टेलीविजन के रहस्य और नलिन मेहता की किताब / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :28 अगस्त 2015
टेलीविजन पर लिखी नलिन मेहता की किताब 'बिहाइंड ए बिलियन स्क्रीन्स' बहुत ही शोध करके लिखी विश्वसनीय किताब है। मीडिया चर्चित विषय है। नलिन मेहता ने टेलीविजन उद्योग का इतिहास प्रस्तुत किया है और सरकार से इसके संबंध कैसे हैं, इस पर विस्तार से लिखा है। इस माध्यम पर सरकार अपना नियंत्रण करना चाहती है ताकि इसकी पहुंच का उपयोग अपने सत्ता स्वार्थ के लिए किया जा सके। संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सचमुच कितनी बंधी हुई है। जब आर्थिक उदारवाद के साथ नेहरू की समाजवादी नीतियों को समाप्त घोषित कर दिया गया तब खुलेपन की नीति के पास अपने कोई सिद्धांत व आदर्श नहीं थे और एक शून्य पैदा हो गया था। प्राइवेट टीवी चैनल इसी शून्य की संतान है और आदर्श के अभाव में दिशाहीन भी है। टीवी अपने आकाओं की इच्छा के अनुरूप भ्रम फैलाता गया और उसने समाज की विचार शक्ति को नष्ट करने के षड्यंत्र का हिस्सा बनना स्वीकार किया। अंधविश्वास और कुरीतियों को इस झूठे दावे के साथ फैलाया कि वह तो इसे समाप्त करना चाहता है। मसलन बालिका वधू यूं तो बाल विवाह के खिलाफ है परंतु उसमें परिवार की बुजुर्ग महिला बाल वधू पर तरह-तरह के जुल्म ढाती है। अंत में परिवार का हर सदस्य उस बुजुर्ग के चरणों में पड़ा नज़र आता है। गोयाकि जुल्म ढाने वाला आदरणीय है। इसके प्रसारण के एक वर्ष पश्चात राजस्थान में विगत वर्ष से अधिक बाल विवाह हुए।
यह 'बालिका वधू' प्रकरण किताब में नहीं है परंतु पाठकों को टेलीविजन शैली के बारे में बताने का प्रयास है। किताब में बताया गया है कि एक लोकप्रिय चैनल ने राज उजागर करने का दावा करने के बाद सगर्व कहा कि उनके पत्रकार ने खोज निकाला है कि रावण के पास विमान थे और परदे पर चित्र उभरता है कि पत्रकार पहाड़ी पर खड़ा काली मिट्टी दिखा रहा है, जो हनुमानजी द्वारा श्रीलंका को जलाने और उनके विमान को नष्ट करने का प्रमाण है। एक मुट्ठी काली राख को हजारों वर्ष पूर्व जले विमान का हिस्सा बताया गया है। यह भी दावा किया गया है कि सत्रह फीट के लंबे रावण की मृत देह को उसे नष्ट होने से बचाने के लिए लेप लगाए गए थे और वह एक गुफा में विद्यमान है। इस तर्कहीन अप्रामाणिक बकवास को खूब लोकप्रियता मिली।
नलिन मेहता की किताब इस बात पर प्रकाश डालती है कि किस तरह अनेक राजनेताओं, चिटफंड चलाने वाले और रीयल एस्टेट का व्यवसाय करने वालों ने टेलीविजन लाइसेंस हथिया लिए और बैंक से कर्ज लेकर चैनल स्थापित किए और ब्लैकमेल करके धन कमाने के लिए कई चैनल का उपयोग होता रहा है। कैसे प्रादेशिक चैनल में घुसपैठ की गई और उन्हें हथिया लिया गया तथा चुनाव में चैनल का प्रयोग किन ताकतों ने कैसे किया। सारांश यह कि टीवी पर पूंजीपतियों और नेताओं का कब्जा है। टीवी, सिनेमा और अखबार, मीडिया के सभी अंग बाजार का हिस्सा हैं और बाजार के नियमों से शासित हैं। जब जयप्रकाश नारायण का भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चल रहा था, तब इससे अनभिज्ञ सलीम-जावेद ने एंग्री यंगमैन की छवि गढ़ी, जिसे अमिताभ बच्चन ने भावना की तीव्रता से जीवंत कर दिया। दर्शक के क्रोध का शमन हो गया परदे पर खलनायक को पिटते देखकर। कितनी भोली है प्रजा और स्वयं को छलने में कितनी निपुण है। आज एक टीवी एंकर न्यूज में उसी एंग्री छवि में जोर-जोर से चीखता है और अपने शिकार की धज्जियां उड़ाता है, जिसे देखकर हम भोले लोग अपने क्रोध के शमन को 70 एमएम के बड़े परदे से छोटे परदे पर ले आए। हमारे बौनेपन के रचयिता भी हमी हैं। यह प्रसंग पहले प्रीतिश नंदी ने उठाया था।
बहरहाल, हार्पर कॉलिन्स द्वारा प्रकाशित यह लगभग तीन सौ पृष्ठ की किताब टीवी पर संपूर्ण जानकारी देती है, जिसका विद्वतापूर्ण इंट्रोडक्शन उदय शंकर ने लिखा है, जिन्होंने साहसी 'सत्यमेव जयते' प्रस्तुत किया था।पता चला है कि इस कार्यक्रम में दशरथ मांझी के परिवार को बुलाया गया था और परिवार की सहायता की बात की गई थी परंतु बिहार के एक व्यक्ति का कहना है कि सहायता राशि नहीं मिली है। यह संभव है कि कोई बिचौलिया खा गया हो। इसी विषय पर केतन मेहता की फिल्म 'मांझी द माउंटेनमैन' एक क्लासिक है।