसाती नदी-सा प्यार जो आज मर्यादा की चट्टाने तोड़ बहा जा रहा है, भूल गया है अपने किनारे।

उसकी खामोशी रागिनी के दिल पर हथौड़े-सी चोट करती रही। वह सीधी अपने कमरे में गई और बिना कपड़े बदले कंबल में घुस गई। रात के किसी वक्त जब रागिनी की नींद खुली तो उसने देखा रूम हीटर ऑन था। न जाने किस वक्त दीना ने आकर हीटर ऑन किया होगा। दीना के कमरे की बत्ती भी जल रही थी। शर्म से सिर झुक गया रागिनी का।

कई हफ्ते गुजर गए। क्रिसमस के दस दिन बचे थे। रागिनी इस बार अकेली ही क्रिसमस की खरीदारी के लिए निकली थी। सीढ़ियों पर गिर जाने से दीना के घुटनों में चोट लगी थी और जॉर्ज मेनचेस्टर गया था। कार में अकेली बैठी रागिनी देख रही थी बर्फ की सफेद चादर में लिपटी सड़कों को जिनके किनारे खड़े पेड़-काले रंग के दिखाई दे रहे थे। सड़क की धुँधलाई रोशनी में उनके बड़े-बड़े साए भूत से लग रहे थे। अंधेरे से कहवाघरों में अलबत्ता चहल-पहल थी। पेड़ों के पीछे मकानों से छनते हुए रोशनी के धब्बे चारों ओर फैले थे। मकानों में शोर था और फिजाओं में क्रिसमस के गीत।

रागिनी और सैम के पसंदीदा रेस्तरां के सामने रागिनी ने आदतन कार रुकवाई। दरवाजे पर ही सैम था जबकि दोनों में यहाँ मिलने की कोई बात तय नहीं थी-”इसे कहते हैं रूह की रूह को पुकार। हमारा प्यार अंतरात्मा की आवाज है।”

सैम ने रागिनी की कमर में बाहें डाल दीं। वेट्रेस ने आँखों ही आँखों में दूसरी वेट्रेस को अश्लील इशारा किया, दोनों मजे लेकर मुस्कुराई... अजब इत्तफाक... उनकी पसंदीदा कोने वाली मेज भी खाली थी... हॉल के अंतिम छोर पर वही इटैलियन चित्रकार बैठा था जो बैठे हुए लोगों के स्कैच इस उम्मीद से बनाता था कि कोई हुनर पसंद उसे खरीद लेगा और उसके दो वक्त के भोजन और शराब का इंतजाम हो जाएगा। सैम ने जेब से सेब की कलियाँ निकालकर रागिनी की हथेलियों में भर दीं। मीठी गमक रागिनी की साँस में समा गई। वह एकटक उस चित्रकार को देख रही थी। शायद वह उसी का स्केच बना रहा था। अगर यह सच है तो वह उस स्केच को जरूर खरीदेगी और उससे कहेगी कि यह उसकी ओर से बतौर क्रिसमस के तोहफे के रूप में वह ले रही है ओर उसकी जेब वह कई पौंड से भर देगी। रागिनी ने सेब की कलियाँ सूँघी और आँखें मूंद लीं।

सैम उसके कलाई में पहने सोने के कड़े से खेल रहा था।

“यह कड़ा ममा का है... यह उन्होंने कलकत्ते के सुनार से बनवाया था, बंगाली कड़ा।”

“तुम इंडिया को बहुत याद करती हो... वह हमारा गुलाम था... हम उससे सुपीरियर हैं। हमें गुलामों की बातें नहीं सोचनी चाहिए।” सैम ने घमंड में भर कर कहा।

रागिनी तड़प उठी। उसे सैम की यही सोच बहुत बुरी लगती है। वह मानती है कि युद्ध में हार-जीत के अपने कारण होते हैं। न कोई किसी से सुपीरियर होता है, न कोई गुलाम। यह हमारी सोच का दिवालियापन सिद्ध करता है। वह चुपचाप कॉफी पीती रही... हर गलत बात पर आज की युवा पीढ़ी की तरह भड़क उठना रागिनी के स्वभाव में न था। उसकी खामोशी उसका सबसे बड़ा हथियार था। सैम क्रिसमस की प्लेंनिंग करता रहा। किसको क्या उपहार देना है, कितने ग्रीटिंग कार्ड खरीदना है। इस बार वह रागिनी को सरप्राइज देने वाला है। वह दीना आँटी और जॉर्ज अंकल को भी सरप्राइज देगा... ओह, लगातार बोलते हुए थकता नहीं सैम?

कॉफी खत्म कर जब दोनों चलने के लिए खड़े हुए तब चित्रकार सिगरेट का आखिरी कश भर रहा था। उसने सिगरेट राखदानी में दबाई और पेंसिल सँभाली, रागिनी उसके नजदीक गई पर उसके पेपर कोरे थे। आज उसने कोई स्केच नहीं बनाया था। रागिनी का मन बुझ गया।

वक्त धीरे-धीरे अतीत गढ़ता, उस पर अपने निशान छोड़ता सरकता गया। सैम और रागिनी एक-दूसरे की जरूरत बन गए, आदत बन गए। प्रेम तो रागिनी को विरासत में मिला था अपनी ममा से... लेकिन सैम से प्रेम की दीवानगी उसे दीमक की तरह चाटने लगी। सैम विज्ञापन जगत में अपने पैर दृढ़ता से जमाता गया। फिल्म बाजार में उसकी मांग बढ़ती गई। रागिनी ने जिन भारतीय काव्यग्रंथों से प्रेम की गहराइयों को नापा था अब उसके पन्ने पलटने तक का समय उसे नहीं मिलता। अब कीट्स की पंक्ति “एंड नो बडर्स सिंग” चरितार्थ होने लगी थी। न चिड़ियों की चहक सुनने का वक्त था, न आसमान की विशालता में खुद को डुबा लेने का। अब तो वह थी और सैम था। सैम के शूट में नीली दीवारों वाला कमरा, मद्धिम रोशनियों के भँवर में उलझा किसी परीलोक-सा लगता, जिसमें वह खुद एक परी। शूटिंग से निपटकर वह सैम की बाहों में खो जाती। सैम ने अपनी फिल्मों में बतौर मॉडल उसे अर्धनग्न प्रस्तुत किया। उसके संगमरमरी बदन की इस जादुई प्रस्तुति से दीवाना हो गया लंदन... बल्कि पूरा इंग्लैंड और अपनी धाक जमाने अमेरिका के विज्ञापन जगत और हॉलीवुड में प्रवेश के इच्छुक सैम ने अमेरिका में भी उसे चर्चित कर दिया। दीना कसमसाकर कर रह गई, जॉर्ज तड़प उठा। कहाँ कसर रह गई उनकी परवरिश में? उन्होंने तो बेटी की तरह पाला था रागिनी को। चूक आखिर हुई कहाँ? अब वे मुनमुन को क्या मुँह दिखाएँगे?

रविवार की दोपहर उन्होंने सैमुअल को घर बुलाया। रागिनी और सैमुअल को सामने बिठाकर अपने कदम वापिस ले लेने का आग्रह किया। जॉर्ज ने बहुत नरमी से कहा-”तुम जानते हो सैम रागिनी एक प्रतिष्ठित व्यापारी घराने की अकेली वारिस है जिसके पिता अंग्रेजी हुकूमत के हिंदुस्तान में एक उच्च पदाधिकारी थे और जिसकी माँ एक महान गायिका थीं... यह घराना कला के क्षेत्र से जुड़ा है।”

“यह भी तो कला है अंकल... आर्ट... क्या आप इसे आर्ट नहीं मानते?”

“तुम जो कर रहे हो वह आर्ट है, पर रागिनी जो कर रही है वह आर्ट नहीं है, वह अंग प्रदर्शन है, बाजारू है।”

“जमाना तेजी से बदल रहा है अंकल... मॉडलिंग अब कला मानी जाने लगी है।” सैमुअल का तर्क था पर वह जानता था यह तर्क नहीं बल्कि अपनी दयनीय हालत का एक ढका-मुंदा आग्रह था कि वे समझ लें कि यह कला है और यह बात न ताड़ें कि अच्छी और प्रतिष्ठित मॉडलों की मांग इतनी अधिक है कि उसे देने की सैम की औकात नहीं, पर जॉर्ज और दीना कमर कसे बैठे थे।

“तुम क्या समझते हो सैम कि हमें कला की जानकारी नहीं? अंग प्रदर्शन के जरिए बाजार के उत्पादन को पेश कर जनता को लुभाना अगर कला है तो मुझे तुम्हारी कला की जानकारी पर खेद है।'

“जॉर्ज अंकल... मुझे अच्छा लगता है मॉडलिंग करना। आखिर हर व्यक्ति को अपनी तरह जिंदगी जीने का हक तो मिलना ही चाहिए।”

“रागिनी... हम तो तुम्हारे भले के लिए कह रहे हैं बेटा।” दीना का स्वर रूआँसा हो गया।

“मैं अपना भला-बुरा समझ सकती हूँ आंटी। अब मैं बड़ी हो गई हूँ। आप कब तक मुझे उँगली पकड़कर चलना सिखाते रहेंगे।”

जॉर्ज और दीना आहत थे। यह किस लहजे में किस भाषा में बात कर रही है रागिनी?

रात मुनमुन से फोन पर बात करते हुए दीना रो पड़ी-”मैं इंडिया लौट रही हूँ दीदी... अब मेरा और जॉर्ज का यहाँ क्या काम? रागिनी बड़ी हो गई हैं, अपने ढंग से जीना चाहती है... ।”

“उसे जिंदगी की सच्चाई का ज्ञान होने दो दीना। तुम लौटना चाहती हो तो लौट आओ पर मन में यह गाँठ लेकर नहीं कि रागिनी की परवरिश में तुमसे कोई चूक हुई है। कभी-कभी इंसान वक्त के हाथों बहुत मजबूर हो जाता है और तब सारी कोशिशें नाकाम हो जाती हैं।”

दीना के जख्मों पर यह राहत भरा मलहम था। अगर आज मुनमुन सामने होती तो वह उसके चरण छू लेती जैसे मझधार में फँसी नैया को किनारा मिल गया हो।

दीना को सामान पैक करते देख रागिनी ने पूछा-”कहीं जा रही हैं आंटी?”

“हाँ, इंडिया वापिस लौट रहीं हूँ। अब यहाँ मेरा काम पूरा हो गया।”

“मुझे अकेली छोड़कर?”

“तुम अकेली कहाँ हो रागिनी? तुम्हारे साथ तुम्हारी महत्वाकांक्षाएँ हैं, सपने हैं, सोच है। उसमें हम कहाँ?” अटैची पैक हो चुकी थी। दीना ने रागिनी के कंधे पर हाथ रखा-”सोमवार की फ्लाइट है हमारी और बहुत सारा काम निपटाना है।”

“आंटी आपको पता है न मैं आपके बिना नहीं रह सकती।” रागिनी दीना से लगभग लिपट-सी गई। लेकिन दीना रागिनी की लंबे अरसे से चली आ रही हरकतों और मनमानी से पत्थर दिल हो चुकी थी। उचाट हो बस इतना भर कहा कि... “यहाँ तुम्हारी केयर टेकर जूली है, उसका भाई गोर्डन है। मेरे नहीं रहने से कुछ फर्क नहीं पड़ेगा।” और अपने काम में लग गई।

हताश रागिनी अपने कमरे में लौट आई। वह समझ चुकी थी कि जॉर्ज और दीना उसकी मॉडलिंग से नाराज हैं वरना इतने बरसों से बेइन्तहा प्रेम करने वाले वे इतने पत्थर दिल कैसे हो सकते हैं? कहीं वह सचमुच गलत तो नहीं? कहीं चकाचौंध करने वाली यह मॉडलिंग की दुनिया उससे उसके अपने तो नहीं छीन रही? क्या जॉर्ज और दीना सचमुच चले जाएँगे? पर वह इस दिल का क्या करे जो सैम को प्यार करता है। सैम का कॅरिअर नष्ट हो जाएगा अगर वह मॉडलिंग छोड़ देती है तो। इतने दिनों की मेहनत पानी में मिल जाएगी। रागिनी को लगा वह बीच भँवर में ऐसी फँस चुकी है कि चाहकर भी किनारे पकड़ नहीं पा रही है। क्या हकीकत बयान है - गालिब के इस शेर में -

ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजे,

इक आग का दरिया है और डूब के जाना है।

मेनचेस्टर से लंदन लौटते हुए जॉर्ज गाड़ी रोक-रोक कर आसपास के जंगलों और गाँवों में भटकता रहा। रागिनी के कारण उसका मन व्यथित था। लगातार पच्चीस बरसों से लंदन में रहते हुए अब लंदन छोड़ने की पीड़ा जड़ से उखाड़े जाने की पीड़ा थी। लंदन को वह अपना समझने लगा था। टॉम के व्यापार को उसने बखूबी सँभाला था। डायना और चंडीदास के प्रेम की निशानी रागिनी को उसने फूल-सा सहेजा था पर उसके अस्तित्व को रागिनी ने बालू के घरौंदे-सा ढहा दिया था। हिंदुस्तान में अब वह कहाँ लौटेगा? अब उसका अपना तो कोई है नहीं वहाँ... गुजरते वक्त की धार में सब बहता गया, बिछुड़ता गया। अचानक उसे अहसास हुआ इतने बड़े संसार में वह तो निपट अकेला ही रह गया और इस उम्र में नए सिरे से सब कुछ सहेजना, बसाना... कितना कठिन है... ओह, कितना कठिन, जानलेवा... ।

गाड़ी गर्म हो चुकी थी। वॉटर केन लिए वह पानी की तलाश में सड़क पार कर सामने दिखते चर्च के फाटक की ओर बढ़ा। बहुत पुराना टूटा फूटा... बदरंग चर्च अपने अतीत की कहानी कह रहा था। टूटी-तिड़की दीवारों पर जंगली घास उग आई थी। चर्च पर झुकती शारबलूत की नंगी शाखें थीं जिन पर पंछी चहचहा रहे थे। दाहिनी ओर कांटेदार झाड़ियाँ थीं। झाड़ियों में अटके शाहबलूत के टूटे लाल पत्ते हवा में खड़खड़ा रहे थे। पैरों के नीचे गज-गज भर ऊँची घास ही घास... वह घास रौंदता आगे बढ़ा तो पत्थर से पैर टकराया। झाड़ियों के झुरमुट हटाकर उसने देखा वहाँ पत्थर की कई कब्रें थीं। जॉर्ज ने हैट सिर से उतारकर बगल में दबाया और कब्रों पर से घास फूस साफ की। कब्रों पर दफनाए गए व्यक्तियों के नाम खुदे थे जो इन गाँवों में पैदा हुए थे और हिंदुस्तान में शहीद हुए थे। जॉर्ज ने उनके लिए प्रार्थना की। भले ही इन शहीदों ने हिंदुस्तान के खिलाफ युद्ध किया पर आखिर हैं तो ये शहीद ही। वह भी तो शहीद हुआ है मानवता की डगर पर, फर्ज की डगर पर स्वामी भक्ति की डगर पर, उसने भी तो अपने इतने सारे सालों का तर्पण कर दिया रागिनी को रचने में... देश को भुलाकर परदेश में पड़ा है... पर उसे मिला क्या?... वह तो हिंदुस्तान में गुमनामी की कब्र में दफन होगा। उसके नाम कोई शहदतनामा नहीं लिखा जाएगा। सहसा जॉर्ज घुटनों के बल बैठ गया और कब्र को पकड़कर फूट-फूट कर रो पड़ा।

जब रागिनी शूटिंग से लौटी तो पता चला जॉर्ज की तबीयत बिगड़ गई है और दीना उसे नर्सिंग होम ले गई है। डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर का तो वह पुराना रोगी है। दीना हर भारतीय नुस्खे उस पर आजमाती रही है। कभी करेले का जूस, कभी जामुन की गुठलियों का पावडर और कभी मैथी के भीगे-दाने पानी सहित... कदम-कदम पर उसने जॉर्ज का ख्याल रखा है, कहीं बदपरहेजी न हो। फिर यह रोग कैसे बढ़ता ही जा रहा है? रागिनी शायद नहीं जानती कि उसने गुजरे और मौजूदा महीनों में कितना तनाव दिया है जॉर्ज को। दीना तो फिर भी कह सुनकर दुख हलका कर लेती है पर जॉर्ज अंदर ही अंदर घुटता रहता है। जूली कहती है कि-”साब कहीं डायबिटिक कोमा में न चले जाएँ”

“इतनी हालत खराब है जूली? हमें तो पता ही नहीं... ये दोनों तो हिंदुस्तान लौटने की तैयारी कर रहे थे।”

“साब जब से मेनचेस्टर से लौटे हैं उदास हैं। कॉफी पी-पी कर अपने को मारे डाल रहे हैं। न खाना खाते हैं न किसी से बात करते हैं।” जूली एकदम नजदीक आ गई रागिनी के-”एक बात कहूँ बेबी... बुरा तो नहीं मानोगी?”

“हाँ, कहो जूली... “

“बेबी... तुम ये मॉडलिंग छोड़ दो... डायना विला उजड़ रहा है बेबी... प्लीज।”

रागिनी झटका खा गई। यह तो सीधे-सीधे आरोप लग गया उस पर जॉर्ज के बीमार पड़ने का। वह सीधी बाथरूम में घुस गई और देर तक गर्म पानी के शावर के नीचे अपने अपराध को बहाती रही पर जितनी वह कोशिश करती, अपराध की पीड़ा उतनी ही गहराई से खुबती जाती।

पाँचवे दिन जॉर्ज नर्सिंग होम से लौट आया। उनका हिंदुस्तान लौटना टल गया। रागिनी ने चैन की साँस ली।

जूली कोलरी से लकड़ियों के टुकड़े लाकर फायर प्लेस में डाल रही थी। जॉर्ज सामने बैठा था। दीना सलाइयों पर कुछ बुन रही थी। उनके चेहरे जलती लकड़ियों की लपटों की पीली परछाइयों से घिरे थे। डायना विला एक दिल कंपा देने वाली मुर्दा खामोशी में जकड़ा था। इस खामोशी में न तड़प थी, न आध्यात्मिक शांति। इन अनागत क्षणों की पहचल सुनने को वे दोनों बेकाबू थे जबकि उनकी आँखों के सपने मर चुके थे और यह सबसे खतरनाक होता है... सपनों का मर जाना। जॉर्ज और दीना समझ गए थे कि जो अनिवार्य है वह तो घटित होगा ही। उसके विरूद्ध लड़ना पीड़ा को निमंत्रण देने जैसा है।

दिन-ब-दिन रागिनी के राह भटक जाने की दीमक चाटती गई जॉर्ज को। जॉर्ज खोखला हो गया। एक दिन बेहोश होकर जो गिरा तो फिर उठा ही नहीं। अस्पताल में उसकी साँस, धड़कन और दिमाग को जिंदा रखने के लिए उसे मशीनों पर रखा गया। मशीन जो उसके दिल के नजदीक थी... लोहार की धौंकनी की तरह चलती। काँच के पार्टीशन के इस पार दीना खड़ी थी... ऐन उसी वक्त... अस्पताल के उन्हीं चंद दिनों में सैम हॉलीवुड चला गया। उसे एक बड़ा ऑफर मिला था और वह उसे हाथ से जाने देना नहीं चाहता था। इन्हीं व्यस्तताओं के कारण वह एक दिन भी जॉर्ज को देखने अस्पताल नहीं जा सका। दीना के दोनों बेटे अमेरिका से आ चुके थे। सैम का वियोग रागिनी को निचोड़े डाल रहा था। वह नादान समझ ही नहीं पा रही थी कि इतने लंबे अरसे से सैम ने न केवल उसके बदन की नुमाइश कर ढेर सारी दौलत कमाई थी बल्कि एक भौंरे की तरह उसके फूल से बदन से रस की एक-एक बूँद चूस कर उसे खाली झंझर-सा बना डाला था।

आठवें दिन जॉर्ज ने अंतिम साँस ली। वह एक सच्चा स्वामीभक्त था। उसने जिंदगी भर अपनी मालकिन डायना की खिदमत की थी और डायना की मृत्यु के बाद रागिनी के प्रति अपने फर्ज को बखूबी निभाया था लेकिन अपने ही बनाए दुर्ग की दीवारों में दरार देख वह चल बसा। उसकी अंतिम इच्छा थी कि रागिनी डायना का संपूर्ण कारोबार सँभाल ले ताकि इतने वर्षों की साधना व्यर्थ न जाए।

जॉर्ज की मृत्यु पर हिंदुस्तान से मुनमुन और सत्यजित लंदन आए थे। रागिनी ने पहली बार मुनमुन को देखा। उसे लगा था कि वह बूढ़ी हो चुकी होगी पर मुनमुन की उम्र तो जैसे रिवर्स में चल रही थी। चेहरे पर बढ़ती उम्र का कहीं कोई निशान नहीं था। लावण्यमय सुंदर मुखड़ा सत्यजित के प्रेम की सुनहली आभा में सोने-सा दमक रहा था। रागिनी मृगछौना-सी मुनमुन की बाहों में दुबक गई। मुनमुन को लगा जैसे दादा (चंडीदास) के आलिंगन में है वह... रागिनी फूट-फूटकर रो रही थी। जॉर्ज की मृत्यु का सदमा उसे भीतर ही भीतर खाए जा रहा था। उधर सैम का वियोग... जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी।

“बुआ... मैं अकेली हो गई। मेरे पिता दुबारा मर गए।”

मुनमुन ने उसके बाल सहलाए-”जन्म मृत्यु क्या हमारे हाथ में है? तुम तो बहादुर हो मेरी बेटी... अब तुम्हें दीना को सँभालना है। तुम पर तो जिम्मेदारी आन पड़ी है।”

“कैसे बुआ? मुझमें उतनी हिम्मत कहाँ?”

“जानती हो रागिनी ईश्वर जिन्हें सबल समझता है उन्हें ही आजमाता है और तुम इस इम्तहान में खरी उतरोगी यकीन है मुझे।”

समय बीतता गया। जॉर्ज की अंतिम इच्छा का मान रखते हुए रागिनी ने सारा कारोबार सँभाल लिया। वह नियमित ऑफिस जाने लगी। उसे लगा जो काम उसे जॉर्ज के रहते शुरू कर देना था वह अब कर रही है तो कहीं यह उसकी भूल तो नहीं? इतने वर्ष उसने यूँ ही तो नहीं गंवा दिए कहीं? क्या वह सैम पर विश्वास करे? उसे हॉलीवुड गए एक साल से ऊपर हो चुका है... कभी-कभार उसका फोन आ जाता है जिसमें केवल फिल्मों की चर्चा होती है। वह प्रेम कहाँ गया जिसकी खातिर उसने अपने लोगों की नाराजी झेली थी... क्या वह मात्र छलावा था? दीना उसे समझाती रहती है कि “भूल जाओ सैम को। अब वह नहीं लौटेगा? प्यार ऐसा नहीं होता। प्यार में त्याग और समर्पण चाहिए। बिना किसी चाह के निःस्वार्थ, छलरहित प्रेम ही प्रेम कहलाता है। सैम ने तो प्रेम स्वार्थ की जमीन पर ही बोया था तो फसल भी तो भोग, लिप्सा, छल की ही उगेगी। तुम भोली हो, समझ नहीं पाई और लगातार ठगी जाती रहीं।”

“नहीं आंटी... वह लौटेगा। वह मुझे सच्चा प्यार करता है।”

“यह तुम्हारा भ्रम है रागिनी।”

न जाने क्यों भ्रम पाले रखना रागिनी की मजबूरी हो गई। जब तक ऑफिस में रहती काम में ही व्यस्त रहती। घर लौटते ही सैम को फोन, सैम के लिए सोचना, ईश्वर से उसके लिए प्रार्थना करना उसकी दिनचर्या में शामिल हो गया। इधर मॉडलिंग के ऑफर भी बहुत आ रहे थे। वह एक कामयाब मॉडल रह चुकी थी। लेकिन रागिनी ने ऐलान कर दिया था कि वह मॉडलिंग की दुनिया से संन्यास ले चुकी है।

न जाने किस विवशता ने रागिनी से सैम का लगातार तीन वर्षों तक इंतजार करवाया। फोन और खतों से वह दो साल तक तो भरमाए रहा उसे। तीसरे साल उस सिलसिले को भी खतम कर दिया सैम ने और खत्म कर दिया रोज को... । वह रोज जो केवल सैम के लिए रोज थी। बाकी के लिए रागिनी थी। रागिनी रोज... दो हिस्सों में बंटी... दो अहसासों में बंटी... रागिनी झंकार है तो रोज महक... । रागिनी की नैया हौले-हौले चलती है, रोज पानी में फूल की मानिद आगे-आगे बहकर उसे रास्ता दिखाती है। तब अर्थ बंट जाते हैं और शब्दों की ताकत नया अहसास रचती है। दिल में बहुत कुछ चिर जाता है जिसकी तड़प हर रोएँ में समा जाती है, वह देखती है उन बूढ़ों को जो पेंशनर्स पार्क में पीले फूलों की क्यारी के सामने बेंचों पर बैठे अपनी अंधेरी आँखों में बाहर का उजाला भरने की नाकाम कोशिश करते हैं। वह देखती है फूलों पर उडती तितलियों को जिनको पकडने की कोशिश में युवा जोड़े एक-दूसरे की बाहों में बार-बार समा जाते हैं और हल्की सिहरन में एक दूसरे का मुख चूम लेते हैं। और फिर नजर आती है एक अकेली नौका जो उसकी आँखों की झील में कब से डोल रही है... यह उसका अपना जल महल है जिसमें उसके आँसुओं का पानी भरा है।

रागिनी बावली-सी सैम को लॉस एंजेल्स तक जाकर ढूँढ आई थी। पर कहीं उसका अता-पता नहीं था। उसका सौंदर्य कांतिहीन होता जा रहा था। सैम ने उसकी दुर्दशा कर डाली थी लेकिन अभी भी उसे सैम का इंतजार था। लॉस एंजेल्स से लौटकर रागिनी को बुखार रहने लगा था। रात डिनर से निपटकर दीना रागिनी का सिर गोद में रखे उसके बालों को सहलाते हुए बोली-”रागिनी, तुमने अपने बारे में क्या सोचा है?”

वह फीकी हँसी हँस दी। अब उसके पास बचा ही क्या है सोचने को। किशोरपन विदा ले चुका है, वह वयस्क हो चली है और सैम के लिए साँसें कंजूस की तरह संजो कर रखी हैं।

“सैम अब नहीं लौटेगा रागिनी? उसे हॉलीवुड की चकाचौंध ने आकर्षित कर लिया है। उसके लिए धन ही सब कुछ है।”

दीना ने उसका माथा चूम लिया। वह उसके सीने में समा गई। पूछना चाहा-”मेरी तकदीर धन के लोभियों से क्यों जुड़ी है आंटी... डैड, सैम... दोनों ही जीवन के आधार व्यक्ति, एक बचपन से जुड़ा... दूसरा जवानी से...” पर छलक आई आँखों को पूरी कोशिश से रोकती वह खामोश रही। दीना का सवाल उस रात भी लाजवाब ही रहा।

बीमारी लंबी खिंच गई रागिनी की। बुखार के साथ खाँसी ने भी जड़ें जमा लीं। दीना का माथा ठनका... कहीं टीबी तो नहीं। लंदन के तमाम डॉक्टरों से संपर्क साधा गया। जाँच के बाद खाँसी बुखार जनित ही सिद्ध हुई। दीना ने चैन की साँस ली। लेकिन फिर भी रागिनी के पीले, निस्तेज चेहरे और लगातार दुर्बल होते शरीर को देख वह खुद बीमार रहने लगी। वैसे भी जॉर्ज की गैरमौजूदगी ने उससे जिंदगी तो छीन ही ली थी।

रागिनी को अब भी सैम का इंतजार था। अकेले में वह जार-जार रोती। क्यों किया सैम ने ऐसा? उसने तो सैम के प्रेम में शरीर को शरीर नहीं समझा। अपनों को पीड़ित कर, जॉर्ज को गहराई तक चोट पहुँचाकर भी वह सैम के प्रति वफादार रही। नहीं, सैम बेवफा नहीं हो सकता... कि एक दिन झटके से भ्रम टूटा... सैम ने हॉलीवुड में अपनी जिस फिल्म का पिछले महीने मुहूर्त शूट किया था उसी की खलनायिका से सगाई कर ली। शादी दो महीने बाद की तारीख में तय हुई। रागिनी विक्षिप्त-सी हो गई। टूट कर तिनका-तिनका बिखर गई... रात मुनमुन का फोन आया... आवाज जैसे मरूस्थल से आ रही हो। रेती-सी सूखी, रूखी... रागिनी हिली... उस रेतीले तूफान से या दीना... दोनों में से कोई समझ नहीं पाया। सुबह जब जूली दीना के कमरे में बेड टी लेकर गई तो उसे अपने बिस्तर पर मृत पाया। रात के किसी वक्त उसके दिल ने धड़कना बंद कर दिया। वह अपने जॉर्ज के पास उसी दिन चली जाती जब जॉर्ज ने मशीनों से साँस उधार लेते वक्त लाचारी से उसे देखा था पर रागिनी के प्रति फर्ज की जंजीरों ने उसे जकड़ लिया था। आज वे जंजीरें टूट गईं। वह समझ गई थी कि रागिनी का अब कोई भविष्य नहीं है। वह सैम के लिए कुर्बान हो चुकी है और जब तक उसके बहते आँसुओं को थामने के लिए दीना का कंधा है वह सँभलेगी भी नहीं। शायद इसीलिए दीना बिना किसी शोरगुल के बिना किसी को तकलीफ दिए चुपचाप इस संसार से चली गई। रागिनी एक बार फिर अनाथ हो गई।

मुनमुन नहीं आ पाई, दीना के दोनों बेटे अपनी पत्नियों सहित आए। दीना का बस इतना ही संसार था सो जुड़ गया। रागिनी को अब कंपकंपी देकर बुखार आने लगा था। डॉक्टर दोनों वक्त आता। दवा, परहेज नियम से लेने करने की हिदायत देता था। जूली बुखार के चार्ट के पिछले हिस्से में सब नोट कर लेती। उसने पूरी ईमानदारी से सारा जिम्मा अपने सिर उठा लिया था। गोर्डन बाहर का सँभालता। दीना के बेटे, बहुएँ, पोते, पोतियाँ दीना का अंतिम कर्म कर वापस लौट गए थे। अब उनका वहाँ बचा ही क्या था? रागिनी को कभी वे वह स्नेह नहीं दे पाए जो जॉर्ज और दीना ने चाहा। शायद इसकी वजह यह थी कि रागिनी के कारण ही दीना और जॉर्ज उन दोनों की तरफ खास ध्यान नहीं दे पाए थे।

लगभग तीन महीने बाद रागिनी पूर्णतः स्वस्थ हुई। उसने मुनमुन को एक लंबा फोन किया कि वह लंदन में रहकर कारोबार सँभालेगी। वह सैम की दगाबाजी को अकेले रहकर महसूस करना चाहती थी। या शायद ऐसा करके वह खुद को सजा देना चाहती थी। शादी का तो वह सोच भी नहीं सकती। शादी करके वह अपने पति को देगी क्या? न उसके पास प्यार बचा है, न शरीर, न साबुत मन। अब वह इन भ्रमों में पड़ना भी नहीं चाहती... थक चुकी है वह... बहुत विश्वास किया था उसने सैम पर... लेकिन एक कुचले-मसले अतीत के सिवा और कुछ नहीं दिया सैम ने उसे... बल्कि सैम के ही कारण उसके माता-पिता जैसे जॉर्ज और दीना असमय ही दुनिया से चल दिए।

मुनमुन घबरा गई थी-”पगली... बेकार की जिद्द में अपने को क्यों तबाह करने पर तुली हो।”

“आप इसे जिद्द कहती हैं बुआ? यह हकीकत है। प्यार करने वालों के शरीर मर जाते हैं लेकिन आत्मा जिंदा रहती है और नफरत करने वाले उसी दिन... जिंदा होते हुए भी मर जाते हैं जिस दिन उनके दिल में नफरत जन्म लेती है। इसीलिए तो मैं डैड को याद करना नहीं चाहती लेकिन ममा और पापा मेरी स्मृतियों में हमेशा मौजूद हैं।”

मुनमुन ने पहली बार चंडीदास के लिए रागिनी के मुँह से पापा संबोधन सुना था। उसका सारा शरीर सिहर उठा, वह जोर से चिल्लाई-”सत्य, अरे... इधर तो आओ... देखो, मेरी रागिनी बिटिया क्या कह रही है।”

रागिनी ने फोन पर सारी आवाजें सुनी... उसकी आँखों से झर-झर आँसू झरने लगे... हाँ, वह जान गई है कि वह ममा और चंडीदास के प्रेम की निशानी है। यह बात उसे दीना ने जॉर्ज की मृत्यु के बाद एक रात वाईन पीते हुए नशे की झोंक में बता दी थी। तब रागिनी इतनी खुश हुई थी कि वह दीना के गले में बाहें डाल खुशी से रो पड़ी थी-”आंटी... यह बताकर अपने मेरे मन पर रखा टनों वजन का पत्थर हटा दिया। टॉम ब्लेयर की संतान कहलाने से अच्छा तो मर जाना था। मैं इसी सोच को लेकर आज तक घुटती रही... आँटी, आज मेरा मन कर रहा है आसमाँ नीचे हो और मैं उस पर नाचूँ, इतराऊँ... ओह आँटी... यू आर ग्रेट।” और उसने दीना के गालों को चूम-चूम कर लाल कर दिया था।

“मेरी रागिनी गुड़िया... तुम्हारे पापा के पास इतना प्रेम था कि उसके लिए एक जन्म छोटा था। और तुम्हारी ममा... वे तो कृष्णमय थीं और कृष्ण तो हैं ही प्रेम का सागर... ।”

“बुआ, ममा की इच्छा थी न, कि मैं कृष्ण पर रिसर्च करूँ तो मैं जरूर करूँगी, लेकिन पहले मैं एक सफल बिजनेसमैन बनूँगी। जॉर्ज अंकल यही चाहते थे।”

“ऐसा ही होगा। ईश्वर तुम्हारे साथ है, कृष्ण तुम्हारे साथ हैं।”

“और ममा भी तो! बुआ, इंसान तभी मरता है जब उसकी स्मृतियों को बुहार दिया जाए। ममा मेरे आसपास हैं, मेरी स्मृतियों में, मेरे संकल्पों में, जहाँ उनकी चाह धीरे-धीरे अंकुरित होनी शुरू हो चुकी है।”

बर्फीली बारिश में जमा देने वाली ठंड को झेलती जूली ने सब्जियों से भरा बैग उठाने के लिए दरवाजा खोला ही था कि बर्फीला अंधड़ तेजी से अंदर घुस आया पर रागिनी पर इसका कोई असर नहीं था। वह तमाम असर के परे जा चुकी थी। खुद को भूलकर उसने अपनी सोच को विराट कर लिया था। उसका अकेलापन एक ऐसा अभेद्य कवच बन गया था कि अब जिंदगी के किसी भी मोड़ पर जिंदगी के हर वार को वह झेल सकती थी बिना किसी भावुकता भरे सहारे के। सहारे के लिए उसके साथ जूली है न। जिसकी मौजूदगी रागिनी की हिम्मत बन गई है। और जिसने अपने स्नेहिल परों को फैलाकर उसकी छाँव में रागिनी को चिड़िया-सा दुबका लिया है और यह गोर्डन... जिसने रागिनी को बाहरी संरक्षण दिया। डायना विला में तैनात इन दोनों खिदमतगारों के रहते क्या अकेली कहला सकती है रागिनी? बेसहारा कहला सकती है?