ट्विंकल खन्ना का सुपुत्र और भावी पीढ़ी / जयप्रकाश चौकसे

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ट्विंकल खन्ना का सुपुत्र और भावी पीढ़ी
प्रकाशन तिथि : 26 फरवरी 2014


मुंबई के डीएनए अखबार में फिल्म वालों के लिखे लेख नियमित रूप से प्रकाशित हो रहे हैं और अब तक शाहरुख खान के तीन दुरूह लेख और अक्षय कुमार की पत्नी ट्विंकल खन्ना के रोजमर्रा की पारिवारिक समस्याओं पर सरस लेखों में उनके ताजा लेख में उन्होंने लिखा है कि अक्षय कुमार सुबह 10 बजे शूटिंग के लिए गए और जाते समय अपने बेटे को पारिवारिक सुरक्षा का दायित्व देकर गए। उनके जाने के बाद टेलीविजन पर प्रसारित कार्यक्रम में संसद में हुई हुड़दंग के कुछ दृश्य दिखाए गए साथ ही दो राज्यों की विधानसभाओं में हुई हुड़दंग के दृश्य दिखाए गए। ट्विंकल के पुत्र ने स्वीडन में बना एक छोटा चाकू जो नेल कटर और स्क्रू ड्रायवर का काम कर सकता है, उठाया, घर को संसद सभा भवन मानकर कुछ हुड़दंग किया जिसके परिणाम स्वरूप सोफे में छेद हो गया और कुछ टूट-फूट भी हुई। ट्विंकल हास्य के लहजे में लिखती हैं कि उनके कमसिन उम्र के बेटे के मन में यह धारणा जम गई है कि सांसद बनने के लिए शिक्षा नहीं वरन् हुड़दंग करने की क्षमता होना चाहिए और यह संभव है कि चुनाव में भाग लेने की उम्र तक वह पूरी तरह हुड़दंग में प्रवीण हो जाए।

यह लेख हास्य के लहजे में लिखा गया है परंतु इस तथ्य से हम इनकार नहीं कर सकते कि टेलीविजन पर प्रसारित राजनैतिक हुड़दंग बच्चों को ठीक उसी ढंग से प्रभावित कर सकती है जिस ढंग से उन्हें छोटा भीम प्रभावित करता है। चुनावी कुरुक्षेत्र के दृश्य भी बच्चों को प्रभावित कर सकते हैं। यह बात अलग है कि वे घर को ही कुरुक्षेत्र बनाकर विध्वंस करने वाला खेल रचते रचते सचमुच वैसे हो सकते है। शालीनता व सद्व्यवहार राजनीति से खारिज हो चुका है। दशकों पूर्व इरविंग वैलेस के उपन्यास 'द मैन' में एक नीग्रो के अमेरिका के राष्ट्र अध्यक्ष होने की कथा है और इसमें एक प्रकरण इम्पीचमेंट का है जिसके तहत सीनेट अध्यक्ष अपनी पैरवी के लिए अपने बचपन के मित्र एवं निष्णात वकील को मिलने जाता है कि उसकी ओर से वे उसका पक्ष प्रस्तुत करें परंतु मित्र कहता है कि उसने अपने बचपन के सपने अर्थात हजार एकड़ का रैंच को प्राप्त करने के लिए एक कारपोरेट के लिए काम करने का अनुबंध स्वीकार कर लिया है। वह यह भी कहता है कि इस आपार धन देने वाले अनुबंध से उसके बच्चों का आगामी जीवन सुरक्षित एवं सुविधाजनक हो जाएगा।

वकील की पत्नी अपने पति से आग्रह करती है कि वह अनुबंध निरस्त करके अपने मित्र का केस लड़े क्योंकि एक नीग्रो राष्ट्र अध्यक्ष को मात्र उसके नीग्रो होने के कारण षड्यंत्र का शिकार बनाकर अन्याय आधारित समाज की रचना की जा सकती है और किसी के भी बच्चे ऐसे समाज में सुरक्षित नहीं रह सकते भले ही उनके पास हजार एकड़ का भूखंड क्यों नहीं हो? पति का जमीर जाग जाता है।

क्या आज कोई नेता या आम व्यक्ति इस तरह सोचता है कि भावी पीढ़ी की सुरक्षा किस तरह के समाज या सरकार में संभव होगी? यह भी भयावह है कि सदियों की छलनी से छनकर आए सत्य व आदर्श को तिलांजली देकर की गई राजनीति किस तरह का समुद्र मंथन होगा या उसमें अमृत कम और विष ज्यादा उत्पन्न होगा? दरअसल सोचने के क्षण को अकेला एक क्षण नहीं मान सकते क्योंकि उसकी कोख में भविष्य है और उसके डीएनए में इतिहास है।