डकैती महज लक्षण, मूल बीमारी ध्वस्त अर्थव्यवस्था / जयप्रकाश चौकसे

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डकैती महज लक्षण, मूल बीमारी ध्वस्त अर्थव्यवस्था
प्रकाशन तिथि : 18 जुलाई 2020


अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार, सुष्मिता सेन व परेश रावल अभिनीत फिल्म ‘आंखें’ में अमिताभ अभिनीत पात्र ईमानदार बैंक मैनेजर है, तथा सहकर्मियों को भी अनुशासित व सक्षम बनाए रखता है। कुछ आलसी, निठल्ले लोग, जिन्हें काम न करने से अधिक आनंद इसमें आता है कि दूसरे भी काम न करें। दफ्तरों, बैंकों गलियारों में तंबाकू मलते कुछ लोग नजर आएंगे। निठल्ले लोग षड्यंत्र रच, निष्ठावान बैंक मैनेजर को नौकरी से बर्खास्त कराने में सफल होते हैं। इसी कला का वृहत्तर रूप हम प्रांतीय सरकारों को दलबदल कला का इस्तेमाल करके गिराने का पाखंड रचते हुए देखते हैं।

दरअसल साधनहीन आवाम से अधिक हताशा इन विधायकों में है, जिन्हें अगले चुनाव के लिए धन चाहिए। क्या यह संभव है कि नेता को चुनाव के लिए बैंक से कर्ज मिले। उसके समर्थकों की संपत्ति कोलेटरल की तरह जमा की जाए। वर्तमान में चुनाव व्यवसाय है। बर्खास्त किया बैंक मैनेजर 3 नेत्रहीनों से उस बैंक को लुटवा देता है। नेत्रहीनों को इसलिए चुना, क्योंकि वह बैंक व्यवस्था को बता सके कि उसे नेत्रहीन भी लूट सकते हैं। एक दौर में बैंक लूटने का रास्ता यह था कि व्यापारी अपने कारोबार व्यापक करने के लिए बैंक से कर्ज लेता है। उसे अपनी संपत्ति के कागज कोलेटरल के तौर पर बैंक में रेहन रखने होते हैं। अपने व्यापार के लाभ की मलाई व्यापारी अपने निजी खाते में डालता है। अपने रिश्तेदारों को नौकरी व आलसी लोगों को मोटा वेतन दिया जाता है, यूं व्यापारी खुद अपने व्यवसाय को ध्वस्त करते हुए बैंक का कर्ज हड़प लेता है। बैंक अधिकारी कोलेटरल दस्तावेजों में उल्लेखित जगहों पर अधिकार को जाते हैं, तो वहां कुछ खंडहर, बंजर पथरीली, अनुपजाऊ जमीन मिलती हैं। बैंक की बैलेंस शीट में मुनाफा भी आंकड़ों की हेराफेरी व जादू का खेल है कि बैंक के पुराने दफ्तर व शाखाओं के जमीनी मूल्य समय के साथ बढ़ते जाते हैं व इसी स्थाई एसेट से बैंक मुनाफा प्रस्तुत करने में सफल होते हैं।

‘बर्फी’ फिल्म का डाकू आवश्यकता से अधिक धन नहीं लूटता। पीजी वुडहाउस के एक उपन्यास में एक युवा को विरासत में बैंक मिलता है। युवा साधनहीनों के लिए करुणाशील है और वह बैंक अधिकारियों को आदेश देता है कि कर्ज दिया जाए। कालांतर में बैंक लगभग दिवालिया हो चुका है। अगर बैंक में डकैती होती है, तो बीमा धन से बैंक पुनः सक्रिय हो सकता है। युवा अपनी प्रेमिका के सुझाव पर अपने ही बैंक में डकैती रचना चाहता है। दूसरी ओर लंदन का एक बैंक लुटेरा भी बैंक लूटने, युवा के घर अर्दली की नौकरी पा जाता है। इसी लुटेरे के प्रतिद्वंद्वी के एक माहिर सहयोगी को युवा के चौके में रसोइए की नौकरी मिलती है। रसोइए को चौका सफाई कर्मी से प्रेम हो जाता है। युवा नायक इनके विवाह का खर्च देकर उन्हें स्थाई निवास देता है।

कथा के क्लाइमेक्स में सारे लुटेरे बैंक के स्ट्रांग कक्ष में एक ही समय पहुंचते हैं। सभी दल हताश हैं कि बैंक में धन नहीं है। नकली डकैती रचकर बीमा कंपनी से धन हड़पने का विचार रद्द कर सभी अपने साधनों से जमा राशि लगाकर बैंक बचाने का निर्णय लेते हैं। प्रेम से आए परिवर्तन में व्यवसायी चोर भी अपना धन बैंक में लगाना चाहता है व युवा की प्रेमिका ने अपने गहने बेचने की पहल की। यूं बैंक पुन: सुचारू चलता है व मैनेजिंग कमेटी में कभी बैंक डकैत रहे लोग पदाधिकारी बनते हैं। इन महान विशेषज्ञों के कारण बैंक अब कभी लूटा ही नहीं जा सकता।

वर्तमान में दिनदहाड़े सघन बस्ती में बैंक डकैती हुई है। डकैती महज लक्षण है, मूल बीमारी ध्वस्त अर्थव्यवस्था है। बैंक डकैत कोरोना के कारण मास्क पहनकर आए थे। मास्क नामक रक्षा कवच व्यक्ति की पहचान को संदिग्ध बना देता है। धन्य हैं महान लोग, जो महामारी के दिनों अपराध कर रहे हैं। टूटी हुई व्यवस्था जाने क्या-क्या खेल रच रही है।