ठगी का विज्ञान, कला और इतिहास / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :06 फरवरी 2018
आमिर खान एवं अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म 'ठग्स ऑफ हिन्दुस्तान' निर्माण के अंतिम चरण में है। ठगों के जीवन पर महाश्वेता देवी के एक उपन्यास से प्रेरित फिल्म एच.एस. रवैल साहब ने 'संघर्ष' के नाम से बनाई थी जिसमें बलराज साहनी, जयंत वैजयंतीमाला और दिलीप कुमार जैसे बड़े सितारों ने अभिनय किया था। दरअसल रवैल साहब की पत्नी अंजना रवैल का साहित्य के प्रति गहरा रुझान था और वे कथा विचारों का पोषण भी करती थीं। ज्ञातव्य है कि जया भादुड़ी एवं उत्पलदत्त अभिनीत 'गुड्डी' की सफलता के बाद गुलज़ार साहब इस फिल्म के कथा विचार देने के लिए अंजना रवैल के घर शुकराना अदा करने भी गए थे। बहरहाल सितारों के जमघट और उच्च श्रेणी के निर्माण के बाद भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर असफल रही। ज्ञातव्य है कि इसी फिल्म के एक दृश्य में दिखाया गया था कि संजीय कुमार अभिनीत पात्र दिलीप कुमार अभिनीत पात्र की बांह में दम तोड़ता है। शूटिंग के बाद दिलीप कुमार ने कहा था कि युवा संजीव एक विराट संभावना है। संजीव कुमार ने अलग-अलग फिल्मों में जया बच्चन के पिता, प्रेमी, पति एवं श्वसुर की विभिन्न भूमिकाएं अभिनीत की हैं और प्रतिभा के क्षेत्र में वे एक-दूसरे के लिए ही बनाए गए लगते थे। 'खामोशी' में उन्होंने गूंगे बहरे पात्रों को परदे पर जीवंत कर दिया था।
जबलपुर में ज्ञानरंजन के घर के निकट ही रहने वाले राजेन्द्र चंद्रकांत राय ने भारत में ठग परम्परा पर विषय के विशेषज्ञ विलियम हेनरी स्लीमैन की किताबों का दिल्ली में अनुवाद किया है और कुछ मौलिक रचनाएं भी की हैं। एपिक नामक चैनल पर प्रसारित 'लुटेरा' नामक कार्यक्रम में बतौर विशेषज्ञ उनकी सेवाएं भी ली गई थीं। साहित्य भंडार इलाहाबाद प्रकाशन संस्था ने राजेन्द्र चंद्रकांत राय की तीन किताबें हाल ही में प्रकाशित की हैं जिनमें एक का नाम है- ठगों की कूट भाषा राजा 'रामासी'। ठगों ने आपसी संवाद के लिए इस संकेत भाषा का आविष्कार भी किया था। संभवत: आमिर खान ने भी उनसे परामर्श किया है। आवागमन के साधनों के अभाव में यात्री एक समूह में यात्रा करते थे और ठग भी सामान्य यात्री की तरह शामिल हो जाते थे। अगर एक दल में दो ठग शामिल हो गए हैं तो संकेत भाषा द्वारा वे एक-दूसरे से परामर्श कर लेते थे। ठग किसी भी धर्म का अनुयायी हो, ठग होते ही वे काली मां के भक्त हो जाते थे। मुहीम पर निकलने के पूर्व काली मां की उपासना की जाती और सफलता प्राप्त करके लौटने पर धन्यवाद दिया जाता था। ठगी द्वारा प्राप्त रुपये और वस्तुओं का न्यायपूर्ण बंटवारा सरदार किया करता था। ठग अपनी शैली में समाजवादी थे परन्तु वे इसके राजनैतिक सिद्धांत व स्वरूप को नहीं जानते थे।
ठगों के अपने ज्योतिष भी होते थे जो पंचाग देखकर मुहीम पर जाने का शुभ मुहुर्त निकाला करते थे। आजकल तो राजनेता भी अपने प्रिय ज्योतिष से परामर्श करते हैं। संभव है कि वित्त मंत्री बजट पर विचार करने के लिए भी अपने ज्योतिषी से मुहुर्त निकालते हों। पोंगा पंडिताई का स्वर्ण-युग है हमारा यह दौर। राजनैतिक दलों में प्रतिस्पर्धा जारी है कि कौन अधिक धार्मिक स्थानों की यात्रा करता है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भाखरा नांगल के उद्घाटन अवसर पर कहा था कि आधुनिक भारत के तीर्थ इस तरह के बांध होंगे।
बहरहाल ठगी का काम आज भी हो रहा है परन्तु उसे इस नाम से नहीं पुकारा जाता था। आप अपने व्यवसाय में ठगी करना चाहते हैं तो चार्टर्ड अकाउन्टेंट से आपको गुर सीकने होंगे। कानून भवन के इर्द-गिर्द पतली गलियां खोजने के काम में हम लोग प्रवीण हैं। भारतीय प्रतिभा का स्वाभाविक रुझान अलग किस्म का है। उन्हें सामान्य सीधे सरल रास्ते पसंद नहीं हैं। पगडंडियों की खोज में वे माहिर हैं। पड़ोसी खेत की फसल रात में काट लेने में मुनाफे से अधिक उन्हें आनंद आता है कि पड़ोसी कितना दुखी होगा। नहरों का रुख अपने खेत की ओर कर लेना उन्हें एक 'थ्रिल' देता है, एक 'किक' देता है। किसानों को दी गई सारी छूट का लाभ वह किसान ही पाता है जिसने छोटे किसानों की जमीनें हड़प ली हैं।
सारी व्यवस्था अमीर को और अधिक अमीर तथा गरीब को और अधिक गरीब बनाने का काम कर रही है। व्यवस्था व्यवस्थाविहीनता का स्वांग भी कर रही है। सीधे हाथ से देकर उलटे हाथ से छीना जा रहा है।