डकैती / गोवर्धन यादव
डाकुओं का पीछा करते हुए इन्स्पेक्टर की जीप नदी में जा फ़ंसी, पीछे उसकी मोटरसाइकिल लेकर एक हवलदार आ रहा था, उसने उसे रोकते हुए सभी को अपने पीछे आने को कहा और उसने अपनी गाडी उस डाकू के पीछे दौडा दी, दोनों के बीच काफ़ी कम फ़ासला बचा था, उसने अपनी रिवाल्वर तानते हुए गोलियाँ बरसाना शुरु कर दिया, संयोग से एक भी गोली उस डाकू को नहीं लगी, लेकिन अपनी जान संकट में जान, उसने पैसॊं से भरी बोरी फ़ेंक दी और भाग खडा हुआ,
इन्स्पेक्टर ने अपनी मोटरसाइकिल को रास्ते में पडी बोरी के पास रोका, उसे खोलकर देखा, वह नोटॊं से भरी थी, इतने सारे नोट एक साथ देखकर उसकी आँखे चुंधियाने लगी, मन में एक लोभ जाग उठा, वह सोचने लगा था कि यदि इतनी सारी रक़म को वह किसी तरह हथिया सका तो उसकी शेष ज़िन्दगी आराम से कट जाएगी, पुलिस विभाग से उसे अब तक मिला भी क्या है? चोर-लुटेरे-गिरहकट को उसने सदैव समाज का दुश्मन मान कर जमकर पीटा, बदले में उसे क्या मिला? समाज के पहरुओं ने उसे कोर्ट में घसीटा और उस पर विभाग ने कडी कार्रवाही की, यदि उसने नरमी बरती है तो कहा गया कि पुलिस निकम्मी है, और उसे फिर जलील किया गया, रोज-रोज की किलकिल से निजात पाने का एक आसान मौका उसके हाथ अचानक लग आया था, उसने एक गढ्ढे की तलाश थी, उसे एक जगह आख़िर मिल ही गयी, उसने उस बोरी को दबाकर मिट्टी से ढंक दिया और एक निशान बना दिया, स
इतना कर चुकने के बाद उसने अपनी ही रिवाल्वर से अपने पैर पर गोली दाग दी और कराहते हुए एक ओर गिर पडा, वह जानता था कि पीछे उसका पुलिस-दल आ रहा है,
कुछ समय पश्चात उसके सारे जवान पास आ चुके थे, उन्होंने उसे उठाया और अपनी गाडी में लाद कर शहर की ओर बढ चले थे, असहनीय दर्द के वह मन ही मह प्रसन्न हो रहा था।