ट्राई कर देखिये / प्रतिभा सक्सेना

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बाज़ार घूमते हमने एक दुकान का नाम देखा - "रणजीत चप्पल्स'।

बड़ा ताज्जुब हुआ! चप्पल का रण जीतने से क्या संबंध?

कुछ ग़लत पढ़ गये क्या -चरणजीत चप्पल्स होना चाहिये था। हो सकता है चरण का 'च' मिट गया हो किसी तरह। फिर से देखा- नहीं, 'च' का कोई निशान नहीं। साफ़ रणजीत लिखा है।

चक्कर में पड़ गए हम! अरे, चप्पल की दुकान है नाम रखना था "चरणजीत चप्पल्स" जो चरण की सेवा कर उसे जीत लें। और ये हैं कि युद्ध जीतने के लिए उकसा रहे हैं।

रणजीत चप्पल्स?

लेकिन ये ठहरे व्यवसायी लोग। बेमतलब तो नाम देंगे नहीं।

फिर सोचते रहे। एकदम ध्यान आया - रण का एक प्रकार चप्पलबाज़ी या जूतम-पैजार भी तो है- जो आजकल काफ़ी कॉमन हो गया है। और अक्सर ही जूता फेंकने की घटनाएं सामने आ रही है। जूता फेंका तो आसानी से जा सकता है पर उससे मारा-मारी नहीं की जा सकती। गया तो गया। ऊपर से,बनावट ऐसी कि कस पकड़ पाना मुश्किल -ग्रिप नहीं बनता(ट्राई कर देखिये), उतारने में समय लगे सो अलग। ताव आते ही फ़ौरन दे मारें, ये संभव नहीं। ज़्यादा से ज़्यादा दो बार फेंक लो, और जूते कहां से लाओगे?। पर चप्पल कितनी भी बार चला लो, हाथ से कहीं नहीं जाएगी!

मतलब खरीदने के पीछे का उद्देश्य पहनना नहीं लड़ कर जीतना है। चप्पल चट् से उतारो और दे तड़ातड़! पकड़ने में छूट जाने का कोई डर नहीं। चाहे जितने वार करो। रण में आसने-सामने वार चलते हैं, नहीं, जूता वहाँ नहीं चलेगा।

रणजीत चप्पलें खरीदी हैं तो पहन कर उसे टेस्ट करने की इच्छा बहुत स्वाभाविक है। अब तो मौका ढूँढेंगे कि डट कर प्रयोग हो। तो यह नाम दुकानदार ने सोच-समझ कर रखा है। लड़ाई में डट कर चप्पलें चलेंगी टूटेंगी, जीत का सेहरा बँधेगा तो वो फिर यहीं से खरीदेगा। हो सकता है चप्पलों में कुछ ऐसा प्रयोग हो। जो प्रतिद्वंद्वी को चित्त करके ही छोड़े। तभी तो जीत की गारंटी दी है।

अच्छा है, दुकान की बिक्री हमेशा होती रहेगी।

सही नाम रखा है, अच्छी तरह ठोंक-बजा कर - रणजीत चप्पल्स।

देखना खूब चलेंगी चप्पलें!